सर्ग-१
भाग-३
दक्षिण कोशल सरिस था, उत्तर कोशल राज |
सूर्यवंश के ही उधर, थे भूपति महराज ||
राजा अज की मित्रता, का उनको था गर्व |
दुर्घटना से थे दुखी, राजा-रानी सर्व ||
अवधपुरी आने लगे, ज्यादा कोसलराज |
राज-काज बिधिवत चले, करती परजा नाज ||
धीरे-धीरे बीतता, दुःख से बोझिल काल |
राजकुमार बढ़ते चले, बीत गया इक साल ||,
दूध नंदिनी का पिया, अन्प्राशन की बेर |
आश्रम से वापस हुए, फैला महल उजेर ||
ठुमुक-ठुमुक कर भागते, छोड़-छाड़ पकवान |
दूध नंदिनी का पियें, आता रोज विहान ||
उत्तर कोशल झूमता, राजकुमारी पाय |
पिताश्री भूपति बने, फूले नहीं समाय ||
पुत्री को लेकर करें, अवध पुरी की सैर |
राजा-रानी नियम से, लेने आते खैर ||
नामकरण था हो चुका, धरते गुण अनुसार |
दशरथ कौशल्या कहें, यह अद्भुत ससार ||
कुछ वर्षों के बाद ही, फिर से राजकुमार |
विधिवत शिक्षा के लिए, गए गुरु आगार ||
अच्छे योद्धा बन गए, महाकुशल बलवान \
दसो दिशा में हांकले, बने अवध की शान |\
शब्द-भेद संधान से, गुरु ने किया अजेय |
अवधपुरी उन्नत रहे, बना एक ही ध्येय ||
राजतिलक विधिवत हुआ, आये कोशल-राज |
कौशल्या भी साथमे, हर्षित सकल समाज ||
कौशल्या भी साथमे, हर्षित सकल समाज ||
बचपन का वो खेलना, आया फिर से याद |
देखा देखी ही हुई, खिंची रेख मरजाद ||
बेहद सटीक बातों की अभिव्यक्ति की है।
ReplyDeleteसरस रोचक शैली में भगवान की बाल लीला का वर्णन मढ़कर मन हर्षित हुआ।
ReplyDeleteआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 07-11-2011 को सोमवासरीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।">चर्चा
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteनितांत नवीन विषय पर आपकी इस धारावाहिक काव्यात्मक आख्यान प्रस्तुति के लिए शुभकामनाएं।
ReplyDeleteतीनो भाग पढ़ा। कमाल का काव्य! उत्कृष्ट प्रविष्टी।
ReplyDeleteaap sabhi ka aabhaar \\
ReplyDeletepravaas par hun ||
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteसादर...
गज़ब की अभिव्यक्ति और बहुत सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteआभार.
भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteवाह ..
ReplyDeleteबहुत सुंदर !!
बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना...बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
सुन्दर प्रयास सरहनीय है , शुक्रिया जी
ReplyDeleteवाह जी,क्या बात है
ReplyDeleteबहुत सुंदर
नामकरण था हो चुका, धरते गुण अनुसार |
दशरथ कौशल्या कहें, यह अद्भुत ससार ||
बहुत हि सुन्दर एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति|
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeletewah sir,bahut sundar
ReplyDeleteरोचक शैली ... प्रभु के दर्शन हो रहे हैं आपकी कविता में ...
ReplyDeleteखुबसूरत प्रस्तुति ..
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