Sunday 30 June 2013

होमगार्ड सरकार, यहाँ पर बिलकुल बेवा-







 
महेन्द्र श्रीवास्तव

 बेबाकी से रख दिया, बाकी भी बेकार |
देख शिकारे कर रहे, कैसे हमें शिकार |
कैसे हमें शिकार, रेट सबके मनमाने |
बड़ा कमीशन जाल, सेब कश्मीरी खाने |
सड़े-गले एहलाक, नरक देवा रे देवा  |
होमगार्ड सरकार, यहाँ पर बिलकुल बेवा ||

मुंडे नें ऐसा क्या कह दिया जिसका पता चुनाव आयोग को नहीं था !!


पूरण खण्डेलवाल  

 किया किन्तु क्यों कह दिया, मुंडे  क्या औकात । 
 गुंडे से ही हम दरें, खाएं उनकी लात ॥ 

विरक्ति

रचना दीक्षित 
 
 गन्ने की खेती बढे, हरदिन बढे मिठास ।  
फसल निरोगी  स्वस्थ हो, नसल असल विश्वास ॥
 

 "कैसे साथ चलोगे मेरे?" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) 

लोगे मेरा वोट तुम, और चलोगे चाल |
कस-मीरी के घर हुआ, पैदा पूत कमाल |
पैदा पूत कमाल, लाल गायब था नौ दिन |
थी आफत विकराल, चले राहत ना तुझ बिन |
हे मेरे युवराज, अगर कल राजा होगे |
खोज खबर किस तरह, रोम से आकर लोगे ||

"चापलूस बैंगन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

थाली का बैगन नहीं , बैंगन की ही थाल |
जो बैंगन सा बन रहा, गली उसी की दाल ||

सेहत आत्मा की

Virendra Kumar Sharma 
काया खाए पिए नित, टाइट होती पैन्ट |
माया मोटी बुद्धि की, सच है सौ परसेन्ट |
सच है सौ परसेन्ट, डेंट कर पेंट कराओ |
लेकिन थुल थुल देह, करोगे क्या बतलाओ |
परकाया है स्वाद, मजा जिभ्या को आया |
सरकाया अब तलक, लेट जायेगी काया || 




 man ka manthan. मन का मंथन।
पत्थर वो सह ना सके, सचमुच नाजुक देह |
सहना तो तुमको पड़े, करते हो क्यूँ नेह-
कुलदीप ठाकुर

चेतन चेतावनी प्रति, होते नहिं गंभीर |
दिखे *चेतिका चतुर्दिश, जड़ हो जाय शरीर ||
*श्मशान  


रावण के ४ हवाईअड्डे मिले | 4 Airports of King Ravana Discovered : 7323BC


प्राचीन समृद्ध भारत 


लोल कपोल कहें खुब कल्पित आज चमाट लगा फिर भारी |
खोल रहा इतिहासिक भेद सदैव पुरातन तथ्य उघारी |
रावण एक हकीकत पुष्पक लंकक द्वार दिखे उत चारी |
सेतु रमेसर में प्रभु का खर-दूषण मारि थपे त्रिपुरारी ||

मन के विकार

Rajesh Kumari 
 सृजन मंच ऑनलाइन
हो गलती का लती जो, खायेगा वह लात |
पछताये कुछ ना मिले, गर समझे ना बात || 

 
 

Friday 28 June 2013

ये जनसंख्या बोझ, चलो इस तरह निबटते-



Rajesh Kumari 


 आल्हा में दुर्लभ चित्रण है, दीदी कहों कहाँ तक जाय |
नदियाँ बादल मलबा पत्थर, भवन पुलों को रहे बहाय |

शंकर नंदी मगन भंग में, रचना सारी भंग कराय |
चेताते मूरख मानव को, कुदरत को अब चले बराय ||

आपदाओं के प्रबंधक

Virendra Kumar Sharma 

बटते दल बादल फटे, दलदल लेते लील | 
दलते ग्राम दलान घर, देत दलाल दलील |

देत दलाल दलील, आपदा है अब आई |
राहुल लाखों मील, रसद कैसे पहुंचाई |  

बैठक ठक ठक रोज, बड़े मसले हैं घटते |
ये जनसंख्या बोझ, चलो इस तरह निबटते || 



लोकसेवकों में लोकसेवक होनें का भाव भी तो होना चाहिए !!

पूरण खण्डेलवाल 
 
मत की कीमत मत लगा, जब विपदा आसन्न ।
आहत राहत चाहते, दे मुट्ठी भर अन्न ॥



आहत राहत-नीति से, रह रह रहा कराह |

अधिकारी सत्ता-तहत, रिश्वत रहे उगाह ॥



घोर-विपत आसन्न है, सकल देश है सन्न ।

सहमत क्यूँ नेता नहीं, सारा क्षेत्र विपन्न ॥



नेता रह मत भूल में, मत-रहमत अनमोल |

ले जहमत मतलब बिना, मत शामत से तोल ॥
नष्ट हुवा घर-ग्राम कुटी जब क्रोध करे दल बादल देवा -
सवैया -


(1)
बाँध बनावत हैं सरकार वहाँ पर मूर्ति हटावत त्यूँ |



गान्धि सरोवर हिंसक हो मलबा-जल ढेर बहावत क्यूँ |



शंकर नेत्र खुला तिसरा करते धरती पर तांडव ज्यूँ |



धारिणि धारि महाकलिका कर धारण खप्पर मारत यूँ |





(2)

नष्ट हुवा घर-ग्राम कुटी जब क्रोध करे दल बादल देवा |
कष्ट बढ़ा गतिमान नदी करती कलिका किलकार कलेवा |

दूर रहे सरकार जहाँ बस खाय रही कुरसी-कर-मेवा | 
हिम्मत से तब फौज डटी इस आफत में करती जन-सेवा ||



देख उत्तराखंड, हाय रे दैया दद्दा-





पदा रहा मोदी बहुत, पाले में घुस हूल |
इधर मीडिया दे रहा, इस मसले को तूल |

इस मसले को तूल , मूल में कुर्सी आई |
आई है नाराज, राज आई या जाई |

देख उत्तराखंड, हाय रे दैया दद्दा । |
निपटे हम इस ओर, निपट तू उधर आपदा ||



जय जय जय हे वीर, भगाते आई शामत |

 (1)
कीमत मत मानव लगा, महा-मतलबी दृष्टि |
हिम्मत से टकरा रहे, भरी चुनौती सृष्टि | 
भरी चुनौती सृष्टि, वृष्टि कुहराम मचाये |
अहंकार हो नष्ट, तिगनिया नाच नचाये |
जय जय जय हे वीर, भगाते आई शामत |
सादर तुम्हें प्रणाम, चुकाई भारी कीमत || 

उत्तरीय उतरे उमड़, उलथ उत्तराखंड --

नमन नमस्ते नायकों, नम नयनों नितराम-

 (1)
नमन नमस्ते नायकों, नम नयनों नितराम |
क्रूर कुदरती हादसे, दे राहत निष्काम  |
दे राहत निष्काम, बचाते आहत जनता |
दिए बगैर बयान, हमारा रक्षक बनता |
अमन चमन हित जान, निछावर हँसते हँसते |
भूले ना एहसान, शहीदों नमन नमस्ते -
 (2)
 उत्तरीय उतरे उमड़, उलथ उत्तराखंड |
कुदरत का कुत्सित कहर, देह भुगत ले दंड |

देह भुगत ले दंड, हुवे रिश्ते बेमानी |
पानी का बुलबुला, हुआ है पानी पानी |

क्या गंगा आचमन, चमन सम्पूर्ण प्रस्तरी |
चालू राहतकार्य,  उत्तराभास उत्तरी ||

 उत्तराभास=अंड-बंड उत्तर / दुष्ट उत्तर 
(३)
 

ज़िंदा लेते लूट, लाश ने जान बचाई -

खानापूरी हो चुकी, गई रसद की खेप । 
खेप गए नेता सकल, बेशर्मी भी झेंप । 

बेशर्मी भी झेंप, उचक्कों की बन आई । 
ज़िंदा लेते लूट, लाश ने जान बचाई । 

भूखे-प्यासे भटक, उठा दुनिया से दाना ।
लाशें रहीं लटक, हिमालय मुर्दाखाना ॥
(४)
सन्नाटा पसड़ा पड़ा, सड़ता हाड़ पहाड़ |
कलरव कल की बात है, गायब सिंह दहाड़ |  


गायब सिंह दहाड़, ताड़ अब कारस्तानी |
कुदरत से खिलवाड़, करे फिर पानी-पानी |  


सुधरो नहीं सिधार, खाय झापड़ झन्नाटा |
मद में माता मनुज, सन्न ताके सन्नाटा ||
(५)
 फेंकू का धत फोबिया, व्याधि व्यथा विकराल |
राल घोंटते गान्धिभक्त, है चुनाव का साल |

है चुनाव का साल, विदेशी दौरे छोड़े |
चले अढाई कोस, नहीं नौ दिन हैं थोड़े |

बेतरतीब विकास, गधह'रा हुल'के रेंकू |
किसका वह व्यक्तव्य, मीडिया असली फेंकू ||


श्लेष अलंकार पहचाने
गधह'रा हुल'के = बच्चे रेंकने के लिए हुलकते हैं 
(६)
 
नंदी को देता बचा, शिव-तांडव विकराल । 
भक्ति-भृत्य खाए गए, महाकाल के गाल । 
 
महाकाल के गाल, महाजन गाल बजाते । 
राजनीति का खेल, आपदा रहे भुनाते । 
 
आहत राहत बीच, चाल चल जाते गन्दी । 
हे शिव कैसा नृत्य, बचे क्यूँ नेता नंदी ॥
 


जहर बुझाए तीर, कलेजा ज्यों ज्यों हूके-

 चूके ना वाणी कभी, भेदे अपना लक्ष्य |
दुर्जन सज्जन चर अचर, चाहे भक्ष्याभक्ष्य |
चाहे भक्ष्याभक्ष्य, ढाल-वाणी बारूदी |
छोड़े जिभ्या बाण, ढाल क्यों नाहक कूदी |
जहर बुझाए तीर, कलेजा ज्यों ज्यों हूके |
जाएँ रिश्ते टूट, किन्तु ना जिभ्या चूके || ,

Wednesday 26 June 2013

उत्तरीय उतरे उमड़, उलथ उत्तराखंड-




पी.सी.गोदियाल "परचेत" 
 फेंकू का धत फोबिया, व्याधि व्यथा विकराल |
राल घोंटते गान्धिभक्त, है चुनाव का साल |

है चुनाव का साल, विदेशी दौरे छोड़े |
चले अढाई कोस, नहीं नौ दिन हैं थोड़े |

बेतरतीब विकास, गधह'रा हुल'के रेंकू |
किसका वह व्यक्तव्य, मीडिया असली फेंकू ||


श्लेष अलंकार पहचाने
गधह'रा हुल'के = बच्चे रेंकने के लिए हुलकते हैं

नमन नमस्ते नायकों, नम नयनों नितराम-

 (1)
नमन नमस्ते नायकों, नम नयनों नितराम |
क्रूर कुदरती हादसे, दे राहत निष्काम  |

दे राहत निष्काम, बचाते आहत जनता |
दिए बगैर बयान, हमारा रक्षक बनता |

अमन चमन हित जान, निछावर हँसते हँसते |
भूले ना एहसान, शहीदों नमन नमस्ते -
 (2)
 उत्तरीय उतरे उमड़, उलथ उत्तराखंड |
कुदरत का कुत्सित कहर, देह भुगत ले दंड |

देह भुगत ले दंड, हुवे रिश्ते बेमानी |
पानी का बुलबुला, हुआ है पानी पानी |

क्या गंगा आचमन, चमन सम्पूर्ण प्रस्तरी |
चालू राहतकार्य,  उत्तराभास उत्तरी ||

 उत्तराभास=अंड-बंड उत्तर / दुष्ट उत्तर


ज़िंदा लेते लूट, लाश ने जान बचाई -

खानापूरी हो चुकी, गई रसद की खेप । 
खेप गए नेता सकल, बेशर्मी भी झेंप । 

बेशर्मी भी झेंप, उचक्कों की बन आई । 
ज़िंदा लेते लूट, लाश ने जान बचाई । 

भूखे-प्यासे भटक, उठा दुनिया से दाना ।
लाशें रहीं लटक, हिमालय मुर्दाखाना ॥ 

"नेत्र शिव का खुल गया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) 

सन्नाटा पसड़ा पड़ा, सड़ता हाड़ पहाड़ |
कलरव कल की बात है, गायब सिंह दहाड़ |  


गायब सिंह दहाड़, ताड़ अब कारस्तानी |
कुदरत से खिलवाड़, करे फिर पानी-पानी |  


सुधरो नहीं सिधार, खाय झापड़ झन्नाटा |
मद में माता मनुज, सन्न ताके सन्नाटा ||

Tuesday 25 June 2013

राजनीति का खेल, आपदा रहे भुनाते-




"मेघ को कैसे बुलाऊँ?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) 

 बिटिया के घर का पानी, तब नहीं पिया करते थे |
पिया संग गौरी विचरे,  आशीष दिया करते थे ||

चरोधाम बहाना है, अब होटल में पिकनिक करते -
मेघ बहाना जान गए, उत्पात किया  करते हैं ||


व्यथा … !

  बाड़े में घुरघुर करे, भरे धरे अवसाद |
काली साया सी बढ़े, फोड़ा भरे मवाद |
फोड़ा भरे मवाद, याद वह रूह कंपाये |
मक्खी मय जीवाणु, गन्दगी भी फैलाए |
रविकर की अरदास, शीघ्र बीते दिन गाढ़े |
सुखमय सरल भविष्य, तोड़ कर आँय किबाड़े ||


ज़िंदा लेते लूट, लाश ने जान बचाई -

खानापूरी हो चुकी, गई रसद की खेप । 
खेप गए नेता सकल, बेशर्मी भी झेंप । 

बेशर्मी भी झेंप, उचक्कों की बन आई । 
ज़िंदा लेते लूट, लाश ने जान बचाई । 

भूखे-प्यासे भटक, उठा दुनिया से दाना ।
लाशें रहीं लटक, हिमालय मुर्दाखाना ॥

नंदी को देता बचा, शिव-तांडव विकराल । 

भक्ति-भृत्य खाए गए, महाकाल के गाल । 

 

महाकाल के गाल, महाजन गाल बजाते । 

राजनीति का खेल, आपदा रहे भुनाते । 

 

आहत राहत बीच, चाल चल जाते गन्दी । 

हे शिव कैसा नृत्य, बचे क्यूँ नेता नंदी ॥
तप्त-तलैया तल तरल, तक सुर ताल मलाल ।

ताल-मेल बिन तमतमा, ताल ठोकता ताल ।



ताल ठोकता ताल, तनिक पड़-ताल कराया ।

अश्रु तली तक सूख, जेठ को दोषी पाया ।



कर घन-घोर गुहार, पार करवाती नैया ।

तनमन जाय अघाय, काम रत तप्त-तलैया ।
तक=देखकर

 AAWAZ -
  खाकी निक्कर डाल के, देखभाल में लीन|
कौन कहाँ के लोग ये, कैसा अद्भुत सीन |

कैसा अद्भुत सीन, इन्हें अनुमति दी किसने |
क्या है इनका दीन, अश्रु ना देते रिसने |

चैनल वाले धूर्त, कसम है उनको माँ की |
दिखलाओ यह दृश्य, जहाँ निक्कर है खाकी || 

 
(१)
कपड़ा लत्ता लूट लें, लेते लूट लंगोट |
देख भागते भूत को, देकर जाता वोट ||
(२)
नंदी पर करते कृपा, मरें भक्त गन भृत्य |
तांडव गौरी कुंड पर, हे शिव कैसा कृत्य ||
(३)
अमी अमीकर आचमन, किन्तु अमीत अमीर |
चंद्रयान से चीरकर, दे संकुल को पीर |


Monday 24 June 2013

राजनीति का खेल, आपदा रहे भुनाते-



 

केदारनाथ धाम के दर पर

  (rohitash kumar)

हे शिव कैसा नृत्य, बचे क्यूँ नेता नंदी-

नंदी को देता बचा, शिव-तांडव विकराल । 
भक्ति-भृत्य खाए गए, महाकाल के गाल । 
महाकाल के गाल, महाजन गाल बजाते । 
राजनीति का खेल, आपदा रहे भुनाते । 
आहत राहत बीच, चाल चल जाते गन्दी । 
हे शिव कैसा नृत्य, बचे क्यूँ नेता नंदी ॥


तप्त-तलैया तल तरल, तक सुर ताल मलाल ।
ताल-मेल बिन तमतमा, ताल ठोकता ताल ।

ताल ठोकता ताल, तनिक पड़-ताल कराया ।
अश्रु तली तक सूख, जेठ को दोषी पाया ।

कर घन-घोर गुहार, पार करवाती नैया ।
तनमन जाय अघाय, काम रत तप्त-तलैया ।
तक=देखकर

Thursday 6 June 2013

हार्दिक बधाइयाँ --

 विवाह की इकतीसवीं वर्षगाँठ :
 ब्याह हुये इकतीस सुहावन साल भये नहिं भान हुआ 
 

नित्य निरंतर जीवन में पल का पहिया गतिमान हुआ 
 
छाँव कभी अरु धूप कभी हर मौसम एक समान हुआ...
अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ) पर 
अरुण कुमार निगम

हार्दिक बधाइयाँ 
  शुभकामनाये

बाहिन-बांह फंसाय रहे, लिपटे जस फोर बनावत हैं |
काह कहें जब झूठ लिखें, इकतीस हमें बतलावत हैं |
ब्याह हुवे दुइ वर्ष हुवे, मन से मुखड़े मुसकावत हैं |
क्यूँ भइया-भउजी मिलके, अरुणे-सपने भरमावत हैं -
----ravikar 

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) has left a new comment on your post "पलटे नित-प्रति पृष्ट, आज पलटे फिर रविकर चर्चा मंच ...": 

शादी की इकतीसवीं सालगिरह पर मित्र
दी सुंदर शुभ-कामना , खूब सवैया चित्र
खूब सवैया चित्र , हवायें महकी -महकी
आलम है रंगीन , दिशायें बहकी -बहकी
मैं भी मन की बात , कहूंगा सीधी-सादी
लगता मानों अभी-अभी ही की थी शादी

Tuesday 4 June 2013

झारखण्ड सी जिन्दगी, उगें हृदय में शूल-

टुकड़े-टुकड़े था  हुआ,  सारा   बड़ा   कुटुम्ब, 
पाक, बांगला ब्रह्म बन, लंका सम जल-खुम्ब || 


अब घर छत्तिसगढ़ हुआ, चंडीगढ़ था यार,
पांडीचेरी चेरि सी, बिखरा घर-परिवार ||

झारखण्ड सी जिन्दगी, उगें हृदय में शूल,
खनिज सम्पदा  लुटा के,  मार नागरिक-मूल ||
(नक्सल विचार )


नैनों  के  सैलाब  से,  कोसी   करती  रोष,
बाढ़ प्रबन्धन में बहा, सब विहार का कोष ||
(आंसुओं में सब बह गया )

घोर उड़ीसा हो गया, सूख-साख जल स्रोत्र,
पानी की खातिर करूँ,  मान-मनौवल होत्र ||
(सम्मान के लिए मान-मनौवल )

काश्मीर  किस्मत  हुई, डाका  डाले  पाक,
ख़त्म हुई इज्जत गई,  बन जम्मू-लद्दाक ||
(J & K  में केवल घाटी की  ही इज्जत / मोहल्ले में केवल उनकी )

बादल  सा  दिल फट गया,  बहा  उत्तराखंड,
कर लेते बर्दाश्त फिर, दिल्ली का पाखण्ड ||
(बादल फटने के बाद हुई तबाही, हाई-कमान केवल पाखण्ड करे )

उम्मीदी गुजरात की, आस्था का आगार | 
माँ   शेरावाली    करे ,  रविकर  बेडा   पार  ||
(सुख-समृद्धि सम्पन्नता और शान्ति)

महाराष्ट्र का राज भी,  मचा  रहा  आतंक,
अंडमान  नित मारता ,  तन्हाई का डंक ||
(राज दार  /  अकेलापन   )

तेलंगाना  सा लगे, सारा  मध्य प्रदेश,
आंध्रा में फैला चले, ईर्ष्या सह विद्वेष ||
(मारकाट / भूख-प्यास और ससुराल में बुराई )

तमिलनाडु अम्मा चली, बाबू का करुणांत |
कर-नाटक का खात्मा,  लड़ते  संत-महंत ||
(सास तीर्थयात्रा, बाबु जी स्वर्ग )  (समस्या-समाधान के लिए टोना-टटका, पूजा पाठ)

हरियाणा-पंजाब  हो,   महफ़िल सजती शाम,
अरुणाचल के उदय से, होगा सम आसाम ||
(दारुबाज दोस्तों का साथ)     (नई सुबह ----समाधान )

केरल  के साहचर्य  से, यूपी  के  उत्पात,
बंद हो सकेंगे कहाँ,  घातों  पर  प्रतिघात ||
(पढ़े-लिखे समझदार)    (नोंक-झोंक)

 इन्तजार अब कर रहे, संस्कृति हो बंगाल,
काट-पीट कर फेंक दे, वैमनस्य  के  जाल ||
(रास-रंग, बेहतर समझबूझ)  (कूटनीतिक परिदृश्य )

देह   हमारी   हो   गई,   पूरी    राजस्थान,
हरियाली अब कर सके, गंगा का वरदान ||
( विषम परिस्थिति )

जल्दी     गोवा    बनेगी,   लक्षद्वीप   की    रेत,
मणि-मेघा-सिक्किम-दमन, त्रिपुरा-लैंड समेत ||