बोरे में जब गूढ़-तम, रचनाएं पड़ी सड़े
झेले मायाजाल नित, माथे पर बल पड़े----
जाँच बिठाई क़त्ल पर, निकला यही निचोड़
कवि के जुल्मो-सितम से, भाग गई रण-छोड़---
अर्थ बूझ पाया नहीं, लागी लगन महान
पाठक संग मुठभेड़ में, निकली उसकी जान---
टेढ़ा-मेढा वाकया, लगा कलेजे तीर
नहीं पढ़ाकू जगत में, जो मारे सो मीर----
कवि के हाथों की रची, जग के हाथों मौत
सीधी-साधी कवितायें, निकली इनकी सौत--
जालिम कवियों का सामना, दद्दा रे!
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