- " नाम तो गुल का हो रहा है , फिर मैं अपना योगदान क्यूँ करूँ ? फिर उसने फूलों को छूना बंद कर दिया। उसने गुल से कहा - तुम बहुत ज्यादा फूल खिला रही हो , बहुत तेज़ी से लोग इसका इस्तेमाल भी कर रहे हैं । मैं चाहता हूँ तुम अपना काम धीरे-धीरे करो ।" एक बात और स्पस्ट हो पाती तो आनंद बढ़ जाता कि क्या गुल, समाज कल्याण के साथ-साथ गुलफाम के लिए भी कुछ कर पाती थी ? आखिर गुलफाम का कौन सा स्वार्थ पूरा नहीं हो पा रहा था ? गुल अपने गुलशन से जुडी हुई थी, गुलफाम गुल से.... जो चीज (गुलशन) कोई (गुल) पसंद करता है उसमे वो अधिक समय और स्नेह देता है, परन्तु जो (गुलफाम ) उसे (गुल) पसंद करने वाला होता है --- क्या उसकी तरफ उसका ध्यान यदा-कदा ही जाता है ? कहीं इसीलिए तो नहीं, ----वो धीरे काम करने कि बात कर रहा होता है. अभी इरफ़ान तो एक भला बन्दा लग रहा है, आशा है गुल को उसमे कोई ऐब नहीं नजर आएगा--- खुश रहे गुल, आबाद रहे गुलशन, नेकनीयत बना रहे इरफ़ान. और गुल उस गुलफाम क़ी अच्छी बातें याद रखें बुरी भूल जाए.
- Ravikar जी , आपने बहुत ही सार्थक प्रश्न पूछे हैं। अच्छा लगा ये देखकर की आपको सत्य जानने की उत्कंठा है। प्रश्न-१---क्या गुल, समाज कल्याण के साथ-साथ गुलफाम के लिए भी कुछ कर पाती थी ? उत्तर-1-- गुल जो भी करती थी वो समाज के लिए होता था और गुलफाम भी समाज का ही एक हिस्सा है इसलिए गुल द्वारा उगाये हुए फूलों का लाभ गुलफाम भी लेता था। यही गुल का योगदान था गुलफाम के लिए । इसके अलावा गुलफाम की भी एक बगिया थी , जिसको सुवासित करती थी गुल । ये गुल का व्यक्तिगत योगदान होता था गुलफाम के लिए। लेकिन दुर्भाग्य देखिये की एक दिन गुलफाम ने अपने ही हाथों से अपनी बगिया उजाड़ दी। उसने अपने सारे ब्लौग डिलीट कर दिए,। गुल को बहुत दुःख हुआ। जो अपने लगाए बाग़ को ही उजाड़ सकता है , वो भला दुसरे के बाग़ की एहमियत क्या समझेगा और सुवासित क्या करेगा ? .
- . प्रश्न २--आखिर गुलफाम का कौन सा स्वार्थ पूरा नहीं हो पा रहा था ? उत्तर-- गुलफाम चाहता था की गुल पूरी दुनिया के लिए फूल उगाना छोड़ दे और केवल उसी की होकर रहे । जो समय वो गुलशन की देख-भाल में लगाती है , वो समय सिर्फ गुलफाम को मिले। गुलफाम का यही स्वार्थ गुल से पूरा नहीं हो पा रहा था। लेकिन गुल को उसकी लालच पसंद नहीं आती थी । वो गुलफाम की खातिर अपनी बगिया से फूल चुनने वालों को निराश नहीं करना चाहती थी। गुल के लिए उसका 'गुलशन' ही जीवन का ध्येय बन गया है और वो उसी के माध्यम से आम जनता की सेवा करना चाहती थी । किसी की निजी संपत्ति नहीं है गुल । गुलफाम की यही अपेक्षा पूरी नहीं होती थी और इसी बात से निराश होकर वह गुल से द्वेष रखने लगा। गुल किसी की न होकर भी सबकी है । जो भी गुल के गुलशन से द्वेष रखता है वो मानव-हित के खिलाफ है और गुल को कभी नहीं पा सकता। .
- . @---और गुल उस गुलफाम क़ी अच्छी बातें याद रखें बुरी भूल जाए। उत्तर--बातें अच्छी हो या बुरी , गुल उन्हें भूलती नहीं कभी , बल्कि अपने गुलशन की मिटटी में सकारात्मकता की खाद देकर , उससे पुनः कोई बहुरंगी मनोवैज्ञानिक 'फूल' खिलाकर चुनने वालों के लिए प्रस्तुत कर देती थी। @---अभी इरफ़ान तो एक भला बन्दा लग रहा है, आशा है गुल को उसमे कोई ऐब नहीं नजर आएगा---...... इरफ़ान में कोई ऐब ही नहीं है , वो निस्वार्थ है। @----खुश रहे गुल, आबाद रहे गुलशन, नेकनीयत बना रहे इरफ़ान..... शुभकामनाओं के लिए आपका धन्यवाद। .
- अरे! इतना विस्तारपूर्वक शंका-समाधान करना और इतनी जल्दी, (१) अहो भाग्य गुल ! ----अतुलनीय-अतुल-------- प्रफुल्लित गात्र----- मन अतिशय प्रफुल्ल (२) गुल का एक अर्थ ------- अब न होगा व्यर्थ ---------"कोयले का अंगारा"------------- बुरा विचार सारा------ जलाने में समर्थ-------- गुल का यह अर्थ
- अपनी इन पंक्तियों में मुझे फेर-बदल तो करना ही पड़ेगा ------------- "तेरे गुल का अर्थ है-केवल दाग" ---------------------------------------------------- रे पुष्पराज- सुगंध तेरी पा सम्मोहित सी मैं कर कांटो की अनदेखी आत्मविश्वास से लबरेज तेरे पास आ गई - और धोखा खा गई . तूने छल-कपट से धर-पकड़ कर गोधूलि के समय कैद कर लिया व्यभिचार भी किया सुबह होने पर धकेल दिया कटु-सत्य ! तू तो महा धूर्त है. मद-कण से युक्त महालोलुप है . --------------------------------------- तेरे गुल का अर्थ है- केवल दाग---- सरसों का सौंदर्य देख- संसार को देता है सुगंध और स्वाद----
Monday, 30 May 2011
निस्वार्थ प्रेम " ZEAL" के लेख-कथा पर टिप्पणी
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ravikar ji bahut sundar prastuti hai gul-gulfam ki zeal ji ke uttar sahi hain aur sarthak bhi.
ReplyDeletedhanyvaad, ZEAL ko bhi dekhen
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