tag:blogger.com,1999:blog-5430413835103305212.post551629181795289047..comments2023-11-26T00:36:15.978-08:00Comments on "लिंक-लिक्खाड़": सृष्टि सरीखी सजग सयानी, केश सुखाती माढ़ारविकर http://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-5430413835103305212.post-59535038345960512702012-03-13T00:38:15.587-07:002012-03-13T00:38:15.587-07:00waah bahut khoob.... hamari rachna ki khoobsurat v...waah bahut khoob.... hamari rachna ki khoobsurat vyakhya... aabharPRIYANKA RATHOREhttps://www.blogger.com/profile/05173622889571039240noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5430413835103305212.post-81536855199224402192012-03-12T20:08:16.899-07:002012-03-12T20:08:16.899-07:00अपनी टिप्पणी से हमारी रचना में चार चाँद लगाने के आ...अपनी टिप्पणी से हमारी रचना में चार चाँद लगाने के आपका शक्रिया....<br />सादर.ANULATA RAJ NAIRhttps://www.blogger.com/profile/02386833556494189702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5430413835103305212.post-28005655051586654122012-03-12T11:28:08.084-07:002012-03-12T11:28:08.084-07:00मिटटी का पुतला पड़ा, मिटटी से क्या मीत ।
मूढ़मती प...मिटटी का पुतला पड़ा, मिटटी से क्या मीत ।<br />मूढ़मती पढ़ मर्सिया, चली आत्मा जीत ।<br />बेहतरीन प्रस्तुति ,आभार .virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5430413835103305212.post-88331686113542772152012-03-12T08:57:27.885-07:002012-03-12T08:57:27.885-07:00हो रविकर असमर्थ दबा दें बेटे मन्या!
सही उपेक्ष...हो रविकर असमर्थ दबा दें बेटे मन्या! <br /> सही उपेक्षा रोज, दवा दे वो ही कन्या!! <br /> रविकर जी,..बढ़िया सृजन किया है,....क्या बात है.....धीरेन्द्र सिंह भदौरिया https://www.blogger.com/profile/09047336871751054497noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5430413835103305212.post-18730941303024013812012-03-12T05:14:43.239-07:002012-03-12T05:14:43.239-07:00रविकर जी,
आपकी कविताओं में भी उस गुड़ का स्वाद आने...रविकर जी, <br />आपकी कविताओं में भी उस गुड़ का स्वाद आने लगा है जो प्रायः गूंगा चखता है.<br /><br />इसके अर्थ करने में भी वैसी ही मेहनत हो रही है जैसी कि आपने मेरे घर पर आकर की थी. <br /><br />कहीं ये बदला तो नहीं? ... <br /><br />एक कहानी याद आ रही है... "लोमड़ी और सारस पक्के दोस्त थे .... एक बार लोमड़ी ने सारस को दावत दी.. " आगे की कहानी सभी जानते ही होंगे.<br /><br /> मेरे लिये इस छंद के एकाधिक अर्थ हो चले हैं.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.com