रतन टाटा का चर्चित-विचार की अरब-पतियों को अपने
अति कीमती बंगलों से निकल कर
अपने आस-पास के विकास की
जिम्मेदारी भी लेनी चाहिए...
आधे की आधी, अपनी आबादी .रैन बसेरे की,
हो चुकी आदी
नाती- पोते, सभी साथ सोते.
जागते रहते,
दादा और दादी
कुछ तो खानाबदोश निकले.
जिंदगी सडकों पर बिता दी
सर के बँगले में सरकार,
इक कार-गैराज
और बनवा दी
अच्छा होता श्रीमान !
अपने गैराज में
एक खिड़की खुलवाते
ताज़ी हवा से
कुछ,
घर-परिवार का दर्जा पाते
कुछ,
घर-परिवार का दर्जा पाते
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