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Tuesday, 16 February 2016

बकरी पीती दूध, दुही जाये गौ माता

गौ माता का दूध तो, है ही अमृत तुल्य |
तेरा गोबर मूत्र भी, औषधि रूप अमूल्य |

औषधि रूप अमूल्य, गाय इक और दुधारू| ||
करदाता वह गाय, हमेशा खुद पर भारू |

कर शोषण सरकार, बनी है भाग्य विधाता |
बकरी पीती दूध, दुही जाये गौ माता ||

Wednesday, 3 February 2016

चिंता उसी प्रकार, चुटकुला जैसे सुनते-

सुनते जब नव चुटकुला, हँसते हम तत्काल । 
किन्तु दुबारा क्यूँ  हंसें,  हुआ पुराना माल । 

हुआ पुराना माल, मगर चिंता जब आती। 
बिगड़ जाय सुरताल, हमें सौ बार रुलाती। 

भिन्न भिन्न व्यवहार, नहीं रविकर यूँ चुनते।
चिंता उसी प्रकार, चुटकुला जैसे सुनते।।

Thursday, 5 June 2014

वह संवेदनशील, पराये अपने जाने-

दासी सा बर्ताव भी, नहीं दिलाता ताव |
किन्तु उपेक्षा से मिलें, असहनीय से घाव |

असहनीय से घाव, उदासी झट पहचाने |
वह संवेदनशील, पराये अपने जाने |

मकु आकर्षण प्यार, लगे उसको आभासी । 
लेकिन लेती ताड़, उपेक्षा और उदासी ॥