होली की शुभकामनायें- रविकर प्रवास पर
झाड़ू झूमे अर्श पर, पंजे में लहराय |
लेकिन कूड़ा फर्श पर, कैसे बाहर जाय-
कैसे बाहर जाय, डाल दे पानी इसपर |
पड़ा पड़ा सड़ जाय, होय कीचड़ सा सड़कर |
कीचड़ में फिर कमल, कमल लक्ष्मी पग चूमे |
पवन चले उनचास, मास दो झाड़ू झूमे ||
वाह बहुत खूब :)
ReplyDeleteबहुत सुंदर. होली की मंगलकामनाएँ !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (15-03-2014) को "हिम-दीप":चर्चा मंच:चर्चा अंक:1552 "अद्यतन लिंक" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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रंगों के पर्व होली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
..............पड़ा पड़ा सड़ जाय, होय कीचड़ सा सड़कर .........
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अच्छा व्यंग