Sunday 3 June 2018

चित्र-विचित्र

शुभ अवसर देता सदा, सूर्योदय रक्ताभ।
हो प्रसन्न सूर्यास्त यदि, उठा सके तुम लाभ।।

रविकर उफनाती नदी, उफनाता सद्-प्यार।
कच्चा घट लेकर करे, वो वैतरणी पार।।

सूर्य उगा प्रेमी मिले, आलिंगन मजबूत।
अस्ताचल को चल पड़े, आ पहुँचे यमदूत।।

जीवन की संजीवनी, हो हौंसला अदम्य |
दूर-दृष्टि, प्रभु की कृपा, पाए लक्ष्य अगम्य ॥

जीवन की संजीवनी, हो हौंसला अदम्य |
दूर-दृष्टि, प्रभु की कृपा, पाए लक्ष्य अगम्य ॥

वायु-अग्नि-क्षिति-जल-गगन, रविकर घट में डाल |
बनी नारि कमनीय रति, रहा अनंग सँभाल ||

कुण्डलियाँ 
तन सिसकार सकार ले, अंतिम पहर विछोह।
लेकिन मन माना नही, मनमाना सम्मोह।
मनमाना सम्मोह, रहे घट कैसे रीता।
व्याकुल तनमन प्राण, नदी तट पर परणीता।
परदेशी बेचैन, बड़े असमंजस में मन।
तन आलिंगनबद्ध, काटता रविकर वेतन।।

ख़ुशी ख़ुशी कर ख़ुदकुशी, खतम खलल खटराग |
मैं भी आता साथ में, चलो चले हम भाग |
चलो चले हम भाग, खाप पंचायत खेपी |
ऊँच-नीच का भेद, देख कर आत्मा झेपी |
मिली सोहनी देह, मरा महिवाल उसी पर |
सुन जालिम संसार, जुल्म तू ख़ुशी ख़ुशी कर ||



चित्र में ये शामिल हो सकता है: एक या अधिक लोग और लोग खड़े हैं

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (05-06-2018) को "हो जाता मजबूर" (चर्चा अंक-2992) (चर्चा अंक-2985) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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