IIT-Ghandhi-Nagar के प्रवास पर,२८ को वापसी
नारायणी दरिद्रता, अच्छे दिन की चाह ।
नारायणी दरिद्रता, अच्छे दिन की चाह ।
कंगाली कर बैठती, आटा गीला आह ।
आटा गीला आह, करम में लोढ़ा पत्थर ।
कैसे फिर नरनाह, यहाँ लाये दिन सुन्दर ।
भारत दुर्दिन झेल, भाग्य का तू तो मारा ।
पॉलिटिक्स ले खेल, लगा के रविकर नारा ॥
आपकी इस रचना का लिंक कल यानी शनिवार दिनांक - 19 . 7 . 2014 को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !
ReplyDeletenice
ReplyDeleteअच्छे दिनो में ऐसा तो ना लिखिये जी :)
ReplyDeleteबहुत सुंदर ।
बहुत सुंदर.
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteरचना मन को लुभा गई .
ReplyDeleteशास्त्रीजी के पिता श्री के निधन पर श्रद्धांजलि , ईश्वर शास्त्री जी को यह दुःख सहन करने की क्षमता प्रदान करे
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