Friday 3 January 2014

सरदारी दस साल की, रही देश को साल-


विदाई वेला की ज़हालत ये देश ऐसा मानता है कि वोट बड़ी चीज़ है पर श्रीमनमोहन सिंह को इसके लिए एक संविधानिक पद को कलंकित करने की क्या ज़रुरत थी। संविधान इस बात की किसी भी तरह इज़ाज़त नहीं देता कि प्रधानमंत्री किसी राज्य के मुख्यमंत्री के बारे में इतनी नितांत घृणास्पद और व्यक्तिगत जहरीली बात करें ,विष वमन करें।

Virendra Kumar Sharma 








 सरदारी दस साल की, रही देश को साल |
उलटे सीधे फैसले, करें देश कंगाल |

करें देश कंगाल, आज यह गाल बजाये |
कठपुतली सा नाच, बाज फिर भी ना आवे |

कुटिल आखिरी बोल, भरी जिसमे मक्कारी  |
खोली खुद की पोल, कलंकित की सरदारी ||


जहरमोहरा ....

Amrita Tanmay 
छत्तीसी पर वार कर, रहे उन्हें धिक्कार |
मर्जी चलती आप की, भाये भ्रष्टाचार |

भाये भ्रष्टाचार, तीन तेरह का चक्कर |
जब चाहें ले चूम, कभी कर लेते टक्कर |

आम बने अब ख़ास, काढ़ती पब्लिक खीसी |
छह-सठ बड़े प्रवीण, हुई तैंतिस छत्तीसी ||


नमो नमो का खौफ, लगे शहजादे चंगे-


गे-गूंगे के दौर में, मौन मुखर हो जाय |
गूँ गूँ गे गे गड़गड़ी, सम्मुख रहा बजाय |

सम्मुख रहा बजाय, आज जाकर लब खोला |
जिसकी खाय कमाय, उन्हीं की जय जय बोला |

नमो नमो का खौफ, लगे शहजादे चंगे |
जल्दी कुर्सी सौंप, ताकि हों जल्दी नंगे || 


परिवर्तन का दौर, काल की घूमी चकरी-

फरी फरी मारा किया, घरी घरी हड़काय । 
मरी मरी जनता रही, दपु-दबंग मुस्काय । 

दपु-दबंग मुस्काय, साधु को रहा सालता। 
लेकिन लगती हाय, साल यह बला टालता । 

परिवर्तन का दौर, काल की घूमी चकरी । 
अब जनता सिरमौर, कालिका जमकर बिफरी ॥ 


आगे पीछे सिरफिरे, फिरे नहीं इस बार-


फूली फूली फिर फिरे, धनिया बीच बजार । 
आगे पीछे सिरफिरे, फिरे नहीं इस बार । 

फिरे नहीं इस बार, धार कानूनी तीखी । 
लें व्यवहार सुधार, सोच भी साधु सरीखी। 

रविकर रहे सचेत, करे ना हुक्म-उदूली। 
कई धुरंधर खेत, देखकर धनिया फूली ॥  

8 comments:

  1. बेहतरीन काव्यात्मक टिपण्णी हताश प्रधान मंत्री पर जिसकी देह भाषा राष्ट्र को अवसाद की और ले जाने वाली थी .

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  2. नमो नमो का खौफ, लगे शहजादे चंगे-

    गे-गूंगे के दौर में, मौन मुखर हो जाय |
    गूँ गूँ गे गे गड़गड़ी, सम्मुख रहा बजाय |

    सम्मुख रहा बजाय, आज जाकर लब खोला |
    जिसकी खाय कमाय, उन्हीं की जय जय बोला |

    नमो नमो का खौफ, लगे शहजादे चंगे |
    जल्दी कुर्सी सौंप, ताकि हों जल्दी नंगे ||

    अप्रतिम टिपण्णी प्रधानमन्त्री की स्व :घोषित विदाई पर .

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  3. बढ़िया सूत्र व प्रस्तुति , आदरणीय धन्यवाद
    ॥ जय श्री हरि: ॥

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (05-01-2014) को तकलीफ जिंदगी है...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1483 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. सभी रचनाओं पर उचित काव्यात्मक टिप्पणी ,यह तो आपकी कला है ,दूसरा नहीं कर सकता रविकर जी ! बधाई
    नया वर्ष २०१४ मंगलमय हो |सुख ,शांति ,स्वास्थ्यकर हो |कल्याणकारी हो |

    नई पोस्ट सर्दी का मौसम!
    नई पोस्ट विचित्र प्रकृति

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  6. सशक्त काव्यात्मक टिपण्णी एक परिपूर्ण पोस्ट टिपण्णी का अतिक्रमण करती हुई .

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