Saturday 24 August 2013

विवादास्पद सुन बयाँ, जन-जन जाए चौंक -



 उल्लूक टाईम्स
छोटी मोटी जगह पर, करता खुद को बन्द |
बिना रीढ़ के जीव का, अपना ही आनन्द |
अपना ही आनन्द, चरण चुम्बन में माहिर |
भरे पड़े छल-छंद, किन्तु न होते जाहिर |
चले समय के साथ, लाल कर अपनी गोटी |
ऊँचा झंडा हाथ, बात क्या छोटी मोटी ??


रविकर  
 विवादास्पद सुन बयाँ, जन-जन जाए चौंक |
नामुराद वे आदतन, करते पूरा शौक |
करते पूरा शौक, छौंक शेखियाँ बघारें |
बात करें अटपटी, हमेशा डींगे मारें |
रखते सीमित सोच, ओढ़ते छद्म लबादा |
खोलूं इनकी पोल, करे रविकर कवि वादा |

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कपड़े के पीछे पड़े, बिना जाँच-पड़ताल |
पड़े मुसीबत किसी पर, कोई करे सवाल |

कोई करे सवाल, हिमायत करने वालों |
व्यर्थ बाल की खाल, विषय पर नहीं निकालो |

मिले सही माहौल, रुकें ये रगड़े-लफड़े ।
देकर व्यर्थ बयान, उतारो यूँ ना कपड़े ॥

 

हमारा देश बिना बाड़ के खेत जैसा हो गया हैं !!

पूरण खण्डेलवाल 


बिना बाड़ के हो गया, अपना देश महान |
बाड़-पडोसी खा रही, नित्य खेत-मैदान |
नित्य खेत-मैदान, बाड़ उनकी यह घातक |
करते हम आराम, आदतें बड़ी विनाशक |
चेतो नेता मूढ़, जाय नित शत्रु ताड़ के |
विषय बहुत ही गूढ़, रहो मत बिना बाड़ के ||

अफवाहें अच्‍छी लगने लगी हैं : दैनिक हिंदी मिलाप 24 अगस्‍त 2013 अंक में स्‍तंभ बैठे ठाले में प्रकाशित

नुक्‍कड़  

करा वाहवाही गई, वाहियात अफवाह |
हवा बना ले मीडिया, पब्लिक किन्तु कराह |

पब्लिक किन्तु कराह, नहीं परवाह किसी को |
दाह दाह संस्कार, दिखाते रहें इसी को |

रेप हादसा मौत, नहीं न इनको अखरा |
रहा मसाला चटक, कटा बों बों कर बकरा ||

रविकर 

डालर डोरे डालता, अर्थव्यवस्था कैद |
पुन:विदेशी लूटते, फिर दलाल मुस्तैद-
हर दिन बढ़ता घाटा है |
झूठा कौआ काटा है |
होय कोयला लाल जो, बचे शर्तिया राख |
गायब होती फाइलें, और बचाते  साख -
माँ-बेटे ने डाटा है ?
झूठा कौआ काटा है |
रहा रुपैये का बिगड़, धीरे धीरे रूप |
करे ख़ुदकुशी अन्ततः, कूदे गहरे कूप |
यूँ छाता सन्नाटा है |
झूठा कौआ काटा है ||
भोलू-भोली भूलते, रहा नहीं कुछ याद । 
याददाश्त कमजोर है, टू-जी की बकवाद । 
यह भी बिरला टाटा है । 
झूठा कौआ काटा है ||
चूर गर्व मुंबई का, करे कलंकित दुष्ट । 
शर्मिंदा फिर देश है, हुवे आम जन रुष्ट । 
पौरुषता पर चाटा  है
झूठा कौआ काटा है ||

चलो मोदी को नहीं लाते..................बलवीर कुमार


yashoda agrawal 


कसके धो कर रख दिया, पूरा दिया निचोड़ |
मुद्रा हुई रसातली, भोगें नरक करोड़ |

भोगें नरक करोड़ , योजना बनी लूट की |
पाई पाई जोड़, गरीबी लगा टकटकी |

पर पाए ना लाभ, व्यवस्था देखे हँस के |
मोदी पर संताप, मचाती सत्ता कसके ||

8 comments:

  1. बिना रीढ़ के प्राणी का अपना ही आनन्द,
    माँ बहन बेच कर राज करे सानंद..
    लाजवाब कुण्डलियाँ !!

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  2. सुन्दर कुंडलियों नें सूत्रों को रोचक बना दिया !
    सादर आभार !!

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  3. कुंडलियाँ रविकर द्वारा
    जब लिख दी जाती है
    सूत्रो की चाँदी बन आती है

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  4. बहुत सुन्दर कुंडलियों ..

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  5. वाह !!! बहुत सुंदर कुण्डलियाँ ,,,

    RECENT POST : पाँच( दोहे )

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    साझा करने के लिए धन्यवाद।

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज सोमवार (26-08-2013) को सुनो गुज़ारिश बाँकेबिहारी :चर्चामंच 1349में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  8. बहुत अच्छी कुंडलियां पढ़ने को मिलीं, धन्यवाद.

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