Tuesday, 1 November 2011

दशरथ बाल-कथा --

शांता-परम 
(मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सहोदरी शांता )
सर्ग-1 
भाग-२ 
दशरथ बाल-कथा --

 मस्त मस्त  बिल्लौरी  आँखे,   महरानी   इंदुमती |
घनकेश  घटा  छा  जाए तो,  पाते नर परम-गती |
सिर से नख की सुन्दरता से,  तब हुई  अनिष्ट क्षती |
प्रेमपाश में फँसकर विह्वल, भटके अज अवधपती |

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दोहा
इंदुमती के प्रेम में, भूपति अज महराज |
लम्पट विषयी जो हुए, झेले राज अकाज ||1||

गुरु वशिष्ठ की मंत्रणा, सह सुमंत बेकार |
इंदुमती के प्यार ने, दूर किया  दरबार ||2||


क्रीड़ा सह खिलवाड़ ही, परम सौख्य परितोष |
सुन्दरता पागल करे, मानव का क्या दोष ||3||


अति सबकी हरदम बुरी, खान-पान-अभिसार |
क्रोध-प्यार बडबोल से,  जाय  जिंदगी  हार ||4||
 
झूले  मुग्धा  नायिका, राजा  मारें  पेंग |
वेणी लागे वारुणी,  दिखा रही वो  ठेंग ||5||


राज-वाटिका  में  रमे, चार पहर से आय |
आठ-मास के पुत्र को,  दुग्ध पिलाती धाय ||6||

नारायण-नारायणा,  नारद  निधड़क  नाद |
अवधपुरी का आसमाँ, स्वर्गलोक के बाद ||7||


वीणा से माला गिरी, इंदुमती पर  आय |
ज्योत्सना वह अप्सरा, जान हकीकत जाय ||8||


एक पाप का त्रास वो, यहाँ रही थी भोग |
स्वर्ग-लोक नारी गई, अज को परम वियोग ||9||


माँ का पावन रूप भी, सका न उसको रोक |
आठ माह के लाल को, छोड़ गई इह-लोक ||10||
विरह वियोगी महल में, कदम उठाया गूढ़ |
भूल पुत्र को कर लिया, आत्मघात वह मूढ़ ||11|


माता की ममता छली, करता पिता अनाथ |
रोय-रोय हारा शिशू , पटक-पटक के माथ ||12||

क्रियाकर्म  होता  रहा, तेरह दिन का शोक |
अबोध शिशु की मुश्किलें, रही थी बरछी भोंक ||13||  


आंसू बहते अनवरत, गला गया था बैठ |
राज भवन में थी सदा, अरुंधती की पैठ ||14|


पत्नी पूज्य वशिष्ठ की, सादर उन्हें प्रणाम |
 एक मास तक पालती, माता सम अविराम ||15||
File:Batu Caves Kamadhenu.jpg 
नंदिनी की माँ कामधेनु 
 महामंत्री थे सुमंत, गए गुरू के पास |
लालन-पालन की किया, कुशल व्यवस्था ख़ास ||16||


महागुरू मरुधन्व के, आश्रम में तत्काल |
 गुरु-आज्ञा पा ले गए, व्याकुल दशरथ बाल ||17||


जहाँ नंदिनी पालती, बाला-बाल तमाम |
दुग्ध पिलाती प्रेम से, भ्रातृ-भाव  पैगाम ||18||


माँ कामधेनु की पुत्री, करती इच्छा पूर |
देवलोक की नंदिनी, इस आश्रम की नूर ||19||

गतांक

सरयू, अयोध्या और मेरा ग्राम पटरंगा --

शांता-परम 
(मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सहोदरी शांता )
आगे है--
सर्ग-1 
भाग-3
तरुण-दशरथ-कथा --

9 comments:

  1. सभी दोहे बहुत ही अशक्त शब्दो में कहे गये हैं ..बहुत सुन्दर..

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  2. बहुत सुन्दर कथा ... आभार

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  3. भावमयी सुन्दर प्रस्तुति...वाह! क्या कथा कही आपने

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    छठपूजा की शुभकामनाएँ!

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  5. आपके काव्य में हमेशा कुछ नया, कुछ अनोखा होता है जो मन को हर्षित करता है।

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  6. अतिसुन्दर...वाह!

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  7. बहुत सुंदर, क्या बात है।

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  8. प्रिय रविकर जी .एक अनूठी शैली और नया रंग आप का देख दिल बाग़ बाग़ हो उठा फूल खिल गये ...क्या बात है ..ये तो अमित जी को भी दिखाना होगा ....


    .रचना मंच से आया ...अभिवादन ..सराहनीय ........

    जैसे काजल कोठरी
    डूबे काजल लगता
    ऐसे "भ्रमर" को घूमते
    दर्द भरा ही दीखता
    आओ मन को हम समझाएं
    कभी कभी कुछ रंग बिरंगा
    झोली अपनी भर के लायें
    जैसे सतरंगी- मित्रों की बगिया से
    हो कर आये
    इन्द्रधनुष ला ला कर हो यूं
    सुन्दर रचना मंच सजाये
    बरसे यूं ही हरियाली
    हो शान्ति निराली
    सदा सदा ही
    हम दौड़े इस मंच पे आएं

    आभार
    भ्रमर ५
    बाल झरोखा सत्यम की दुनिया

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  9. दोहे में बहुत अच्छी कथा पढ़ने को मिली|
    आभार

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