Saturday, 5 November 2011

भगवती शांता-परम

सर्ग-१
भाग-३
दक्षिण कोशल सरिस था, उत्तर कोशल राज |
सूर्यवंश के ही उधर, थे भूपति महराज ||

राजा अज की मित्रता, का उनको था गर्व |
 दुर्घटना  से थे दुखी, राजा-रानी सर्व ||

अवधपुरी आने लगे, ज्यादा कोसलराज |
राज-काज बिधिवत चले, करती परजा नाज ||

धीरे-धीरे बीतता, दुःख से बोझिल काल |
राजकुमार बढ़ते चले, बीत गया इक साल ||,

दूध नंदिनी का पिया, अन्प्राशन की बेर |
आश्रम से वापस हुए, फैला महल उजेर ||

ठुमुक-ठुमुक कर भागते, छोड़-छाड़ पकवान |
दूध नंदिनी का पियें, आता रोज विहान ||

उत्तर कोशल झूमता, राजकुमारी पाय |
पिताश्री भूपति बने, फूले नहीं समाय ||

पुत्री को लेकर करें, अवध पुरी की सैर |
राजा-रानी नियम से, लेने आते खैर ||

नामकरण था हो चुका,  धरते गुण अनुसार |
दशरथ कौशल्या कहें, यह अद्भुत ससार ||

कुछ वर्षों के बाद ही, फिर से राजकुमार |
विधिवत शिक्षा के लिए, गए गुरु आगार ||

अच्छे योद्धा बन गए, महाकुशल बलवान \
दसो दिशा में हांकले, बने अवध की शान |\

शब्द-भेद संधान से, गुरु ने किया अजेय |
अवधपुरी उन्नत रहे, बना एक ही ध्येय || 
 
राजतिलक विधिवत हुआ, आये कोशल-राज |
कौशल्या भी साथमे, हर्षित सकल समाज ||

बचपन का वो खेलना, आया फिर से याद |
देखा देखी ही हुई, खिंची रेख मरजाद ||

22 comments:

  1. बेहद सटीक बातों की अभिव्यक्ति की है।

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  2. सरस रोचक शैली में भगवान की बाल लीला का वर्णन मढ़कर मन हर्षित हुआ।

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  3. आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 07-11-2011 को सोमवासरीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ

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  4. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।">चर्चा

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  5. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  6. नितांत नवीन विषय पर आपकी इस धारावाहिक काव्यात्मक आख्यान प्रस्तुति के लिए शुभकामनाएं।

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  7. तीनो भाग पढ़ा। कमाल का काव्य! उत्कृष्ट प्रविष्टी।

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  8. aap sabhi ka aabhaar \\
    pravaas par hun ||

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  9. बहुत सुन्दर...
    सादर...

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  10. गज़ब की अभिव्यक्ति और बहुत सुंदर प्रस्तुति.

    आभार.

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  11. भावपूर्ण अभिव्यक्ति.

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  12. बहुत सुन्दर!

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  13. सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  14. बहुत अच्छी रचना...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  15. सुन्दर प्रयास सरहनीय है , शुक्रिया जी

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  16. वाह जी,क्या बात है
    बहुत सुंदर

    नामकरण था हो चुका, धरते गुण अनुसार |
    दशरथ कौशल्या कहें, यह अद्भुत ससार ||

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  17. बहुत हि सुन्दर एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति|

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  18. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  19. रोचक शैली ... प्रभु के दर्शन हो रहे हैं आपकी कविता में ...

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  20. खुबसूरत प्रस्तुति ..

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