अदालत में गवाही हित निवेदन दोस्त ठुकराया।
रहे चौबीस घण्टे जो, हमेशा साथ हमसाया।
सुबह जो रोज मिलता था, अदालत तक गया लेकिन
वहीं वह द्वार से लौटा, समोसा फाफड़ा खाया।
बहुत कम भेंट होती थी, रहा इक दोस्त अलबेला
अदालत तक वही पहुंचा, हकीकत तथ्य बतलाया।
बदन ही दोस्त है पहला, पड़ा रहता बिना हिलडुल
सगा सम्बन्ध वह दूजा, बदन जो घाट तक लाया।
मगर सद्कर्म ही रविकर हमारा दोस्त है सच्चा
अदालत में गवाही के लिए जो साथ में आया।।
जीवन का सत्य
ReplyDeleteआपको सूचित किया जा रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज बुधवार (21-02-2018) को
ReplyDelete"सुधरा है परिवेश" (चर्चा अंक-2886) पर भी होगी!
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी लिखी रचना आज के विशेषांक ईंजीनियर श्री दिनेश चन्द्र गुप्त 'रविकर' में "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 23 फरवरी 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteनिमंत्रण
ReplyDeleteविशेष : 'सोमवार' २६ फरवरी २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीय माड़भूषि रंगराज अयंगर जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।
अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।