Sunday 31 January 2016

छूट जाते जब अधूरे, साक्ष्य से शैतान तो-

देवदारों ने नहीं अब तक, भला कुछ भी किया  
आम-इमली ही भले हैं, क्यों चढ़े हो चीड़ पे । 

गलतियों से जो नहीं, कुछ सीख पाये आजतक 
आज ऐसे ज्ञानियों की, क्या जरुरत नीड़ पे |

हर तरफ संगीत की दीवानगी है शोर है 
मंडली लेकिन नई फंसती दिखे हर मीड़ पे ।  

छूट जाते जब अधूरे, साक्ष्य से शैतान तो 
छोड़ देना चाहिए तब फैसला उस भीड़ पे । 





Saturday 30 January 2016

पी लेते दो घूँट, नशा छोड़ा ना जाये

आर्थिक-तंगी की वजह, गई पढाई छूट |
आर्थिक तंगी की वजह, पी लेते दो घूँट | 

पी लेते दो घूँट, नशा छोड़ा ना जाये |
देते रोज उड़ाय, कमाकर जो भी लाये |

बड़ी बुरी तस्वीर, आइना देखे नंगी |
रहा नशा नहिं छूट, वाह री आर्थिक तंगी ||

Thursday 28 January 2016

हो हल्ला हरगिज नहीं, हरगिज नहीं प्रलाप-


 
गलती होने पर करो, दिल से पश्चाताप |हो हल्ला हरगिज नहीं, हरगिज नहीं प्रलाप |

हरगिज नहीं प्रलाप, हवाला किसका दोगे |जौ-जौ आगर विश्व, हँसी का पात्र बनोगे |

ऊर्जा-शक्ति सँभाल, नहीं दुनिया यूँ चलती |तू-तड़ाक बढ़ जाय, जीभ फिर जहर उगलती ||

Wednesday 27 January 2016

अजब गजब विश्वास, बदल लेता झट खेमें


इक झटके में टूटता, जमा हुआ विश्वास।
जिसे बनाने में हमें, लगे अनगिनत मास।

लगे अनगिनत मास, बड़ी मुश्किल से साधा।
अब तक रखा सँभाल, दूर करके हर बाधा।

अजब गजब विश्वास, बदल लेता झट खेमें।
रविकर हुआ उदास, तोड़ता इक झटके में ||

आतंकी माहौल, फटें बम साँझ-सवेरे-

मेरे हिन्दुस्तानियों, मेल-जोल का वक्त |
मनमुटाव हरगिज नहीं, नहीं बहाना रक्त |
नहीं बहाना रक्त,  बहाना नहीं बनाना |
माना नाना भेद, किन्तु सबको समझाना |
आतंकी माहौल, फटें बम साँझ-सवेरे  |
सजग रहें हम लोग, सजग ज्यूँ योद्धा मेरे |-

Sunday 24 January 2016

ऊपर वाले के यहाँ, कहाँ कभी अंधेर-

ऊपर वाले के यहाँ, कहाँ कभी अंधेर |
सुनते थोड़ी देर से, वे भक्तों की टेर |
वे भक्तों की टेर, जून की भीषण गरमी |
भक्त मांगते ठंढ, हवा में थोड़ी नरमी |
केवल महिने पाँच, आपकी इच्छा टाले |
फिर दें छप्पर फाड़, ठंड फिर ऊपर वाले ||

Thursday 21 January 2016

मियां म्यान दरम्यान, वहीँ इस्लाम बंद है-

फेसबुक पर मेरी टिप्पणियां 
(१)
कटवाने से क्या घटे, दुनिया में जेहाद।
भर दुनिया में हैं डटे, बगदादी उस्ताद।
बगदादी उस्ताद, वहाँ दाढ़ी कटवाई।
गला काट आजाद, यहाँ कर देते भाई।
अस्मत लेते लूट, और फिर देते बटवा।
मिली धर्म से छूट, मौज फिर करते कटवा।
(२)

जीते जी तो ना मिली, किन्तु मिले अब ख्याति।
ख़ुशी ख़ुशी खुदकुसी कर, किन्तु बता के जाति।
किंतु बता के जाति, हमे आंदोलन करना।
पर पूछे याकूब, दिया फाँसी पर धरना।
किन्तु गया क्यूँ झूल, लगा के स्वयं पलीते।
लगते झूठ उसूल, नहीं तो अब भी जीते।।
(३)

फाँसी पर धरना दिया, लिया बीफ भी खाय। 
रही बात याकूब की, बेचारा पछताय।
बेचारा पछताय, पूछ लो आज उसी से।
वह विरोध था झूठ, तभी तो मरा ख़ुशी से।
रविकर कहे खखार, जिसे आती है खांसी।
रखे गले का ख्याल, लगाये कैसे फाँसी।।
(४)

दरी दादरी हैदरा, सदा रहे आबाद।
पानी डाले आप तो, नारद डाले खाद।
नारद डाले खाद, उन्हें खुब दाद दीजिये।
कर के सब बर्बाद, बाद में हाथ मीजिये ।
मुल्ला काजी मस्त, दिखे मदमस्त पादरी। 
सबकी चले दुकान, चलो ले दरी दादरी।।
लाम बंद हैं सिरफिरे, फैलाएं आतंक।
माँ-बहनों के बदन पर, स्वयं मारते डंक।

स्वयं मारते डंक, मचाएं कत्लो-गारद।

मुल्ला पंडित मौन, मौन नेता गण नारद। 

आएंगे बरबंड, तनिक रफ़्तार मंद है |  

मियां म्यान दरम्यान, वहीँ इस्लाम बंद है।



सीरिया के हालात पर -

(1)
लाम बंद हैं सिरफिरे, फैलाएं आतंक।
माँ-बहनों के बदन पर, स्वयं मारते डंक।
स्वयं मारते डंक, मचाएं कत्लो-गारद।
मुल्ला पंडित मौन, मौन नेता गण नारद। 
आएंगे बरबंड, तनिक रफ़्तार मंद है |  
मियां म्यान दरम्यान, वहीँ इस्लाम बंद है।

(२)
असली नकली में फंसा, कभी नही शैतान।
जुल्म सदा शैतान का, भोगा हिंदुस्तान।
भोगा हिंदुस्तान, मान ले मेरा कहना |
सब के सब धर्मांध, पड़ेगा इनको सहना |
हुवे अगर कमजोर, यही शैतनवा मसली |
लेगा तुम्हे खखोर, यही संकटवा असली ||

(1)
रोया पाकिस्तान फिर, किन्तु हँसा इस्लाम।
कभी शिया मस्जिद उड़ी, मंदिर कभी तमाम।

मंदिर कभी तमाम, चर्च गुरुद्वारे उड़ते ।
चले तोप तलवार, सैकड़ों किस्से जुड़ते।

धरती वह अभिशप्त, क़त्ल-गारद की गोया।
सदा बहेगा रक्त, जहाँ था मानव रोया।

(2)
बोये झाड़ अफीम के, कहाँ उगे फिर नीम ।
खतरे नीम हकीम के, समझो राम-रहीम।

समझो राम-रहीम, नशे का धंधा चोखा।
फिदायीन तैयार, नहीं देंते ये धोखा।

उन्हें हूर की फ़िक्र, जमाना चाहे रोये।
कभी करें ना जिक्र, कहाँ क्यों कैसे बोये।।

(3)
पेशावर फिर से मरा, उठे कई ताबूत।
बड़ा बुरा आतंक यह, मरते पाकी पूत।

मरते पाकी पूत, अगर भारत पर चढ़ते।
कहते झूठ सुबूत, कहानी झूठी गढ़ते।

अपनी करनी भोग, भोगना पड़े हमेशा।
वह अच्छा आतंक, बुरा उनका यह पेशा।।

Tuesday 19 January 2016

सत्ता की दुत्कार, इसी से सज्जन सहते -

कुण्डलियाँ 
सज्जन रहते व्यस्त खुद, लंद-फंद से दूर |
सत्ता को क्या फ़ायदा, बनते बोझ जरूर |
बनते बोझ जरूर, काम के चोर-उचक्के |
लोकतंत्र मगरूर, कार्यकर्ता ये पक्के |
सत्ता की दुत्कार, इसी से सज्जन सहते |
दुर्जन सत्ता पास, दूर अति सज्जन रहते ||

दोहा 
बहुत व्यस्त हूँ आजकल, कहने का क्या अर्थ |
अस्त-व्यस्त तुम वस्तुत:, समय-प्रबंधन व्यर्थ ||

Tuesday 12 January 2016

चाहे करो हलाल, किन्तु पशु से मत खेलो-

जल्लू कट्टू पर रहे, फिर से उठा सवाल |
लेकिन बकरा-ईद पर, सदा छुपाते खाल |
सदा छुपाते खाल, इसी पेटा को ले लो |
चाहे करो हलाल, किन्तु पशु से मत खेलो |
प्रगतिशील ये लोग, किराये के हैं टट्टू |
करते रहें प्रलाप, खेलिए जल्लू कट्टू ||