Thursday 13 October 2011

घाट-घाट पर घूम, आज घाटी को माँगें ||



टांगें  टूटी  गधे  की ,  धोबी   देता   छोड़ |
बच्चे   पत्थर  मारके,   देते  माथा  फोड़ |


 


 देते माथा  फोड़,   रेंकता  खा  के  चाटा |
 मांगे जनमत आज, गधों हित धोबी-घाटा |





घाट-घाट पर घूम,  मुआँ  घाटी को माँगें |
चले चाल अब टेढ़ ,  तोड़  दे  चारों  टांगें ||


दलील और वाणी पुन्नू की प्रबल --

वाणी पुन्नू  की  प्रबल,  अन्नू  का  उपवास | 
चित्तू  का  डंडा  सबल,  दिग्गू  का  उपहास |

लोकपाल  मुद्दा  बड़ा,  जनता  तेरे  साथ |
काश्मीर का मामला, जला रहा क्यूँ  हाथ ?

कालेधन  से  है  बड़ा, माता  का  सम्मान |
वैसी भाषा  बोल मत,  जैसी  पाकिस्तान ||

झन्नाया था गाल  जब,  तू   तेरा  स्टाफ |
उस बन्दे को कूटते,  हमें  दिखे  थे साफ़ ||

सड़को पर जब आ गया, सेना का सैलाब |
तेरे  बन्दे  पिट गए,  कल  से  थे  बेताब  |

करना यह दावा नहीं,  हो  गांधी  के भक्त |
बड़ी दलीलें  तुम रखो,  उधर है  डंडा  फ़क्त ||

वैसे  दूजे  पक्ष  को,  मत  कर  नजरन्दाज |
त्रस्त बड़ी सरकार थी,  मस्त  हो रही आज ||

पहले  पीटा  फिर  पिटा,  चले   कैमरे  ठीक  |
होती  शूटिंग सड़क  पे, नियत लगे  ना  नीक ||

घूँस - युद्ध  की  नायकी,  घाटी  में  यूँ  डूब |
घूँसा जबड़े  पर  पड़ा,   देत   दलीलें   खूब ||

12 comments:

  1. सही कहा... सटीक रचना...

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  2. हा हा हा कहां से कहां पहुंचा देते हैं आप :)

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  3. महत्वपूर्ण अपडेट !शुक्रिया ब्लॉग पर दस्तक का .आज के हालात पर सटीक व्यंग्य .बधाई .

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  4. धारदार व्यंग्य ...

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  5. sundar rachna.geele kar kar ke jute maare aapne to....

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  6. वह रविकर जी क्या बात है !! हमेशा की तरह लाजबाब रचना

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  7. शुक्रिया भाई साहब आपकी बेहतरीन रचना और ब्लॉग समर्थन के लिए .

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  8. लोकपाल मुद्दा बड़ा, जनता तेरे साथ द्य
    काश्मीर का मामला, जला रहा क्यूँ हाथ ?

    सही दृश्य दिखाते दोहे।

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  9. काफी बातें एक साथ बड़े पते के साथ बता दी हैं। अच्छा लगा।

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