tag:blogger.com,1999:blog-5430413835103305212.post7165974817147702153..comments2023-11-26T00:36:15.978-08:00Comments on "लिंक-लिक्खाड़": प्रश्नों का अब क्या कहें, खड़े होंय मुंह बाय-रविकर http://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-5430413835103305212.post-1326510530618738652012-09-17T09:12:16.912-07:002012-09-17T09:12:16.912-07:00
फिर मिलने का....
बाद मुद्दत के मिले हो
चलो कुछ...<br /><br /><br />फिर मिलने का....<br /><br />बाद मुद्दत के मिले हो<br />चलो कुछ दूर चले(चलें )<br />खामोश रहे(रहें ) और बात करे(करें )<br />एहसासात को जिए(जिएँ )<br />लम्हों को थामें<br />आँसू की बूँदें<br />आँखों में बांधें<br />कुछ पल ठहरें<br />दरख्तों के नीचे<br />चुपचाप निहारें<br />दर्द सवारें<br />फिर बारिश में भीगें<br />होठों से कोई<br />शिकवा शिकायत न करे(करें )<br />रुसवाई की भी<br />कोई चर्चा न करें<br />आओ फिर मिलने का<br />वायदा करें,...<br /><br /><br />ये मौसम है प्यार का ,<br />यूं वक्त जाया न करें ,<br /><br />बाद मुद्दत के मिलें हैं ,<br />इसका क्या शिकवा करें ,<br />कब मिलेंगे फिर से ,<br />आओ मिल दुआ करें .<br />बढिया प्रस्तुति है .....<br /><br />बाद मुद्दत के मिले और इस तरह देखा इधर ,<br />जिस तरह एक अजनबी पर अजनबी डाले नजर .<br />रूठ कर जाते जिधर !<br />प्यार के मौसम सभी आते उधर virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.com