इकतरफा यह फैसला, गया कमीशन डूब |
गया कमीशन डूब, हाथ पंजा कटवाओ |
खिले कमल को ढूंढ़, सभी गड्ढे पट्वाओ |
और साइकिल खोल, रखाओ घर में साथी |
करे कहीं उत्पात, करोड़ों खा के हाथी ||
चल दल-दल पर चल |
बदल बदल दल चल ||
चाची ने थप्पड़ जड़ा, ताऊ के घर बैठ |
चरबी चढ़ती बदन पर, चला करोड़ों ऐंठ |
चला करोड़ों ऐंठ, उमा-योगी का करिहैं |
जाति-सभा में पैठ, कमल कीचड़ मा सरिहै |
चूस-चास कर खून, दाँव जो चले पिशाची |
करिहै का कानून, सँभल के रहना चाची ||
खल जन-जन-मन खल |
छल खल-दल बन छल ||
गन्ना की मिल में पिरे, स्वाभिमान जन-रोष |
अंचल पर गहरी पकड़, होय सदा जय घोष |
होय सदा जय घोष, करे जो मोहन प्यारे |
लगे भयंकर दोष, जाँय बेमतलब मारे |
लोकतंत्र की खोट, पकड़ ना पाते अन्ना |
बाहुबली पर चोट, पेरता जाये गन्ना ||
बहुत सही लिखा...
ReplyDeleteबहुत ख़ूब...
ReplyDeleteआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 09-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
छंद का धमाल है
ReplyDeleteकमाल है कमाल है
वाह .....बहुत खूब
ReplyDeleteबन रहा है चुनाव का माहोल!
ReplyDeleteसुन्दर रचनाएँ!
खूबसूरत/तीखी रचनाएं....
ReplyDeleteसादर बधाई...
चल दल-दल पर चल |
ReplyDeleteबदल बदल दल चल ||
बहुत खूब की है राजनीति पे चोट .
lajawaab ravikar jii...
ReplyDeleteaanand aayaa.
सुन्दर रचनायें.....बहुत खूब...
ReplyDeleteबेहद ख़ूबसूरत एवं उम्दा रचना ! बधाई !
ReplyDeleteलाजवाब रचना रविकर जी | बहुत उम्दा कुण्डलियाँ |
ReplyDeleteमेरे भी ब्लॉग में पधारें |
मेरी कविता
लाजवाब!
ReplyDeleteगज़ब की कुण्डलियाँ .... चनाव का माहोल गरमा रहा है ...
ReplyDelete:):) बहुत बढ़िया
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