Saturday 12 November 2011

भगवती शांता परम

(मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सहोदरी बहन )
सर्ग-१
भाग-४
रावण, कौशल्या और दशरथ 
दशरथ युग में ही हुआ, दुर्धुश भट बलवान |
पंडित ज्ञानी जानिये, रावण  बड़ा महान ||

बार - बार कैलाश पर,  कर शीशों का दान |
छेड़ी  वीणा  से  मधुर, सामवेद  की  तान ||
 
भण्डारी ने भक्त पर, कर दी कृपा  अपार |
कई शक्तियों से किया,  उसका  बेडा  पार ||

पाकर शिव वरदान वो, पहुंचा ब्रह्मा पास |
श्रृद्धा से की  वन्दना, की  पावन अरदास ||

ब्रह्मा ने परपौत्र को, दिए  कई वरदान |
ब्रह्मास्त्र भी सौंपते, सब शस्त्रों की शान ||

शस्त्र-शास्त्र का हो धनी, ताकत से भरपूर |
मांग अमरता का रहा, वर जब रावन क्रूर ||

ऐसा तो संभव नहीं, परम-पिता के बोल |
मृत्यु सभी की है अटल, मन की गांठें खोल |

कौशल्या का शुभ लगन, हो दशरथ के साथ |
दिव्य-शक्तिशाली सुवन, मारेगा  दस-माथ ||

रावण डर से कांप के, क्रोधित हुआ अपार |
प्राप्त  अमरता  करूँ मैं, कौशल्या को मार ||

मंदोदरी ने जब कहा, नारी हत्या पाप |
झेलोगे कैसे भला,  भर जीवन संताप ||

तब  उसके  कुछ  राक्षस,  पहुँचे  सरयू तीर | 
कौशल्या का अपहरण, करके शिथिल शरीर ||

बंद पेटिका में किया, दिया था जल में डाल |
राजा दशरथ आ गए,  देखा सकल बवाल ||

राक्षस गण से जा भिड़े, चले तीर तलवार |
भगे पराजित राक्षस,  कूदे फिर जलधार ||

आगे बहती पेटिका, पीछे भूपति वीर |
शब्द भेद से था पता, अन्दर एक शरीर ||

बहते बहते पेटिका, गंगा जी में जाय |
जख्मी दशरथ को इधर, रहा दर्द अकुलाय ||

रक्तस्राव था हो रहा, थककर होते चूर |
गिद्ध जटायू देखता, राजा  है  मजबूर  ||
http://ecologyadventure2.edublogs.org/files/2011/04/turkey-vulture-sc5xey.jpg
अर्ध मूर्छित भूपती, घायल पूर्ण शरीर |
औषधि से उपचार कर, रक्खा गंगा तीर ||

दशरथ आये होश में, असर किया वो लेप |
गिद्ध राज के सामने, कथा कही संक्षेप |

कहा जटायू ने उठो, बैठो मुझपर आय |
पहुँचाउंगा शीघ्र ही, राजन उधर उड़ाय ||

बहुत दूर तक ढूँढ़ते, पहुँचे सागर पास |
पाय पेटिका खोलते, हुई बलवती आस ||

कौशल्या बेहोश थी, मद्धिम पड़ती साँस |
नारायण जपते दिखे, नारद जी आकाश ||
बड़े जतन करने पड़े, हुई तनिक चैतन्य |
सम्मुख प्रियजन पाय के, राजकुमारी धन्य ||

नारद विधिवत कर रहे, सब वैवाहिक रीत |
दशरथ को ऐसे मिली, कौशल्या मनमीत ||
नव-दम्पति को ले उड़े,  गिद्धराज खुश होंय ||
नारद जी चलते बने, सुन्दर कड़ी पिरोय ||
jaimala
अवधपुरी सुन्दर सजी, आये कोशलराज |
दोहराए फिर से गए, सब वैवाहिक काज ||
कृपया कथा का आनंद लें 
काव्यगत त्रुटियों से अवगत कराते रहें ||

12 comments:

  1. क्या कहने,
    बहुत सुंदर प्रसंग


    बार - बार कैलाश पर, कर शीशों का दान |
    छेड़ी वीणा से मधुर, सामवेद की तान ||

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  2. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...!!!!!!

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  3. वाह ..आनंद आ गया

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  4. आगे बहती पेटिका, पीछे भूपति वीर |
    शब्द भेद से था पता, अन्दर एक शरीर ||

    रामचरितमानस पढ़ा है,यह प्रसंग नहीं जानती थी...आभार|
    बहुत सुन्दर दोहे!

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  5. मन को प्रसन्न करने वाली रचना।

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  6. बेजोड़ प्रस्तुति

    नीरज

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  7. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
    बालदिवस की शुभकामनाएँ!

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  8. सरकारें संवेदन शून्य हैं .जनता अपढ़ गंवार .इसीलिए देश का यह हाल .लोको पायलट बेहाल .कोई नहीं देख भाल न कोई सुनवैया .अफ़सोस नाक घटनाएं रोज़ क्यों होतीं हैं ?
    अविरल प्रवाह लिए कथात्मक काव्य रचना .प्रबंध काव्य लिखिए रविकर जी क्षमता है आपमें कथा को बाँधने और बींधने की .

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  9. वाह: ...पढ़ कर बहुत आनंद आया.. सुन्दर प्रस्तुति..

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  10. वाह वाह
    बड़ी सुन्दर शृंखला चल रही है...
    सादर बधाईयां....

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  11. वाह वाह ... इतने जबरदस्त बेजोड दोहे कैसे लिखते हैं दिनेश जी ..
    बहुत मज़ा आ रहा है ...

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