Tuesday 27 December 2016

लड्डू मोती चूर के-

गुणकारी है स्वास्थ सुधारे।
नीम करेला मित्र हमारे।
लेकिन जिभ्या रही मचलती।
दोनों की कड़ुवाहट खलती।
आंखे देखें घूर के।

लड्डू मोतीचूर के।।१।।


दिखा झूठ का स्वाद अनोखा।
खुद बोलो तो लगता चोखा।
किन्तु दूसरा जब भी बोले।
कड़ुवाहट काया में घोले।
तेवर दिखें हुजूर के।
लड्डू मोती चूर के।।२।।

बड़े काम का है रत्नाकर।
धन्य धन्य हम मोती पाकर।
मछुवा मछली पकड़े जाकर।
लौटे केवल पैर भिगाकर।
बन्दे कई सुदूर के।
लड्डू मोतीचूर के।।३।।

दुखी नहीं हम अपने दुख से।
रहें दुखी गैरों के सुख से।
उसकी आमदनी की चर्चा।
ज्यादा लागे अपना खर्चा ।
ढोल सुहावन दूर के।
लड्डू मोती चूर के।।४।।

Sunday 25 December 2016

मांगे मिले न भीख, जरा चमचई परख ले-


खले चाँदनी चोर को, व्यभिचारी को भीड़।
दूजे के सम्मान से, कवि को ईर्ष्या ईड़।
कवि को ईर्ष्या ईड़, बने अपने मुंह मिट्ठू।
कवि सुवरन बिसराय, कहे सरकारी पिट्ठू।
रविकर तू भी सीख, किन्तु पहले तो छप ले।
मांगे मिले न भीख, जरा चमचई परख ले।।

Thursday 22 December 2016

समय बीतने पर बिके, वे रद्दी के भाव-


छपने का अखबार में, जिन्हें रहा था चाव।
समय बीतने पर बिके, वे रद्दी के भाव।।
रोला
वे रद्दी के भाव, बनाये ठोंगा कोई।
जो रचि राखा राम, वही रविकर गति होई।
मिर्ची नमक लपेट, पेट पूजा कर फेका।
कोई दिया जलाय, नाम मत ले छपने का।।

Friday 16 December 2016

टाइम रिटायरमेंट का ज्यों पास आता जा रहा -

टाइम रिटायरमेंट का ज्यों पास आता जा रहा ।
उत्साह बढ़ता जा रहा, आकाश नीचे आ रहा । 

खाया कमाया जिंदगी भर पितृ-ऋण उतरे सभी । 
संतान को इन्सां बनाया अब नहीं भटके कभी । 
ख्वाहिश तमन्ना शौक सारे आज हम पूरी करें। 
चाहे रहे जिन्दा युगों तक आज ही या हम मरें । 
कविमन हुआ मदमस्त रविकर गीत रच रच गा रहा । 
टाइम रिटायरमेंट का ज्यों पास आता जा रहा ।। 

कविता करूँगा अब पढूंगा मंच पर जाकर वहां । 
माँ शारदे की वंदना खुशियां बिखेरूँगा जहाँ । 
आवाज देगी मौत भी तो कह सकूँगा रुक जरा । 
यह काफिया तो लूँ मिला, पूरा करूँ यह अंतरा । 
दुनिया करेगी फिर सिफारिश रूप रविकर भा रहा । 
टाइम रिटायरमेंट का ज्यों पास आता जा रहा ।। 

यह लोन लकड़ी तेल ही काया जलाये-भून दे । 
परिवार की खातिर जवानी अस्थि-मज्जा खून दे। 
निकला कहाँ कब वक्त रविकर आजतक अपने लिए । 
संसार की खातिर नहीं परिवार की खातिर जिए । 
अब देश की खातिर जियूँगा लोकहित अब भा रहा ॥ 
टाइम रिटायरमेंट का ज्यों पास आता जा रहा ।। 


Sunday 11 December 2016

जय गणेशा

जय जय गजानन जय गणेशा विघ्नहर्ता आइये।
शुभ सूंढ़ क्यूं टेढ़ी हुई हर भक्त को बतलाइये।
कैसे विराजे दीर्घकाया मूस पर समझाइये।
जय जय गजानन जय गणेशा विघ्नहर्ता आइये।।
ब्रह्माँड मे गणपति सदा पाते रहे पूजा प्रथम।
लम्बा उदर इक दाँत टूटा स्वागतम् प्रभु स्वागतम्।
शुभ लाभ विद्या बुद्धि के दाता दया दिखलाइये।
जय जय गजानन जय गणेशा विघ्नहर्ता आइये।
हों रिद्धि दायें सिद्धि बायें मोहिनी छवि दो दिखा।
दुर्भाग्य काटो भक्त के यदि माथ पर रविकर लिखा।
फिर मोदकम् जम्बू फलम् उदरस्थ करके जाइये।
जय जय गजानन जय गणेशा विघ्नहर्ता आइये।

Monday 14 November 2016

त्याग लोभ धर धैर्य, मान रविकर रख लेना


देना है तो दान दो, लेना है तो ज्ञान।
अगर निगलना ही पड़े, निगलो निज अपमान।
निगलो निज अपमान, चलो गम खाना सीखो।
पीना सीखो क्रोध, नहीं बेमतलब चीखो।
त्याग लोभ धर धैर्य, मान रविकर रख लेना।
कर लेना यश प्राप्त, फेंक मद ईर्ष्या देना ।।

Monday 7 November 2016

रविकर के दोहे



दिया दूसरों ने जनम, नाम, काम, सद्ज्ञान।
ले जायें शमशान भी, तू क्यों करे गुमान ।।

दनदनाय दौड़े मदन, चढ़े बदन पर जाय।

खजुराहो को देखकर, काशी भी पगलाय।।



कैसे कोई अन्न जल, कर सकता बरबाद।

संसाधन साझे सकल, रखना रविकर याद।।



शशि में सुंदरता दिखे, दिखे सूर्य में शक्ति।

सुंदरतम कृति ईश की, दर्पण में जो व्यक्ति।।



ठोस कदम ऐसा उठा, पुल में पड़ी दरार।

फूंक फूंक रविकर कदम, रखे राज्य सरकार।।



ढेर ज्ञान संग्रह किया, लेकिन रविकर व्यर्थ।

करे वरण कुछ आचरण, होगा तभी समर्थ।।



नहीं मिलें इक वक्त पर, कभी रुदन-मुस्कान |

जिस क्षण ये दोनों मिलें, वह क्षण प्रभु वरदान ||


Monday 24 October 2016

मरते रहे जवान, होय तेरह दिन स्यापा


व्यापारी फिल्मी जगत, कलाकार चुपचाप।
डाक्टर अधिवक्ता मगन, एक्टीविस्ट प्रलाप।
एक्टीविस्ट प्रलाप, खिलाड़ी नेता सारे।
इति अंधा कानून, बाँधता हाथ हमारे।
मरते रहे जवान, होय तेरह दिन स्यापा।
इसीलिए आतंक, विश्व भर मे है व्यापा।।

Friday 7 October 2016

चिंता रहे छुपाय, पिताजी मिले विहँसकर-

हँसकर विद्यालय गई, घर आई चुपचाप |
देरी होती देख माँ, करती शुरू प्रलाप |
करती शुरू प्रलाप, देवता-देवि मनाये |
सभी लगाएं दौड़, थके-माँदे-घबराये |
मिलते ही मुस्कात, बहन माँ भाई रविकर |
चिंता रहे छुपाय, पिताजी मिले विहँसकर ||

Saturday 1 October 2016

डाल मट्ठा रोज जड़ मे मुफ्त लेजा।।

बोलियों से चोट खाया है कलेजा।
ऐ शराफत अब जरा तशरीफ लेजा।।
शब्द भेजा खा रहे थे अब तलक वो
क्यूं ललक से यूं पलट पैगाम भेजा।।
जो गले मिलते रहे थे प्यार से तब
खाट पर बैठे, पड़ो उनके गले जा।
जब चुगी चिड़िया हमारा खेत सारा
हाथ पर यूं हाथ रखकर मत मले जा।
दुष्ट करते खोखला खा कर यहीं का
गा रहे जो शत्रु की, फौरन चले जा।
याद रख रविकर सदी से चोट सहता
हो बरेली बांस वापस अब खले जा।।
रोज बावन हाथ बढ़ती बेल विष की
डाल मट्ठा रोज जड़ मे मुफ्त लेजा।।

Thursday 29 September 2016

पी ओ के अपनी धरा, धरो मगज में बात-

पी ओ के की गन्दगी, सैनिक रहे हटाय।
इसी स्वच्छता मिशन से, पाक साफ हो जाय।।

पी ओ के अपनी धरा, धरो मगज में बात।
आते जाते हम रहें, दिन हो चाहे रात।।



चौड़ी छाती हो गयी, रविकर छप्पन इंच।
धूर्त मीडिया को करे, वार-सर्जिकल पिंच।
वार सर्जिकल पिंच, रखैलें बरखा दत्ती।
रही खोजती लोच, जला के दिन में बत्ती।
ह्युमेन राइट आज, करेगा हरकत भौंड़ी।
भड़ुवे करें विलाप, भक्त खा रहे कचौड़ी।।



मना मुहर्रम उरी में, धुरी चुकी है घूम।
मची पाक में खलबली, दीवाली की धूम।
दीवाली की धूम, बूम बुम बम बम बारी।
परेशान था देश, किन्तु करके तैयारी।
देते धावा बोल, पूर्ण कर रहे कामना।
करो ठीक भूगोल, तिरंगा उच्च थामना।।

Sunday 25 September 2016

दाता अपने नाम, भेजते रहिए डाटा-


डाटा जैसे अॉन हो, हे दाता भगवान।
प्राप्त परमगति झट करे, यह मूरख इंसान।
यह मूरख इंसान, ध्यान योगासन रोजा।
भूले धर्म विभेद, खुदा डाटा में खोजा।
परिजन स्वजन बिसार, चाहता है सन्नाटा।
दाता अपने नाम, भेजते रहिए डाटा।।

Thursday 22 September 2016

अपराध ये करता रहा

हो सर्व-व्यापी किन्तु मैं तो खोजता-फिरता रहा।
तुम शब्द से भी हो परे पर नाम मैं धरता रहा ।
हो सर्व ज्ञाता किन्तु इच्छा मैं प्रकट करता रहा।
अपराध ये करता रहा पर कष्ट तू हरता रहा।।

Monday 19 September 2016

माँ कालिका

दुर्मुख असुर दारुण दुखों से साधु मन छलने लगा।
वरदान पा कर दुष्ट आ कर विश्व को दलने लगा।
ब्रहमा वरुण यम विष्णु व्याकुल इंद्र को खलने लगा।
सुर साधु बल-पौरुष घटा विश्वास जब ढलने लगा।

तब हो इकट्ठा देवता कैलास पर्वत पर गये।
गौरा विराजे रूप छाजे सर्व आनंदित भये।
बोले सकल सुर एक सुर मे कर कृपा जगदम्बिके।
दुर्मुख असुर संहार कर दीजै अभय माँ कालिके।

सुन कर विनय निर्णय करे माँ रूप मारक धर रही।
एकांश शिव मुख मे गया विषपान मैया कर रही।
आकार सम्यक रंग काला कंठ में शिव के बने।
तब तीसरा शिव नेत्र खोलें युद्ध अति-भीषण ठने।

माँ कालिके के माथ पर भी नेत्र शिव सम तीसरा।
शुभ चंद्र रेखा भाल पर विष शिव कराली था भरा।
धारे विविध आभूषणों को अस्त्र-शस्त्रों को लिए।
क्रोधित भयंकर रूप धारे रक्त खप्पर में पिए।।

यह देख कुल सुर-सिद्ध भागे कालिके हुंकार दे।
हुंकार से दुर्मुख मरे कुल दैत्य माँ संहार दे।
पर क्रोध बढ़ता देखकर सुर साधुजन घबरा गये।
तब रूप शिशु का धार कर पैरों तले शिव आ गये।

ममतामयी माँ ले उठा शिशु को पिलाती दुग्ध है।
यह दृश्य पावन देख कर नश्वर-जगत भी मुग्ध है।
शिव दुग्ध के ही साथ मॉ का क्रोध सारा पी गये।
माँ कालिका मूर्छित हुई शिव नृत्य फिर करते भये।

तांडव-भयंकर हो शुरू चैतन्य हो माँ कालिके ।
खुद मुंडमाला डालकर तांडव करे चंडालिके।
मॉ योगिनी मॉ कालिके कुल कष्ट भक्तों का हरो।
इस देश रविकर ग्राम पर कुल पर कृपा माता करो।

Tuesday 30 August 2016

कब से 'रविकर' तन-बदन तलता रहा -

रात दिन जीवन मुझे खलता रहा | प्यार और विश्वास भी छलता रहा | क्या बुझाएगी हवा उस दीप को जो सदा तूफान में जलता रहा | तेल की बूंदे इसे मिलती रही मुश्किलों का दौर यूँ टलता रहा -- कुछ थी हिम्मत और कुछ थे हौंसले अस्थिया-चमड़ी-वसा गलता रहा खून के वे आखिरी कतरे चुए जिस बदौलत दीप यह पलता रहा अब अगर ईंधन चुका तो क्या करें कब से 'रविकर' तन-बदन तलता रहा ||

Thursday 28 July 2016

विद्वानों से डाँट, सुने रविकर की मंशा

सुने प्रशंसा मूर्ख से, यह दुनिया खुश होय |
डाँट खाय विद्वान की, रोष करे दे रोय |

रोष करे दे रोय, सहे ना समालोचना |
शुभचिंतक दे खोय, करे फिर बंद सोचना |

विद्वानों से डाँट, सुने रविकर की मंशा |
करता रहे सुधार,  और फिर  सुने प्रशंसा ||



Monday 18 July 2016

गले हमेशा दाल, टांग चापे मुर्गे की-

मुर्गे की इक टांग पे, कंठी-माला टांग |
उटपटांग हरकत करो, कूदो दो फर्लांग |

कूदो दो फर्लांग, बाँग मुर्गा जब देता |
चमचे धूर्त दलाल, विषय के पंडित नेता |

रहे चापते माल, सोचते हैं आगे की |
गले हमेशा दाल, टांग चापे मुर्गे की ||

पड़ा तरुण तब बोल, अलग रहिये अब पापा-

पापा सब कुछ जानते, वे तो हैं विद्वान।
बच्चा बच्चों से कहे, मेरे पिता महान ।

मेरे पिता महान, शान में पढ़े कसीदे।
कहता किन्तु किशोर, ध्वस्त जब हो उम्मीदें।

कम व्यवहारिक ज्ञान, किया चिड़चिड़ा बुढ़ापा।
पड़ा तरुण तब बोल, अलग रहिये अब पापा।।

Tuesday 12 July 2016

रविकर जैसे शेर को, कुत्ते भी लें घेर-

पानी ढोने का करे, जो बन्दा व्यापार |
मुई प्यास कैसे भला, उसे सकेगी मार ||

प्रगति-पंख को नोचता, भ्रष्टाचारी-बाज |
लेना-देना कर रहा, फिर भी सभ्य-समाज ||

मोटी-चमड़ी में करें, खटमल जब भी छेद |
तड़प तड़प के झट मरे, पी के खून-सफ़ेद ||

गुण-अवगुण की खान तन, मन संवेदनशील ।
इसीलिए इंसान हूँ, रविकर मस्त दलील ||

समय समय की बात है, समय समय का फेर |
रविकर जैसे शेर को, कुत्ते भी लें घेर ||

शादी की तीसवीं वर्षगाँठ


बत्ती सी कौंधी सुबह, जब देखी यह टैग।
गई खुमारी सब उतर, आधा दर्जन पैग।
आधा दर्जन पैग, मुबारक वर्षगाँठ हो।
तीस साल व्यतीत, हमारे और ठाठ हों।
रहो स्वस्थ सानन्द, लगे कुछ यहाँ कमी सी।...
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Manu GuptaSwasti Medha और 2 अन्य लोग के साथ.
We wish you a very Happy Anniversary Papa (दिनेश चन्द्र गुप्ता) n Mummy (Seema Gupta

Wednesday 6 July 2016

करो गलत नित सिद्ध, लगी लत कैसे जाती

झुकते झुकते झुक गयी, कमर सहित यह रीढ़ |
मुश्किल से रिश्ता बचा, बची तुम्हारी ईढ़ |

बची तुम्हारी ईढ़, तभी भरदिन गुर्राती |
करो गलत नित सिद्ध, लगी लत कैसे जाती |

रविकर सही तथापि, सही हर झिड़की रुक रुक।
मलती फिर तुम हाथ, जिया जब सम्मुख झुक झुक।।

Sunday 3 July 2016

सत्ता री मत बैठ तू, सत्तारी हर वक्त

सत्ता री मत बैठ तू,  सत्तारी हर वक्त |
जन-गण-मन मरता दिखा, रोक बहाना रक्त |

रोक बहाना रक्त,  खोज मत नया-बहाना |
दुष्ट सजा ना पाय, शुरू कर फौज सजाना |

सत्तावन सी क्रान्ति, करे जन-मन तैयारी |
शेष बची ना भ्रान्ति, बैठ मत अब सत्तारी ||

Wednesday 29 June 2016

मुसीबत खड़ी सामने हो कभी

मुसीबत खड़ी सामने हो कभी,
कौन जाता वहाँ से यही देखिये |

बड़ा मतलबी है हमारा शहर 
कौन रुकता वहाँ पर नहीं देखिये |

डटो सामने तुम करो सामना 
जो साधन वहाँ पर वही देखिये |

मिलेगी विजय और पहचान होगी 
गलत देखिये कुछ सही देखिये ||

Wednesday 8 June 2016

मैं माँ का अनमोल खिलौना

मैं माँ का अनमोल खिलौना । 
नन्हा मुन्हा प्यारा छौना । 
थपकी दे माथा सहलाती 
लोरी गाती दूध पिलाती 
हरदिन अपने पास सुलाती |
सूखे में सरकाती जाती - 
भीगा माँ का रहे बिछौना । 
मैं माँ का अनमोल खिलौना ।।


असमय जागा असमय रोया |
असमय माँ का बदन भिगोया |
मालिस करके वह नहलाती |
इक पुकार पे दौड़ी आती |
माँ की राह ताकता रहता 
जब तक था मैं आधा-पौना |
मैं माँ का अनमोल खिलौना ।।

बिना बताये बाहर जाता |
बड़े बहाने रहा बनाता |
जब पापा को गुस्सा आता |
तुरत बचाने आती माता |
करवा देती शादी-गौना |
मैं माँ का अनमोल खिलौना ।।

पोते पोती पाती माता |
उनसे मन बहलाती माता |
बार बार जब खाँसी माता |
हुई बहू से बाती-बाता |
रविकर तब हो जाता बौना || 
मैं माँ का अनमोल खिलौना ।।

Monday 30 May 2016

रविकर अस्वीकार, करे तारीफें झूठी

ठीक-ठाक कोशिश करो, बुरा कहे ना कोय।
बुरा-भला मुँह पर कहे, अगर खता कुछ होय।

अगर खता कुछ होय, करे आकलन अद्यतन।
पर मरने के बाद, व्यर्थ जीवन-मूल्यांकन।

पहुँचा कब्रिस्तान, सुने कुछ गल्प अनूठी ।
रविकर अस्वीकार, करे तारीफें झूठी ॥  


Tuesday 15 March 2016

इन सब से वे ठीक, बने जो आधे-पौने -

राम-भरोसे चल पड़े, फैलाने सुविचार । 
धर्म-विरोधी ले उठा, हाथों में हथियार ।

हाथों में हथियार, कर्म तो गजब-घिनौने । 
इन सब से वे ठीक, बने जो आधे-पौने । 

धर्म न्याय विज्ञान, भूमि भी इनको कोसे । 
दुनिया यह तूफ़ान, झेलती राम-भरोसे ॥ 

Sunday 13 March 2016

घाट घाट घाटा घटा, घुट घुट घोटी लार।

गोटी दर गोटी पिटी, मिली हार पे हार।
घाट घाट घाटा घटा, घुट घुट घोटी लार।

घुट घुट घोटी लार, किया घाटे का सौदा। 
भूत रहा नाकाम, दाँव पर लगा घरौंदा।

सतत दुखद परिणाम, लगे है किस्मत खोटी। 
भागे रविकर भूत, बचा ना सका लंगोटी।।

Thursday 3 March 2016

नहीं कह रहा मैं इसे-

नहीं कह रहा मैं इसे, कहता फौजी वीर |
अंदर के खंजर सहूँ , या सरहद के तीर ||

नहीं कह रहा मैं इसे, कह के गए बुजुर्ग |
जायज है सब युद्ध में, रखो सुरक्षित दुर्ग ||

नहीं कह रहा मैं इसे, कहें बड़े विद्वान |
लिए हथेली पर चलो, देश धर्म हित जान ||

नहीं कह रहा मैं इसे, कहते रहे कबीर |
क्या लाया क्या ले गया, यूँ ही मिटे शरीर ||

नहीं कह रहा मैं इसे, कह के गए वरिष्ठ |
हो अशिष्ट फिर भी सदा, करिये क्षमा कनिष्ठ ||

नहीं कह रहा मैं इसे, कहें सदा आचार्य |
बिना विचारे मत करो, रविकर कोई कार्य ||

नहीं कह रहा मैं इसे, कहे किसान मजूर |
राजनीति की रोटियां, सेंको नहीं हुजूर ||

नहीं कह रहा मैं इसे, कहे आपका छात्र |
विद्यालय में क्यों करूँ, आना जाना मात्र ||

नहीं कह रहा मैं इसे, कहता किन्तु समाज |
राजा फिर शादी करे, ताके फिर युवराज ||


Monday 29 February 2016

निद्रा मृत्यु समान, नींद में पैर हिलाते

घोड़ा तो फिर से बिका, गया बेच के सोय।
लुटा माल-असबाब कुल, सौदागर ले रोय।

सौदागर ले रोय, उसे रविकर समझाते |
निद्रा मृत्यु समान, नींद में पैर हिलाते |

मान अन्यथा लाश, सजा दे चिता निगोड़ा |
दुनिया तो बदनाम, बेच दे लंगड़ा घोड़ा ||

Monday 22 February 2016

कौड़ी करे न खर्च, कहाँ इक्यावन दो सौ

(1)
दो सौ इक्यावन लगे, फोन बुकिंग आरम्भ।
दिखा करोड़ों का यहाँ, बेमतलब का दम्भ। 


बेमतलब का दम्भ, दर्जनों बुक करवाये।
नोचे बिल्ली खम्भ, फोन आये ना आये।

मुफ्तखोर उस्ताद, दूर रहता है कोसों।
कौड़ी करे न खर्च, कहाँ इक्यावन दो सौ।।
(2)
धोखा खाने का मजा, तुम क्या जानो मित्र।
नहीं भरोसा तुम करो, लगता तभी विचित्र।

लगता तभी विचित्र, भरोसा करना सीखो।
बढे हर्ष उन्माद, ख़ुशी से उछलो चीखो।

हो जाए अतिरेक, होय सब चोखा चोखा।
रविकर खा के देख, मजा देता तब धोखा।।

Sunday 21 February 2016

पर उनको ना भाय, ब्लैक आउट कर देता-

डंडे पर झंडे फहर, लहर लहर लहराय |
देशद्रोहियों पे कहर, पर उनको ना भाय |

पर उनको ना भाय, ब्लैक आउट कर देता |
पप्पू भाय अघाय, आप अब्बा से नेता |

रविकर रहा उबाल, खोज अफजल के अंडे |
खाए नमक लगाय, गिने फिर जाके डंडे ||

Thursday 18 February 2016

काँखे भारत वर्ष, "पाक" है साफ़ कन्हैया

मिला समर्थन पाक से, जे एन यू में हर्ष।
छात्र वहाँ के साथ में, काँखे भारत वर्ष।


काँखे भारत वर्ष, "पाक" है साफ़ कन्हैया ।
देशद्रोह आरोप, नकारे पाकी भैया।

देवासुर संग्राम, करे वह सागर मंथन। 
अमृत रहा निकाल, तभी तो मिला समर्थन।।

Tuesday 16 February 2016

बकरी पीती दूध, दुही जाये गौ माता

गौ माता का दूध तो, है ही अमृत तुल्य |
तेरा गोबर मूत्र भी, औषधि रूप अमूल्य |

औषधि रूप अमूल्य, गाय इक और दुधारू| ||
करदाता वह गाय, हमेशा खुद पर भारू |

कर शोषण सरकार, बनी है भाग्य विधाता |
बकरी पीती दूध, दुही जाये गौ माता ||

Monday 15 February 2016

मरता गया जमीर, किन्तु गद्दारी जिन्दा


भ्रम फ़ैलाने में लगे, बड़े बड़े श्रीमंत।
कहें हकीकत राय पर, अपना झूठ तुरंत।

अपना झूठ तुरंत, नहीं होते शर्मिंदा।
मरता गया जमीर, किन्तु गद्दारी जिन्दा।

अफजल गुरु घंटाल, आजकल इसी बहाने।
चले बहाने रक्त, सियासी भ्रम फ़ैलाने।।

Sunday 14 February 2016

मूढात्मा चित्कारती, सुन माँ करुण पुकार-

घनाक्षरी 
श्वेत पट में लिपट, धवलहार धारिणी
वीणा लिए पदम् पे, शारदे विराजती।
पूजते त्रिदेव नित, इंद्र वक्रतुंड यम
वरुण आदि साथ ले, उतारते आरती।
अंधकार दूर कर, ज्ञान का उजेर भर
मूढ़ द्वार पर पड़ा, त्राहिमाम भारती।
पंचमी बसंत आज, चहुँओर रंग रास
जड़ भी चैतन्य होय, जय हो उच्चारती।।


कुण्डलियाँ 
मातु शारदे शत नमन, नमन जीवनाधार। 
मूढात्मा चित्कारती, सुन माँ करुण पुकार। 
सुन माँ करुण पुकार, कृपा कर वीणापाणी। 
आकर स्वयं विराज, पुकारे रविकर वाणी। 
कर जग का कल्याण, शिवम् संसार सार दे। 
करके तमस विनाश, ज्योति दे मातु शारदे।।

Thursday 4 February 2016

सदा सुहागिन मनु रहे, जोड़ी रहें प्रसन्न-

बेटी दामाद के साथ हम दोनों 
कुण्डलियाँ छंद 

अभिभावक अभिभूत हैं, व्याह हुआ संपन्न । 
सदा सुहागिन मनु रहे,  जोड़ी रहें प्रसन्न। 
जोड़ी रहें प्रसन्न, दुलारी बिटिया रानी।
 करते कन्यादान, नहीं फिर भी बेगानी । 
पूरे फेरे सात, प्रज्वलित पावन पावक। 
रखो वचन कुल याद , राम तेरे अभिभावक।।

दोहे 
साहस संयम शिष्टता, अनुकम्पा औदार्य |
मितव्ययी निर्बोधता, न्याय-पूर्ण सद्कार्य ||

क्षमाशीलता सादगी, सहिष्णुता गंभीर |
सच्चाई प्रफुल्लता, निष्कपटी मन धीर ||

शुद्धि स्वस्ति मेधा रहे, हो चारित्रिक ऐक्य |
दानशीलता आस्तिक, अग्र-विचारी शैक्य ||

सात वचन 

पहले फेरे के वचन,  पालन-पोषण खाद्य |
संगच्छध्वम बोलते, बाजे मंगल वाद्य ||

ऋद्धि सिद्धि समृद्धि हो, त्रि-आयामी स्वास्थ |
भौतिक तन अध्यात्म मन, मिले मानसिक आथ ||

धन-दौलत या शक्ति हो, ख़ुशी मिले या दर्द |
भोगे मिलकर संग में, दोनों औरत-मर्द ||

इक दूजे का नित करें, आदर प्रति-सम्मान |
परिवारों के प्रति रहे, इज्जत एक समान ||

सुन्दर योग्य बलिष्ठ हो, अपने सब संतान |
कहें पाँचवा वचन सुन, बुद्धिमान इंसान ||

शान्ति-दीर्घ जीवन मिले, भूलें नहिं परमार्थ  |
सिद्ध सदा करते रहें, इक दूजे के स्वार्थ ||

रहे भरोसा परस्पर, समझदार-साहचर्य |
प्रेमपुजारी बन रहें, बने रहें आदर्य ||

Wednesday 3 February 2016

चिंता उसी प्रकार, चुटकुला जैसे सुनते-

सुनते जब नव चुटकुला, हँसते हम तत्काल । 
किन्तु दुबारा क्यूँ  हंसें,  हुआ पुराना माल । 

हुआ पुराना माल, मगर चिंता जब आती। 
बिगड़ जाय सुरताल, हमें सौ बार रुलाती। 

भिन्न भिन्न व्यवहार, नहीं रविकर यूँ चुनते।
चिंता उसी प्रकार, चुटकुला जैसे सुनते।।

Tuesday 2 February 2016

रविकर के दोहे :पढ़ो वेदना वेद ना, कम कर दो परिमाण

(१)
पढ़ो वेदना वेद ना, कम कर दो परिमाण |
रविकर तू परहित रहित, फिर कैसे निर्वाण ||

(२)
मुश्किल मे उम्मीद का, जो दामन ले थाम |
जाये वह जल्दी उबर, हो बढ़िया परिणाम ||

(३)
छलिया तूने हाथ में, खींची कई लकीर |
मैं भोला समझा किया, इनमे ही तक़दीर ||

(४)
करे बुराई विविधि-विधि, जब कोई शैतान |
चढ़ी महत्ता आपकी, उसके सिर पहचान ||

(५)
बंधी रहे उम्मीद तो, कठिन-समय भी पार |
सब अच्छा होगा जपो, यही जीवनाधार ||

(६)
नहीं सफाई दो कहीं, यही मित्र की चाह |
शत्रु करे शंका सदा, क्या करना परवाह ||

(७)
गलती होने पर करो, दिल से पश्चाताप |
हो हल्ला हरगिज नहीं, हरगिज नहीं प्रलाप ||