टाइम रिटायरमेंट का ज्यों पास आता जा रहा ।
उत्साह बढ़ता जा रहा, आकाश नीचे आ रहा ।
खाया कमाया जिंदगी भर पितृ-ऋण उतरे सभी ।
संतान को इन्सां बनाया अब नहीं भटके कभी ।
ख्वाहिश तमन्ना शौक सारे आज हम पूरी करें।
चाहे रहे जिन्दा युगों तक आज ही या हम मरें ।
कविमन हुआ मदमस्त रविकर गीत रच रच गा रहा ।
टाइम रिटायरमेंट का ज्यों पास आता जा रहा ।।
कविता करूँगा अब पढूंगा मंच पर जाकर वहां ।
माँ शारदे की वंदना खुशियां बिखेरूँगा जहाँ ।
आवाज देगी मौत भी तो कह सकूँगा रुक जरा ।
यह काफिया तो लूँ मिला, पूरा करूँ यह अंतरा ।
दुनिया करेगी फिर सिफारिश रूप रविकर भा रहा ।
टाइम रिटायरमेंट का ज्यों पास आता जा रहा ।।
यह लोन लकड़ी तेल ही काया जलाये-भून दे ।
परिवार की खातिर जवानी अस्थि-मज्जा खून दे।
निकला कहाँ कब वक्त रविकर आजतक अपने लिए ।
संसार की खातिर नहीं परिवार की खातिर जिए ।
अब देश की खातिर जियूँगा लोकहित अब भा रहा ॥
टाइम रिटायरमेंट का ज्यों पास आता जा रहा ।।