Wednesday, 6 August 2014

नोच नाच दे फेंक, नाच नंगा करता है-

देख रहे है वानगी, जबर एक पर एक |
दिखा रहे हैवानगी, नोच नाच दे फेंक | 

नोच नाच दे फेंक, नाच नंगा करता है |
जब तब लेता छेंक, समय पानी भरता है |

कह रविकर कविराय, मनुज चुपचाप सहे हैं |
रोज लगाता चाप, दरिन्दा देख रहे हैं ||

5 comments:

  1. सच बहुत ही बुरी हालत है ।

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  2. बेहद उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ

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  3. बहुत सुन्दर है .

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