Saturday 30 June 2012

मौत-जिंदगी हास्य-व्यंग, क्रमश: साँझ- विकाल

जीने-मरने में क्या पड़ा है, पर कहने-सुनने...

यादें....ashok saluja .
यादें...  
यात्रा का मंचन करे, प्राण पड़े कंकाल ।
मौत-जिंदगी हास्य-व्यंग, क्रमश: साँझ-विकाल ।

क्रमश: साँझ-विकाल, मस्त होकर के झूमें।
देते व्यथा निकाल, चक्र-चौरासी घूमें ।

पर्दा गिरता अंत, बिछ्ड़ते  पात्र-पात्रा ।
किन्तु चले निर्बाध, कहीं ना रुके यात्रा  ।। 


पंज -प्यारो  के चित्र  पर, करते  हो  खिलवाड़ |
मैया हो जाये  खपा, बहुत पड़ेगी झाड़ |
 
बहुत पड़ेगी झाड़, देखिये पहला लालू |
ममता को भटकाय, मुलायम दूजा चालू |
 
तीजा वोही  बंग , दाहिने  लुंगी  वाला  |
पी  एम्  पीछे  हाथ, छुपाता मन का काला ||

ज्यादा देर आन लाइन रहना बोले तो टेक्नो ब्रेन बर्न आउट



कितनो समझाओ यहाँ, अनुभव लेख उड़ेल ।
मल्टी-टास्किंग का सदा , किया करेंगे खेल  ।

किया करेंगे खेल , रेल का डिब्बा जनरल ।
सौ ठो देंगे पेल, झेल जायेगी अक्कल ।

जल ही जाय दिमाग, आउट  हो जाए  टेक्नो ।
अपनी ढपली राग, यहाँ समझाओ कितनो ।।

गंगा चित्र-7

देवेन्द्र पाण्डेय 
पक्षी दाना चुग रहे, मुर्गा है तैयार ।
बारी गंगा-लाभ की, जाना सागर पार ।
 
जाना सागर पार, बनारस घूम सकारे ।
हो जाए उद्धार, मनौती गंग किनारे ।

मानव देश-विदेश, आय के महिमा जाना ।
खाय उड़े परदेश, आत्मा पक्षी दाना ।।

वेदों के देश भारत में आयुर्वेद की दशा

ZEAL at ZEAL 
रोगी की सम्पूर्ण चिकित्सा, रक्षित होय निरोगी ।
आयुर्वेद पूर्ण सक्षम है, निन्दा करते ढोंगी ।
सुश्रुत शल्य-क्रिया धन्वंतरि, औषधि के विज्ञाता
वैदिक ज्ञान प्रतिष्ठित होगा, फिर से जय जय होगी ।।


मौसी प्रभु के धाम, सत्य का करूँ सामना-

अलविदा पिंकी मौसी ...

शिवम् मिश्रा
बुरा भला  
 
 माँ-सी माँ सी थपकियाँ, मिली झिडकियां प्यार ।
गोदी में लेकर चलीं, बहुत बहुत आभार ।

बहुत बहुत आभार, खफा क्यूँ हुई आज माँ ।
प्यार भरी तकरार, गिरा के गई गाज माँ ।

श्रद्धा-सुमन चढ़ाय, शांत की करूँ कामना ।
मौसी प्रभु के धाम, सत्य का करूँ सामना ।।

पहिये

देवेन्द्र पाण्डेय
बेचैन आत्मा

वैचारिक पहिये चले, सधा-संतुलित वेग |
प्रगट करें पहिये सही, ऊँह उनमद उद्वेग |

ऊँह उनमद उद्वेग, वेग बढ़ता ही जाए |
समय फिसलता तेज, मनुज भागे भरमाये |
 
बिन पहियों के सफ़र, करे कंधे  पर 
लंबा | 
 रहे न चक्कर शेष , कृपा कर देना अम्बा ||

"सरकारी राय"

Sushil 
"उल्लूक टाईम्स "

ईश्वर चन्द भू माफिया, उटपटांग कर काम ।
उलटा-पुल्टा कर दिया, भोगो सब अंजाम ।

 भोगो सब अंजाम, जिला अधिकारी आला ।
भली करेंगे राम, दे रहा जिला निकाला ।

बिना कराये जांच, यही निष्कर्ष निकाले ।
छोड़ जाँय  घर बार, लगाना क्यूँकर ताले ।।

रहो सदा चैतन्य, जगत में नाम कमाओ

सौवीं पोस्ट और आप सबका अपार स्नेह .... थैंक यू.....!


करता चित्त प्रसन्न अति,शुभ कोना चैतन्य  |
पोस्ट शतक पहला हुआ, पढ़कर पाठक धन्य |


पढ़कर पाठक धन्य, बढ़ी उम्मीदें बेशक |
है रविकर विश्वास , करोगे कोशिश भरसक |


रहो सदा चैतन्य, जगत में नाम कमाओ |
कई क्षेत्र शुभ अन्य, सभी में शतक जमाओ ||

"हमारे घर में रहते हैं, हमें चूना लगाते हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

सुन्दर प्रस्तुति आपकी, मनभावन उत्कृष्ट |
स्वीकारो शुभकामना, अति-रुचिकर है पृष्ट |

अति-रुचिकर है पृष्ट, सृष्ट की रीत पुरानी |
कहें गधे को बाप, नहीं यह गलत बयानी |

पर पाए संताप, नकारे गधा अगरचे |
करे आर्त आलाप, बुद्धि फिर नाहक खरचे ||

हिंदी ब्लॉगर को प्रताड़ित करता अंग्रेजी विकिपीडिया.

ZEAL at ZEAL - 

विकीपीडिया मीडिया, रक्खे आगे सोच |
कत्ल हकीकत का करे, पंख सत्य के नोच |


पंख सत्य के नोच, खोंच हर जगह लगावे |
खुद को लगे खरोंच, बेवजह शोर मचावे |


डाक्टर वर्मा धन्य, अन्य दूजे न  पूजे |
रविकर जस चैतन्य, सत्य दुनिया में गूँजे | 

पुस्‍तकें मानव की सबसे बड़ी मित्र हैं ...

सदा at SADA

सदा पुस्तकें हैं रहीं, अभिनव उत्तम मित्र ।
देश काल विज्ञान भू , वर्णन करें सचित्र ।
 
वर्णन करें सचित्र, परम मानव हितकारी ।
मुफ्त लुटाती ज्ञान, सदा रविकर आभारी ।

एक एक ये युग्म, सही सन्देश सुनाएँ ।
इन्टरनेट का काल, इन्हें लेकिन अपनाएँ ।

अलविदा पिंकी मौसी ...

शिवम् मिश्रा 
 बुरा भला  

माँ-सी माँ सी थपकियाँ, मिली झिडकियां प्यार ।
गोदी में लेकर चलीं, बहुत बहुत आभार ।

बहुत बहुत आभार, खफा क्यूँ हुई आज माँ ।
प्यार भरी तकरार, गिरा के गई गाज माँ ।

श्रद्धा-सुमन चढ़ाय, शांत की करूँ कामना ।
मौसी प्रभु के धाम, सत्य का करूँ सामना ।।
 




Thursday 28 June 2012

बरधा जस हलकान, मिले तब कहीं रुपैया-


बाई-सेक्सुयल मैन गे, करिए इन्हें सेलेक्ट- चर्चा मंच 925

अरुण निगम जी की रचना पर  
नारद जी की टिप्पणी 
पर  
नारद झगड़ा दे लगा, करे अरुण से प्रीत |
व्यंग-कमल देता खिला, बढ़िया इसकी रीत |

बढ़िया इसकी रीत, हास्य की महिमा गाता |
फिफ्टी-फिफ्टी गीत, राय अपनी रख जाता |

रविकर कर आभार, कृपा करना हे शारद |
है बढ़िया इंसान, लोकहित करता नारद ||
अरुण निगम जी की टिप्पणी पर 
(1) 
संतोष त्रिवेदी की रचना पर  
अरुणोदय होते हृदय, मिला परम संतोष |
आगम-निगम की स्तुति, बजा शंख-शुभ घोष |

बजा शंख-शुभ घोष, रचे दोहे मन-भावन |

सूख रहे थे ग्राम, बरसता झमझम सावन |

माँ की कृपा अपार, करें सेवा साहित्यिक |
दोनों का आभार, क्रमश:करूँ वैयक्तिक ||

अरुण निगम जी की टिप्पणी पर 
(2)
संगीता स्वरूप जी की रचना पर  
 दीदी की रचना सभी, भाव पूर्ण अति-गूढ ।
लेकिन अल्प प्रयास से, समझे रविकर मूढ़ ।

समझे रविकर मूढ़, टिप्पणी बढ़िया भाई ।
अरुण-निगम आभार, समझ में पूरी आई । 

मन की चादर चार, अगर हो जाती बोलो ।
 दाग दार बेकार,  नई वाली लो खोलो ।।

काव्यांजलि / धीर जी की टिप्पणी पर 
रहें सलामत मित्र-गण, सेवें नित साहित्य |
दुनिया खूब सराहती, कवियों के शुभ कृत्य |


कवियों के शुभ कृत्य, अरुण संतोष धीर जी |
नारद का आभार, खींचे बड़ी लकीर जी |


बढ़िया छपे कवित्त, नहीं आई है सामत |
रचें सदा उत्कृष्ट, रहें सब मित्र सलामत || 


उमाशंकर जी का स्वागत चर्चा-मंच पर  
चर्चा मंथन कर सभी, करते अमृत पान |
विश्लेषण आलोचना, बांटे मंगल ज्ञान |


बांटे मंगल ज्ञान, कभी विष भी तो निकले |
विषपायी श्रीमान, ख़ुशी से सारा निगले |


शंकर का आभार, करे रविकर अभिनन्दन |
करें कृपा हर बार, कीजिये चर्चा मंथन ||

M VERMA
जज़्बात  

वर-माँ का मिल जाय तो, जीवन सुफल कहाय |
वर्मा जी की कवितई, दिल गहरे छू जाय |

दिल गहरे छू जाय, खाय के इन्नर मीठा |
रोप रहे हैं धान, चमकते बारिस दीठा |

बापू को इस बार, घुमाना दिल्ली भैया  |
बरधा जस हलकान, मिले तब कहीं रुपैया ||


My Image
हुभाषी कवि-गण मिले, जले हृदय अंगार ।
डाल रहे बारूद अब, अन्तरिक्ष के पार ।

अन्तरिक्ष के पार, बड़ी मस्ती है छाई ।
खाए रविकर खार, किन्तु है बहुत बधाई ।

एक मंच पर ढेर, मिला पर सारा बासी ।
होवे ऐक्य प्रगाढ़, मिले नियमित बहुभाषी ।। 

बारिश में धूप

रजनीश तिवारी
रजनीश का ब्लॉग

उलाहना देता रहा, सदियों से इंसान |
मिले यहाँ प्रत्यक्ष जो, कम उसका सम्मान |


कम उसका सम्मान, कहीं की बाढ़ हकीक़त  |
सूखा रहा निचोड़, कहीं पर खून मुसीबत |


रविकर धोबीघाट, धूप की सदा वन्दना |
लेकिन कृषक समाज, कभी दे रहा उलहना | 


सुगम-दुर्गम !

पी.सी.गोदियाल "परचेत"
अंधड़ !  

उभरी सुथरी भूमि पर, देते नजर गड़ाय |
चौकी चुप्पे डालते, देते रंग जमाय |


देते रंग जमाय, हाय पहले ना समझी  |
बुलडोजर मंगवाय, आज अब उलझी सुलझी |


नीति-नियत में खोट, चोट हरदिन है खाई |
रहते करके ओट, नोट से प्रीति बढ़ाई ||


चर्चा-मंच पर 
Blogger रविकर फैजाबादी said...

    @अरुण कुमार निगम


    महाभयंकर रोग है, ढूँढो नीम हकीम |
    जान निकाले कवितई, ऐसी वैसी नीम ||

Blogger रविकर फैजाबादी said...

    सादर स्वागत आपका, मिला आपका स्नेह |
    श्रीमन के ये दो वचन,करे सिक्त ज्यूँ मेह ||

    July 1, 2012 4:58 PM
    Delete
Blogger रविकर फैजाबादी said...

    शास्त्री जी से

    करूँ निवेदन आपसे, गुरुवर दीजे ध्यान |
    रिप्लाई के आप्शन, करें काम आसान |
    करें काम आसान, टिप्पणी का प्रत्युत्तर |
    एक साथ स्थान, चमक फैले वृहत्तर |
    उमा, धीर सर अरुण, पुराने जोशी आदिक |
    विश्लेषण कर मस्त, प्यार फैलाय चतुर्दिक ||

Wednesday 27 June 2012

एकाधिक से यौनकर्म, ड्रग करते इंजेक्ट --250 वीं पोस्ट : इस ब्लॉग की

जिद्दी सिलवटें

संगीता स्वरुप ( गीत )
सौ जी.बी. मेमोरियाँ, दस न होंय इरेज |
रोम-रैम में बाँट दे, कुछ ही कोरे पेज |

कुछ ही कोरे पेज, दाग कुछ अच्छे दीदी |
रखिये इन्हें सहेज, बढे इनसे उम्मीदी |

रविकर का यह ख्याल, किया जीवन में जैसा |
रखे साल दर साल, सही मेमोरी वैसा |

अच्छी नींद के लिए....

Kumar Radharaman
स्वास्थ्य

 बरसे धन-दौलत सकल, बचे नहीं घर ठौर |
नींद रूठ जाए विकल, हजम नहीं दो कौर |

हजम नहीं दो कौर, गौर करवाते भैया |
बड़े रोग का दौर, काम का नहीं रुपैया |

करिए नित व्यायाम, गर्म पानी से न्याहो |
मिले पूर्ण विश्राम, राधा-कृष्ण सराहो |। 

"अन्तरजाल हुआ है तन" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री  उच्चारण  


यहीं मिले हैं चाचा ताऊ, दीदी बुआ बेटियां गुरुवर ।
भाई बेटा मित्र भतीजा, व्यवसायी गुरुभाई टीचर ।।
 
एडवोकेट मीडिया पर्सन, नौकर मालिक बैंकिंग अफसर ।
पब्लीशर एजेंट सिनेमा, तरह तरह के कई करेक्टर ।।
 हास्य 
मिला शेर को सवा शेर फिर, एक बहेलिया कई कबूतर ।
बड़े बाप हैं यहाँ कई तो, मिला नहीं पर सच्चा पुत्तर ।।




 आज अमरीका भर में नेशनल 

veerubhai 
एकाधिक से यौनकर्म, ड्रग करते इंजेक्ट  ।
बाई-सेक्सुयल मैन गे, करिए इन्हें सेलेक्ट । 

करिए इन्हें सेलेक्ट, जांच करवाओ इनकी ।
केस यही परफेक्ट, जान जोखिम में जिनकी ।

एच. आई. वी. प्लस,  जागरूक बनो नागरिक ।
वफादार हो मित्र , नहीं संगी  एकाधिक ।

सदा 
रूप निखारे वित्त-पति, रुपिया हो कमजोर ।
नोट धरे चेहरे हरे, करें चोर न शोर ।

करें चोर न शोर, रखे डालर में सारे ।
हम गंवार पशु ढोर, लगाएं बेशक नारे ।

है डालर मजबूत, इलेक्शन राष्ट्र-पती का  ।
इन्तजार कर मीत, अभी तो परम-गती का । 

dheerendra 

स्वागत करता मित्रवर, शुभकामना प्रसाद |
काव्यांजलि पर धीर को, देता रविकर दाद |

देता रविकर दाद, मुबारक हों फालोवर |
मिले सफलता स्वाद, सदा ही बम-बम हरिहर |

रचनाएँ उत्कृष्ट, बढ़ें नित नव अभ्यागत |
बढ़ते जाएँ पृष्ट, मित्रवर स्वागत स्वागत ||

संतोष त्रिवेदी
बैसवारी baiswari

हुवे कबूतर क्रूर सब, करें साथ मतदान ।
जब्त जमानत हो रही, बहेलिया हैरान । 

कौवों ने रंगवा लिया, सब सफ़ेद सा पेंट ।
असमंजस में कोयली, गाड़ी खुद का टेंट ।


जबरदस्त यह शायरी, तेज धार सरकार ।
सावधान रहिये जरा, करवाएगी मार । 
  1. करवाएगी मार अगर पढ़ लेगी बीबी,
    भूखा रहना पडेगा,हो जायेगी टी०वी०
    खुश रक्खो, दिलवाओ झुमके बाली.
    तभी बनोगे तुलसी और वो रत्नावली,,,,

    MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बहुत बहुत आभार ,,
  2. सहने की आदत पड़ी, साल हुवे अब तीस |
    नीले नीले हैं निशाँ, उठे नहीं पर टीस |
    उठे नहीं पर टीस, दूसरे तुलसी लागैं |
    रचनाएं सब बीस, वीक में सीधे भागैं |
    शनी और इतवार, बड़ी होती है खातिर |
    रत्ना खातिर गिफ्ट, किन्तु रत्ना तो शातिर ||

चर्चा - 924

दिलबाग विर्क 

सुन्दर चर्चा साजते, लगते रोचक लिंक |
हरियाली बरसात की, नीले पीले पिंक ||

सिल्वर जुबिली समारोह -1987 की मार्मिक यादें

G.N.SHAW
BALAJI  

दो साथी को नमन कर, दो मिनटों का मौन |
चौंतिस साथी जम गए, मिला रेलवे भौन |

मिला रेलवे भौन, मटन सांभर आर्केस्ट्रा |
धरना भी हो गया, पार्टी होती एक्स्ट्रा |

बीता लंबा काल, बहुत कुछ खोया पाया |
चलती रोटी दाल, एक परिवार बनाया || 

चर्चामंच अनोखा मंच

अरुन शर्मा 
 दास्ताँने - दिल (ये दुनिया है दिलवालों की )
My Image
आसानी से कह रहे, अरुण तरुण एहसास ।
ब्लॉग-जगत का कर रहा, चर्चा-मंच विकास ।


चर्चा-मंच विकास , आस है भारी इससे ।
छपते गीत सुलेख, विवेचन  गजलें  किस्से ।


बहुत बहुत आभार, प्यार से इसे नवाजा ।
कमी दिखे तत्काल, ध्यान शर्तिया दिला जा ।।

कौवे की तरह कावँ-२ करते हैं

अरुन शर्मा
दास्ताँने - दिल (ये दुनिया है दिलवालों की )
 

खेले नेता गाँव में, धूप छाँव का खेल |
बैजू कद्दू भेजता, तेली पेट्रोल तेल |
बैंगन लुढ़क गया ||


परती की धरती पड़ी, अपना नाम चढ़ाय |
बेचे कोटेदार को, लाखों टका कमाय |
बैजू भड़क गया ||

    .



धरा लूट के यूँ धरा, धनहर धूम धड़ाक

धरती तो पूरी लूट खाई हरामखोरों, जाकर गगन देखो !

पी.सी.गोदियाल "परचेत"
अंधड़ !  

शेर एक से एक है, प्रगट करूँ आभार |
सावधान हे पाठकों, बेहद पैनी धार || 
कुंडली  
 धरा लूट के यूँ धरा, धनहर धूम धड़ाक ।
सात समंदर पार कर, रहा आसमाँ ताक ।

रहा आसमाँ ताक , बसेगा अब मंगल पर ।
फितरत फिर नापाक, बड़ी है इसकी रविकर ।

शैतानी अरमान, बसाने को उद्दत सब ।
किया बड़ा नुक्सान, धरा पूरी आहत अब।
 मेरी भी सुन लो -

यशवन्त माथुर 
तुझको तो मैं लूँ बचा, मुझको कौन बचाय |
मैं भी बच जाऊं मगर, मारें गला दबाय |

मारें गला दबाय, दूध का बड़ा कठौता |
देंगे चटा अफीम, करे न ये समझौता |

काट रहे ये डाल, नहीं चेतें हैं अब तक |
रही इन्हें जो पाल, काटते उसका मस्तक ||

आधे संसार में कुछ पूरे दिन

sidheshwer
कर्मनाशा  

अंचल जी का शुक्रिया, देता शुभ आशीष ।
पर्वत घाटी नदी सर, इस अंचल के ईश ।
 
इस अंचल के ईश, चित्र बेहद खुबसूरत ।
यह आधा संसार, प्यार से भैया *घूरत ।  
 *घूमना
चौकोड़ी के मोड़, बहे पत्थर में पानी ।
शांत सुरम्य स्थान, हुई दुनिया दीवानी ।।  

Untitled

 Roshi at Roshi 

 [AIbEiAIAAABECN371_q9hLTrvwEiC3ZjYXJkX3Bob3RvKig1Mzk1OWIwYzY4OTQxMThkM2U4MjU5YjVhZmFhNGU5ZDQwMTVkOTZhMAG9GqSDv1iinPoF1efTm31vjSkNMg.jpg]

डालो बोरा फर्श पर, रखो क्रोध को *तोप |
डीप-फ्रिजर में जलन को, शीतलता से लोप |
*ढककर
शीतलता से लोप, कलेजा बिलकुल ठंडा |
पर ईर्ष्या बदनाम, खाय ले मुर्गा-अंडा |

दो जुलाब का घोल, ठीक से इसे संभालो |
पाहून ये बेइमान, विदा जल्दी कर डालो ||

टिप्पी का टिप्पा टैण टैणेन ..

टिप्पणियां ...पोस्ट को ज़िंदा रखती हैं


 बढ़िया विश्लेषण करें, टिप्पणियों की आप |
चुन चुन कर देते यहाँ, इस ब्लॉग पर छाप |


इस ब्लॉग पर छाप,  चितेरे बड़ी बधाई |
बड़े महत्व की टीप, पोस्ट पर जितनी आई |


सब की सब हैं स्वर्ण, छाँट कर धरो अमोलक |
अनुकरणीय प्रयास, बजाओ ढम ढम ढोलक ||

हृदय का संस्कार

प्रतुल वशिष्ठ 
 दर्शन-प्राशन


वर्षों की संख्या तीन हुई, नित दीन-हीन अति-क्षीण हुई |
कल्पनी काट कल्पना गई, पर विरह-पत्र उत्तीर्ण हुई ||


कल पाना कैसे भूल गए, कलपाना चालू आज किया -
बेजार हजार दिनों से मैं, क्या प्रेम-प्रगाढ़ विदीर्ण हुई  ??

ब्लॉगर्स की दो कटौगरी -- भैया के लाल जियें

ZEAL
मुश्किल में मुस्काते जाते, बड़ा हौसला उत्साही |
कंटकाकीर्ण पथ पर बढ़ते, उदाहरण बढ़िया राही ||

रविकर की अपनी शैली, बुद्धि कम उपयोग करे-
सीधा सादा जीवन जीता , ढूँढ़ रहा इक हमराही ||

"विदाई"

Sushil 
"उल्लूक टाईम्स "
 बुलबुल चुलबुल दें दुआ, बाबुल का अंदाज |
शेर गीत भाषण पढ़ें, अंतिम दिन का ताज | 


अंतिम दिन का ताज, नाज फिर सभी उठाते |
तनिक लगे न लाज, गिफ्ट बढ़िया ले जाते |


देते वाहन साज, बदन भारी जो थुल-थुल |
चार जने का काज, करे फट बुलबुल चुलबुल ||



Tuesday 26 June 2012

अजब भाग्य का लेख , ढूँढ ले रोने वाले -

परायों के घर

लटके हुवे सलीब पर, धड़ की दुर्गति देख ।
जीभ धड़ा-धड़ चल रही, अजब भाग्य का लेख ?

अजब भाग्य का लेख , ढूँढ ले रोने वाले ।
बाकी जान-जहान, शीघ्र ना खोने वाले ।

चेहरे की मुस्कान, मगर कातिल की खटके ।
करनी बंद दुकान, मरो झट लटके लटके ।।

एक आर्त अपील -लिव एंड लेट लिव!


 नैतिकता की तुला पर, छुपा पड़ा पासंग ।
अपना पलड़ा साजते, दूजे का बदरंग ।

दूजे का बदरंग, आइना खुद ना ताके ।
चीज हुई ईमान,  घूमिये इसे दिखा के ।

चुका रहे हम चौथ, लूटते भ्रष्टाचारी ।
सही मित्र अरविन्द, मिटे ना यह बीमारी ।। 

होने अथवा ना होने के बीच का एक सिनेमा


वासेपुर के पास में, है अपना आवास |
तीस साल लगभग हुवे, बात यहाँ की ख़ास |


बात यहाँ की ख़ास, मिले धन बाद रुपैया |
मौत मिले बेदाम, बड़े उस्ताद कमैया |


गया पुराना दौर, आज कुछ अलग दिखाता |
मिले श्रमिक को ठौर, मेहनती खूब कमाता || 

"कविवर राकेश "चक्र" के सम्मान में गोष्ठी " (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


एक एक दृश्य तैरता, सहज सरल आभास |
राकेश चक्र जी मंगलम, काव्य गोष्ठी ख़ास |


काव्य गोष्ठी ख़ास, जमे सिद्धेश्वर भाई |
कवि प्रसून बदनाम, याद गेंदा जी आई |


शास्त्री जी का स्नेह, शारदा मातु विराजे |
कृपा बरसती नित्य, साहित्यिक वीणा बाजे |

राहुल गाँधी ने क्या सीख लिया !!

Bamulahija dot Com at Cartoon, Hindi Cartoon, Indian Cartoon, Cartoon on Indian Politcs: BAMULAHIJA

 प्र से सीखा प्रक्षयण, मुक्का मारे जोर |
ण से द्वि-मात्रिक णगण, नाम जोर मुंहचोर |

 
नाम जोर मुंहचोर, बना व से वरवारण |
नाम वंश का पाय, करे खुश होकर धारण |

 
प्रणव नाम से आज, यही सीखा है बन्दा |
प्रणव नाद अंदाज, बजाता कितना गंदा ||

आभासी सम्बन्ध और ब्लॉगिंग


गुर्गा कच्चा आम है, प्रथम खिलाओ पाल ।
पकने पर खाने लगे, लगा "जाल" जंजाल ।

लगा "जाल" जंजाल, यातना शब्द पा गई ।
रहा था बेशक टाल, आज आवाज आ गई ।

बहुत बहुत आभार, जगाये उनको मुर्गा ।
 मिलें डाल के आम, खिलायेगा वो गुर्गा ।। 

"सच्ची बात"

Sushil
"उल्लूक टाईम्स "
 

साहब का कड़छा बड़ा, निजी-गली का शेर ।
साहब का घोड़ा गधा, उनके हाथ बटेर ।

उनके हाथ बटेर, बटोरें बोरा-बस्ता ।
चूना किन्तु लगाय, नहीं शर्माता हंसता ।

कहो नहीं तुम ढीठ, कहे ये दुनिया कब का ।
खड़े खड़े दूँ पीट, मुंहलगा हूँ साहब का ।।




कुंडली में 1000 वीं टिप्पणी -

कभी आप ने देखी क्या?? आज देख लो --

कौन देगा प्यार ....

  Sharad Singh  
 
आधी आबादी यहाँ, रविकर जैसे लोग ।
कुरूपता का दंश यूँ, नियमित लेते भोग ।
नियमित लेते भोग, मगर भरपाई करते ।
मानवता के लिए, जीये फिर झटपट मरते ।
सुन्दर चेहरेदार, मगर सामाजिक व्याधी ।
खुद तो करते मौज, तड़पती दुनिया आधी ।

अग्निबाज क्लासेस

  (सतीश पंचम)
सफ़ेद घर
 

शेयर करते आइडिया, जल पाता ना ताज |
मंत्रालय मुंबई का, और न जलती लाज |
और न जलती लाज, बाज आ जाता पाकी |
आतंकी आवाज, आज ना रहती बाकी |
पंचम सुर में गाय, आज सर आँखों धरते |
मरते ना मासूम, अगर हम शेयर करते ||

एक लाख ब्‍लाग पेज हिट्स का आज आनंद उत्‍सव मनाया जाये । ये ब्‍लाग एक साझा मंच है इसलिये ये उत्‍सव सभी का है । तो आइये आज केवल उत्‍सव का आनंद लिया जाये ।

पंकज सुबीर
सुबीर संवाद सेवा  
लाख लाख शुभकामना, हिट होते हिट लाख |
भभ्भड़ कवि भौंचक खड़े, निश्चय बाढ़े साख |
 निश्चय बाढ़े साख, गुरु का वंदन करता |
शिरोधार्य आदेश, ब्लॉग पर रहा विचरता |
मस्त सुबीर संबाद, होय सब मंगल मंगल |
प्रस्तुति पर है दाद, बढे शब्दों का दंगल || 

गुलदस्ते में राष्ट्रपति..

ZEAL at ZEAL
 खरी खरी कहती रहे, खर खर यह खुर्रैट ।
दुष्ट-भेड़ियों से गले, मिलते चौबिस  रैट ।
मिलते चौबिस  रैट, यही दोषी है सच्चे ।
हो सामूहिक कत्ल, मरे जो बच्ची-बच्चे । 
ईश्वर करना माफ़, इन्हें यह नहीं पता है ।
 बुद्धी से कंगाल, हमारी बड़ी खता है ।। 

Monday 25 June 2012

बजरंगी जब थामते, रिचर्ड्स राक्षस कैच-


एक रि पोस्ट - जेहन में बसा है 25 जून 1983 - कपिल देव

शिवम् मिश्रा
बुरा भला
 
बजरंगी जब थामते, रिचर्ड्स राक्षस कैच ।
संजीवनी देते सुंघा, जकड़ा भारत मैच ।
जकड़ा भारत मैच,  कथा पच्चीस जून की ।
"बुरा-भला " आभार, रोमांचित मजमून की ।
विश्व विजय के दृश्य, पुन: ताजा हो जाते ।
बार-बार उत्साह, हमारा  रहे  बढाते ।।
  1. आज के ही दिन कप जीते थे,आज के ही दिन आपातकाल भोगे थे !




    1. याद राखिये वर्ल्ड कप, भूल जाय आपात |
      यह मानव फितरत सखे, समय सहे आघात |
      समय सहे आघात, कलेजा मुंह को आता |
      जैसी करनी राय-बरेली वही दिखाता |
      दीजे ताहि भुलाय, जीत का स्वाद चाखिये |
      कपिल पिलाया पानि, आज बस याद राखिये ||

सच कहो...

Amrita Tanmay   

तन्मय होकर के सुनो, अट्ठारह अध्याय |
भेद खोलता हूँ सकल, रहे कृष्ण घबराय |
रहे कृष्ण घबराय, सीध अर्जुन को पाया |
बेचारा असहाय, बुद्धि से ख़ूब भरमाया |
एक एक करतूत, देखता जाए संजय |
गोपी जस असहाय, नहीं कृष्णा ये तन्मय ||

श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (१८वीं-कड़ी)

Kailash Sharma
Kashish - My Poetry
 

जन्म कर्म योगादि पर, बोल रहे गोपाल |
ध्यान पूर्वक सुन रहे, अस्त्र-शस्त्र सब डाल |
अस्त्र-शस्त्र सब डाल, बाल की खाल निकाले |
महाविराट स्वरूप, तभी तो दर्शन पाले |
अर्जुन होते धन्य, धर्म का राज्य आ गया |
गीता का सन्देश, विश्व में क्रान्ति ला गया ||

हगने हगने मे अंतर

Arunesh c dave at अष्टावक्र
सेंट्रलाइज ए सी लगे,  चकाचौंध से लैस ।
शौचालय में हग रहे, मंत्री करते ऐश ।
मंत्री करते ऐश, गोडसे नाम धरोगे ।
बापू वादी पैंट, बहुत सी गील करोगे 
रविकर एक सुझाव, अजादी दो हगने की ।
खाद बने या खेत, बात तो है लगने की ।।
 

सीधा सरल उपाय, भीग छतरी में आधा-

मुनव्वर राना की शायरी और हम लोग !

संतोष त्रिवेदी
बैसवारी baiswari 
राय बरेली का जमा, दिल्ली में जो रंग |
जमी मुनौव्वर शायरी, एन डी टी वी दंग |
एन डी टी वी दंग, अजी संतोष त्रिवेदी |
आया किसके संग,  इंटरी किसने दे दी |
कहाँ मित्र अविनाश, स्वास्थ्य कैसा है भाई ?
श्रेष्ठ कलम का दास, स्वस्थ हो, बजे बधाई ||

याद हैं मुझे वो सारी बातें

Mridula Harshvardhan 
 Naaz
नाज प्यार पर है हमें, नजर नहीं लग जाय |
काला टीका लूँ लगा, सीधा सरल उपाय |
सीधा सरल उपाय, भीग छतरी में आधा |
कंधे-मन रगड़ाय, बाढ़ बन जाती बाधा |
थाम परस्पर पृष्ट, बढे हम तीक्ष्ण धार पर |
संतुष्टी संदृष्ट, हमें है नाज प्यार पर ||

बंदरों की कैद में....

देवेन्द्र पाण्डेय 

  छुपे गडकरी दीखते, लुकी सोनिया माय ।
बबलू को अति-प्यार से, दुग्ध पिलाती धाय ।
दुग्ध पिलाती धाय, प्रणव इस्तीफा लिखते । 
खाईं कुआं निहार, संगमा नीचे दिखते ।
राजा पाया बेल, जेल को ताक रहा है ।
भागे बन्दर तीन, कटाता नाक रहा है ।।

इन्तहां प्यार की---

JHAROKHA
JHAROKHA  

अगर झरोखे में दिखे, गजल गजब उत्कृष्ट ।
ताक-झाँक नियमित करूँ, नहीं हटाऊं दृष्ट ।
नहीं हटाऊं दृष्ट , गरीबी बड़ी नियामत ।
जिन्दा वह इंसान, झेल के बड़ी क़यामत ।
स्नेह दीप को बार, चुने चेहरे वह चोखे ।
बाइस्कोप संवार, ताकता उसी झरोखे ।।

"कार ला दो एक उधार ला दो"

Sushil 
"उल्लूक टाईम्स "
गृहणी की चिक-चिक ख़तम, ले आया इक कार |
कार्यालय अतिशय निकट, बंद हुई तकरार |  


 बंद हुई तकरार, हुआ कम पैदल चलना |
वजनदार अंदाज, सुबह नित पड़े टहलना |


बढ़ा पेट मधुमेह, दाब भी ऊंचा होया |
पैदल दौरे बंद,   हार्ट-दौरे से सोया ||

खुरपेंचिया ब्लॉगर अनूप शुक्ल जी !

संतोष त्रिवेदी 
 सुरबाला ही धर सके, सर पर आला फूल |
खुर वाला खुरपेंच से, झोंके अंखियन धूल |
झोंके अंखियन धूल, हजारों रची कुंडली |
आलोचक हैं मूक, दीखती नहीं मंडली |
अहमक भाव अनूप, अहम् का पीकर हाला |
लांछित करके लेख, पूजता है सुरबाला ||

क्षणिकाएँ

Dr.NISHA MAHARANA 

 क्षणिकाएं देती सजा, निशा करे आराम ।
लो पाठक इनका मजा, यात्रा बाद विराम ।
 यात्रा बाद विराम, तोड़ वृत्तांत लिखूँगी ।
कल से फिर अविराम, आपके संग दिखूंगी ।
छल-पर्वत संगीत, रात दिन दुःख भरमाये ।
बहुत बहुत आभार, बड़ी सुन्दर क्षणिकाएं । 
(भारत का सिरमौर काश्मीर) श्री नगर में दूसरा दिन परीमहल ,चश्मे शाही ,शालीमार गार्डन ,हजरत बल और डल लेक - 

चित्रों की खुबसूरती, शब्दों का भावार्थ |
कृष्ण हांकते रथ चले, आनंदित यह पार्थ |
आनंदित यह पार्थ, वादियाँ काश्मीर की |
हजरत बल डल झील, पुराने महल पीर की |
रविकर टिकट बगैर, घूमता जाए मित्रों |
कर लो सब दीदार, आभार अनोखे चित्रों || 

बिना पार्लर हाट, विलासी मन घबराता -

एक बच्चे की चाहत पारिवारिक रिश्ते को अंसतुलित करती है

bhuneshwari malot 
(1)
खर्चा पूरा पड़े क्या, जब बच्चा अतिरिक्त |
व्यर्थ व्यस्तता भी बढे, पुन: रक्त से सिक्त |

पुन: रक्त से सिक्त, रिक्त  बटुवा हो जाता |
बिना पार्लर हाट, विलासी मन घबराता |

माँ का बदला रूप, पार्टी होटल चर्चा | 
लैप-टॉप सेल कार, निकल न पावे खर्चा ||  

(2)
इक बच्चे से ही निकल, जाती अपनी फूंक ।
दो बच्चों का पालना, बड़ी भयंकर चूक ।

 बड़ी भयंकर चूक, अवज्ञा मात-पिता की ।
बात कहूँ दो टूक, तैयारी करें चिता की ।

हाथ हमेशा तंग, गुप्त कुछ अपने खर्चे ।
कर न रविकर व्यंग, पाल ले इक इक बच्चे ।। 
(3) 
होटलबाजी करूँ नित, शाम रहूँ मदहोश ।
कार्यालय में दिन सकल, शेष बचे न होश ।

शेष बचे न होश , कैरियर कौन सँवारे ।
रविकर किसका दोष, समय के दोनों मारे ।

जीते हम चुपचाप, पराई दखलंदाजी ।
बंद करें अब आप, करें अब होटल बाजी ।।
(4)
एकांतवास का युग अहम्, कलयुग इसका नाम ।
दो बच्चों का है वहम, बनते श्रेष्ठ तमाम ।

बनते श्रेष्ठ तमाम, तीन भाई हैं मेरे ।
आते हैं क्या काम, अलग सब लेकर डेरे ।

मात-पिता असहाय, उदाहरण बहुत पास का ।
बड़ी विरोधी राय, मजा एकांतवास का ।।