कहीं बेनाम हैं रिश्ते, कहीं बस नाम के रिश्ते।
चतुर मानुष बनाते हैं हमेशा काम से रिश्ते।
मुहब्बत मुफ्त में मिलती सदा माँ बाप से लेकिन
लगाये दाम की पर्ची धरे गोदाम में रिश्ते।
शुरू विश्वास से होते समय करता इन्हे पक्का
अगर धोखा दिया इनको गये फिर काम से रिश्ते।।
रहो चुपचाप गलती पर, बहस बिल्कुल नही करना
खतम नाराजगी हो तो चले आराम से रिश्ते।।
बड़ा भारी लगे मतलब, निकलते ही किया हलका
कई मन के रहे थे जो बचे दो ग्राम के रिश्ते।
कभी भी जिंदगी के साथ रिश्ते चल नही पाते
चले यह जिंदगी लेकर हमेशा शाम तक रिश्ते।।
पड़ी हैं स्वार्थ में दुनिया नहीं वे याद करते हैं
पड़े जब काम तो भेजें इधर पैग़ाम वे रिश्ते।।
रवैया मूढ़ता उनकी अहम् उनका पड़े भारी
नहीं वे रख सके रविकर हमेशा थाम के रिश्ते।।