Wednesday, 18 May 2011

ऐसा क्यूँ-लोग सुधरे को ही सुधारते हैं' पर

इस युग में 
सज्जनों  को हो रहा है नुक्सान परिचय से, 
घनिष्ट परिचय से---
दोस्तों कि दुश्मनी घातक रही खुब , 
लम्बे अरसे से----
दुर्जनों ने आज भी सौदे किये, खुब लाभ पाया 
सज्जनों के हाथ बस नुक्सान आया 
सफलता से आज बस परचित जलें,पग-पग छलें
जो अपरचित, वे बेचारे, क्यूँकर खलें ??
 

2 comments:

  1. .

    सफलता से आज बस परचित जलें,पग-पग छलें
    जो अपरचित, वे बेचारे, क्यूँकर खलें ??...

    So true !

    I have witnessed and experienced this.

    .

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  2. फुल्ली = बहुत ही छोटी गलती, ढेंढर = ढेर सारा दोष

    औरन की फुल्ली लखैं , आपन ढेंढर नाय
    ऐसे मानुष ढेर हैं, चलिए सदा बराय

    चलिए सदा बराय, काम न अइहैं भइया
    करिहैं न सहयोग, जरुरत परिहै जेहिया

    कह 'रविकर' समझाय, ठोकिये फ़ौरन गुल्ली
    करिहैं न बकवाद, देख औरन की फुल्ली

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