Sunday, 15 October 2017

मुक्तक

जद्दोजहद करती रही यह जिंदगी हरदिन मगर।
ना नींद ना कोई जरूरत पूर्ण होती मित्रवर।
अब खत्म होती हर जरूरत, नींद तेरा शुक्रिया
यह नींद टूटेगी नहीं, री जिंदगी तू मौजकर।।

व्यवहार घर का शुभ कलश, इंसानियत घर की तिजोरी।
मीठी जुबाँ धन-संपदा, तो शांति लक्ष्मी मातु मोरी।
पैसा सदा मेहमान सा, तो एकता ममता सरीखी।
शोभा व्यवस्था से दिखे , हल से खुशी क्या खूब दीखी।

कभी क्या वक्त रुकता है, घड़ी को बंद करने से ।
कभी क्या सत्य छुपता है, अनर्गल झूठ बकने से।
करोगे दान तो थोड़ा, रुपैया खर्च हो जाता।
मगर लक्ष्मी नहीं जाती, अपितु आनन्द-धन आता।।

7 comments:

  1. दिनांक 17/10/2017 को...
    आप की रचना का लिंक होगा...
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (17-10-2017) को भावानुवाद (पाब्लो नेरुदा की नोबल प्राइज प्राप्त कविता); चर्चा मंच 2760 पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. अति सुन्दर‎ .

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  4. सुंदर सीख दी है आपने ! सादर ।

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  5. सुन्दर सीख देती रचना....
    वाह!!!!

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