Tuesday 22 August 2017

चले यह जिंदगी लेकर हमेशा शाम तक रिश्ते-

कहीं बेनाम हैं रिश्ते, कहीं बस नाम के रिश्ते।
चतुर मानुष बनाते हैं हमेशा काम से रिश्ते।

मुहब्बत मुफ्त में मिलती सदा माँ बाप से लेकिन
लगाये दाम की पर्ची धरे गोदाम में रिश्ते।

शुरू विश्वास से होते समय करता इन्हे पक्का
अगर धोखा दिया इनको गये फिर काम से रिश्ते।।

रहो चुपचाप गलती पर, बहस बिल्कुल नही करना
खतम नाराजगी हो तो चले आराम से रिश्ते।।

बड़ा भारी लगे मतलब, निकलते ही किया हलका
कई मन के रहे थे जो बचे दो ग्राम के रिश्ते।

कभी भी जिंदगी के साथ रिश्ते चल नही पाते
चले यह जिंदगी लेकर हमेशा शाम तक रिश्ते।।

पड़ी हैं स्वार्थ में दुनिया नहीं वे याद करते हैं
पड़े जब काम तो भेजें इधर पैग़ाम वे रिश्ते।।

रवैया मूढ़ता उनकी अहम् उनका पड़े भारी
नहीं वे रख सके रविकर हमेशा थाम के रिश्ते।।

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (23-08-2017) को "खारिज तीन तलाक" (चर्चा अंक 2705) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete