कम पड़ा क्या माल कच्चा
आधा-अधूरा ही बना,
मझधार में इक और गच्चा ||
है खुब जरुरत आँसुओं की,
ये दिल दरकने के करीब-
अब जुल्म सारे सह सकूँगा,
रह गया ना छोट बच्चा ||
उस रात खर्राटें भरीं थी
अखिल भारत गोष्ठी में-
कैसे बनोगे श्रेष्ठ-शायर ?
पूँछ बैठे बड़े चच्चा ||
उस रात खर्राटें भरीं थी
अखिल भारत गोष्ठी में-
कैसे बनोगे श्रेष्ठ-शायर ?
पूँछ बैठे बड़े चच्चा ||
तुकबन्दियाँ करने लगा,
होवे जरा नजरे-इनायत-
आशुकवि 'रविकर' बने
तू गटक मेरा प्रेम-सच्चा ||
तू गटक मेरा प्रेम-सच्चा ||
अच्छा भाव-प्रदर्शन करती रचना है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteacchi prstuti..sadar badhayee
ReplyDeleteवाह! वेहतरीन
ReplyDeleteवाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
ReplyDeleteजरूरी कार्यो के कारण करीब 15 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
ReplyDeleteआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
manoranjak rachna.
ReplyDeleteDhany hain Ravi Ji aap...Kya majedaar rachna rachi hai...Badhai swiikaren
ReplyDeleteNeeraj
वाह ...बहुत खूब
ReplyDeleteइशारों इशारों में ... बहुत खूब ...
ReplyDelete