जलती जाए जिंदगी, ज्योति न जाया जाय ।
आँच साँच को दे पका, कठिनाई मुस्काय ।
कठिनाई मुस्काय, जिंदगी कागद लागे ।
अपनी मंजिल पाय, देखते उससे आगे ।
गूढ़ कहानी आप, यहाँ स्वाभाविक चलती ।
फैला रही प्रकाश, चिता जब धू धू जलती॥
दोहा
जाति ना पूछो साधु की, कहते राजा रंक |
मजहब भी पूछो नहीं, बढ़ने दो आतंक ||
दोहा
जाति ना पूछो साधु की, कहते राजा रंक |
मजहब भी पूछो नहीं, बढ़ने दो आतंक ||
अआख्री दो लाइनों में तो धमाका कर दिया ....
ReplyDeleteक्या बात दिनेश जी ...
सार्थक सामयिक रचना प्रस्तुति
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