Tuesday, 8 July 2014
मना रहे नित जश्न, त्रस्त आधी-आबादी-
फिरे सड़क पर सिरफिरे, आँखें रहे तरेर ।
लूट रहे रमणी मणी, गली गली अंधेर ।
गली गली अंधेर, क्वाँर के ये उन्मादी ।
मना रहे नित जश्न, त्रस्त आधी-आबादी ।
करे नियंत्रित कौन, मौन मत रहना रविकर ।
कुत्तों को पहचान, जोर से मारो पत्थर ॥
2 comments:
सुशील कुमार जोशी
9 July 2014 at 01:05
बहुत बढ़िया ।
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प्रतिभा सक्सेना
10 July 2014 at 23:00
विनाशकाले विपरीत बुद्धे !
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बहुत बढ़िया ।
ReplyDeleteविनाशकाले विपरीत बुद्धे !
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