Tuesday 18 February 2014

उच्चकोटि के ढोंग, फँसाये कोटिक अंधे -


कोई नया नहीं है बहुत पुराना है फिर से आ रहा है वही दिन

सुशील कुमार जोशी 

भैया जी शुभकामना, रहे आज तक झेल |
चले पचासों वर्ष यह, तुम दोनों का खेल |

तुम दोनों का खेल, मेल यह दौड़े सरपट |
जनम जनम की जेल, मुहब्बत-खटपट चटपट |

रविकर बाइस साल, कृपा कर दुर्गे मैया |
सकुशल कुल परिवार, रहें खुश भाभी भैया ||  

"लगे खाने-कमाने में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

रूपचन्द्र शास्त्री मयंक 










माने शरमाने लगे, सिर्फ स्वार्थमय भोग |
शारीरिक सुख-साधते, जाने-माने लोग |

जाने-माने लोग, कराएं परहित धंधे |
उच्चकोटि के ढोंग, फँसाये कोटिक अंधे |

बन बैठे भगवान्, बनायें विविध बहाने |
तन मन धन का दान, करोड़ों लगे कमाने || 


रविकर तनु अस्वस्थ, देख जन-गण लाचारी-



 
कुण्डलियाँ
(१)
दीखे अ'ग्रेसर खड़ा, छात्रा छात्र तमाम ।
करें एकश: अनुकरण, आवश्यक व्यायाम ।
आवश्यक व्यायाम, भंगिमा किन्तु अनोखी ।
कई डुबाएं नाम, हरकतें नइखे चोखी ।
वहीँ ईंट पर बाल, लगन से रविकर सीखे ।
ऊँची भरे उड़ान, सहज अनुकर्ता दीखे ॥

भैया भ्रष्टाचार भी, भद्रकार भरपूर |
वाँछित करे विकास यह, मुँह में मियाँ मसूर |

मुँह में मियाँ मसूर, कर्मरत कई आलसी |
 देश-काल गतिमान, बदलना नहीं पॉलिसी |

रविकर भकुआ एक, "आप" की लेत बलैया |
रहा जमाना देख, दाग भी अच्छे भैया ॥  
  

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर।
    आपकी टिप्पणियाँ उतसाह बढ़ाती हैं।

    ReplyDelete
  2. वाह !
    उल्लूक पर आपकी
    नजरें इनायत हुई ।
    बहुत बहुत आभार
    रविकर जी ।
    आपका स्नेह इसी तरह
    बना रहे यही कामना है ।

    ReplyDelete
  3. आ० बढ़िया सूत्र व प्रस्तुति , धन्यवाद
    Information and solutions in Hindi

    ReplyDelete
  4. सुन्दर सूत्र एवं अति सुन्दर कुण्डलियाँ ..

    ReplyDelete