Tuesday 20 August 2013

होय पुलसिया जीत, नहीं पर टुंडा हारा -




महेन्द्र श्रीवास्तव 
 (1)
जित्ता ज्यादा जघन्यता, जित्ते ज्यादा जंग |
उत्ती ज्यादा मुर्गियां, उत्ते ज्यादा रंग |

उत्ते ज्यादा रंग, हुआ मेहमान हमारा |
होय पुलसिया जीत, नहीं पर टुंडा हारा |

बदले नहीं प्रवृत्ति, निवृत्ति सेवा से प्यादा |
मुर्ग मुसल्लम खाय, दगे बम जित्ता ज्यादा ||


(2)
जन्नत में देखो गया, टुंडा कर्म करीम |
काफिर मारे चार सौ, लड़वा राम-रहीम |


लड़वा राम-रहीम, मिलेंगे नौकर-चाकर |
सुख सुविधाएँ ढेर, रखे लाकर में लाकर |


करिए रविकर मौज, होयगी पूरी मन्नत |
करवा बम विस्फोट, मिले भारत में जन्नत || 
चुप्पा-चेंचर चौकसी, करे ख़ुदकुशी नोट |
उड़े हँसी उड़ती रहे, चलो बटोरें वोट |
चलो बटोरें वोट, योजना राम भरोसे |
होती बन्दर बाँट, गरीबी खुद को कोसे |
होता बंटाधार, फूलकर डालर कुप्पा |
चेंचर की बकवाद, बैठ कर ताके चुप्पा ||

हारे भारत दाँव, सदन हत्थे से उखड़े-

  गिरता है गिरता रहे, पर पाए ना पार |
रूपया उतना ना गिरे, जितना यह सरकार |


जितना यह सरकार, नरेगा नरक मचाये |
बस पनडुब्बी रेल, मील मिड डे भी खाए |


लेता फ़ाइल लील, सदन में भुक्खड़ फिरता |
मँहगाई में डील, रुपैया नेता गिरता ||
उल्लूक टाईम्स
आई ख़बरें दुखभरी, किन्तु बेखबर देश |
मौतें होती ही रहें, घटना कहाँ विशेष |
घटना कहाँ विशेष, तवज्जो क्योंकर देता |
हों दर्जन भर मौत, तभी बोलेंगे नेता |
मरें कहीं पर छात्र, कहीं पनडुब्बी खाई |
बढे अंधविश्वास, रेल भी करे कटाई ||

कार्टून :- और शेर डूबता चला गया...


शेर डूबता दे बता, सिंह देवता बूढ़ ।
उत्तर ढूँढे ना मिले, अर्थशास्त्र का गूढ़ ।

अर्थशास्त्र का गूढ़, बैठ के अब झक मारें ।
सत्ता सर के तीर, तीर से पब्लिक तारें ।

तारे गया दिखाय, खाय के सिंह ऊबता ।
आज ख़ुदकुशी भाय, तभी तो शेर डूबता ॥

करवा लेती काम, फाइलें चाटे दीमक-

दीमक मजदूरी करे, चाट चाट अविराम |
रानी महलों में फिरे, करे क़ुबूल सलाम |

करे क़ुबूल सलाम, कोयला काला खलता |
बचती फिर भी राख, लाल होकर जो जलता |

लेकिन रानी तेज, और वह पूरा अहमक |
करवा लेती काम, फाइलें चाटे दीमक ||
 ram ram bhai
गीता के सन्देश से, चले बचाने देश |
आखिर लेने क्यूँ चले, मोहन से विद्वेष |


मोहन से विद्वेष, दिखी मुद्रा भी भ्रामक |
उठापटक का दौर, मौन-मन रहता अहमक |


फ़ाइल गुम करवाय, रहा करवाय सुबीता |
रिक्त हो रहा कोष, दुशासन कोसे गीता |
बायल सारे वार, निगाहें माँ-पुत्तर पर-
गूढ़ोत्तर स्वातन्त्र्य का, नित देता है क्लेश |
अजब कश्मकश में दिखे, मोहन-मोदी देश | 

मोहन-मोदी देश, दलाली लाली लाये |
आबादी निर्बुद्धि, जाति सरकार बनाये | 

बायल सारे वार, निगाहें माँ-पुत्तर
पर |
फिर से बंटाधार, यही रविकर गूढोत्तर ||

दर्पण बोले झूठ कब, कब ना खोले भेद |
साया छोड़े साथ कब, यादें जरा कुरेद |
यादें जरा कुरेद, दोस्त पाया क्या सच्चा |
इन दोनों सा ढूँढ़, कभी ना खाए गच्चा |
रखिये इन्हें सहेज, कीजिये पूर्ण समर्पण |
हरदम साया साथ, सदा सच बोले दर्पण ||


6 comments:

  1. उत्ते ज्यादा रंग, हुआ मेहमान हमारा |
    होय पुलसिया जीत, नहीं पर टुंडा हारा |
    Badhiya sir ji !

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  2. बढिया लिंक्स
    मुझे भी स्थान देने के लिए आभार

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  3. बहुत खूब सर जी .

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