माँ ...(दिगम्बर नासवा)
माँ को सादर नमन कर, दूँ श्रद्धांजलि मित्र ।
असमय घटनाएं करें, हालत बड़ी विचित्र ।
हालत बड़ी विचित्र, दिगम्बर सहनशक्ति दे । पाय आत्मा शान्ति, उसे अनुरक्ति भक्ति दे । बुद्धिमान हैं आप, सँभालो खुद को रविकर । रहा सदा आशीष, नमन कर माँ को सादर ।। |
अक्स विहीन आईनासंगीता स्वरुप ( गीत )
गीत.......मेरी अनुभूतियाँ
मन को कैसे पोट ली, ली पोटली उतार । चुप्प चुकाने चल पड़ी, दीदी सभी उधार । दीदी सभी उधार, दर्प-दर्पण है कोरा । नाती पोते आदि, नहीं क्या उन्हें अगोरा । शंख सीप जल रत्न , सजा देते फिर दर्पण । सजा मजा का साथ, पिरो कुछ मनके रे मन । |
मेरे बिखरे हुये गेसू और उलझी लटें तुम्हारी राह देखती है
DR. PAWAN K. MISHRA
झिड़की खा वापस हुवे, बनते तुलसीदास |
रत्ना की भूले सकल, राम रतन-धन पास | राम रतन-धन पास, नहीं सौन्दर्य उपासक | अब क्यूँ देखे आस, छोडती स्वेच्छा से हक़ | है विछोह की लूक, बंद कर मन की खिड़की | रविकर हो कल्याण, मिले गर रत्ना झिड़की || |
मेरे दो साथी !
अभिसार
S/O संतोष त्रिवेदी
डौले डोरेमान के, लेते मन को मोह |
मदद सदा मेरी करे, घुसकर कंदर-खोह | घुसकर कंदर-खोह, ढूँढ़ प्रश्नों के उत्तर | पर नटखट सिन्चैन, उड़ा दे बना कबुत्तर | सुधरे किन्तु जरूर, होयगा हौले हौले | हँसता डोरेमान, देख नटखट के डौले | |
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यह जुबाँ कहती जुबानी, जो जवानी ढाल पर ।
क्या करे शिकवा-शिकायत, खुश दिखे बदहाल पर ।|
आँख पर परदे पड़े, आँगन नहीं पहले दिखा -
नाचते थे उस समय जब रोज उनकी ताल पर ।।
कर बगावत हुश्न से जब इश्क अपने आप से -
थूक कर चलता बना बेखौफ माया जाल पर ।।
आँच चूल्हे में घटी घटते सिलिंडर देख कर
चाय काफी घट गई अब रोक ताजे माल पर ।।
वापसी मुश्किल तुम्हारी, तथ्य रविकर जानते-
कौन किसकी इन्तजारी कर सका है साल भर ||
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रचते पढ़ते छंद, सुने प्रभु उन बन्दों की
छंदों की महिमा विषद, चर्चित शुभ-सन्देश |
कविता रच ले पाठ कर, करे ध्यान अनिमेष | करे ध्यान अनिमेष, आत्म उत्थान जरुरी |
सच्चा व्यक्ति विशेष, होय अभिलाषा पूरी |
रचते पढ़ते छंद, सुने प्रभु उन बन्दों की |
सच्चा हो ईमान, सुनों महिमा छंदों की ||
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आभार गुरुवर !
ReplyDeleteमाँ से बतियाती ,दुलराती ,पुकारती आर्त नाद करती प्रगाढ़ अनुभूतियों से संसिक्त ,सभी को तदानुभूति कराती सशक्त बताचात माँ के साथ कैसे कह दूं -
ReplyDeleteतू अब दीवार पे टंगे फ्रेम में है जब कि मैं हूँ हर दम तेरी ही छाया में पल प्रति पल .
जीवन के घटित वियोग का ,माँ की आवाज़ में यह एहसास कराना मैं ज़िंदा हूँ ......मन की पीड़ा को मार्मिकता देती है माँ -क्या तू भी तोड़ेगा तिनका ....माँ का अपना पन .....दर्द समय के साथ पकता है .ऊपर घाव दिखाई न दे अन्दर अन्दर पकता रहे .....माँ कभी बूढी नहीं होती ...माँ को कभी मरना नहीं चाहिये
.माँ ...
(दिगम्बर नासवा)
स्वप्न मेरे................
माँ को सादर नमन कर, दूँ श्रद्धांजलि मित्र ।
असमय घटनाएं करें, हालत बड़ी विचित्र ।
हालत बड़ी विचित्र, दिगम्बर सहनशक्ति दे ।
पाय आत्मा शान्ति, उसे अनुरक्ति भक्ति दे ।
बुद्धिमान हैं आप, सँभालो खुद को रविकर ।
रहा सदा आशीष, नमन कर माँ को सादर ।।
ReplyDeleteरचते पढ़ते छंद, सुने प्रभु उन बन्दों की |
सच्चा हो ईमान, सुनों महिमा छंदों की ||
छंद बद्ध करते हैं रविकर निसबासर छंदों को ...
छन्दोबद्ध रचते रहे रोज़ नया एक छंद ,
ReplyDeleteछंद छंद से यों कहे कैसा है भई छंद .
छंदों की महिमा विषद, चर्चित शुभ-सन्देश |
कविता रच ले पाठ कर, करे ध्यान अनिमेष |
करे ध्यान अनिमेष, आत्म उत्थान जरुरी |
सच्चा व्यक्ति विशेष, होय अभिलाषा पूरी |
रचते पढ़ते छंद, सुने प्रभु उन बन्दों की |
सच्चा हो ईमान, सुनों महिमा छंदों की ||
माँ से बतियाती ,दुलराती ,पुकारती आर्त नाद करती प्रगाढ़ अनुभूतियों से संसिक्त ,सभी को तदानुभूति कराती सशक्त बताचात माँ के साथ कैसे कह दूं -
ReplyDeleteतू अब दीवार पे टंगे फ्रेम में है जब कि मैं हूँ हर दम तेरी ही छाया में पल प्रति पल .
जीवन के घटित वियोग का ,माँ की आवाज़ में यह एहसास कराना मैं ज़िंदा हूँ ......मन की पीड़ा को मार्मिकता देती है माँ -क्या तू भी तोड़ेगा तिनका ....माँ का अपना पन .....दर्द समय के साथ पकता है .ऊपर घाव दिखाई न दे अन्दर अन्दर पकता रहे .....माँ कभी बूढी नहीं होती ...माँ को कभी मरना नहीं चाहिये .
माँ को सादर नमन कर, दूँ श्रद्धांजलि मित्र-
माँ ...
(दिगम्बर नासवा)
स्वप्न मेरे................
माँ को सादर नमन कर, दूँ श्रद्धांजलि मित्र ।
असमय घटनाएं करें, हालत बड़ी विचित्र ।
हालत बड़ी विचित्र, दिगम्बर सहनशक्ति दे ।
पाय आत्मा शान्ति, उसे अनुरक्ति भक्ति दे ।
बुद्धिमान हैं आप, सँभालो खुद को रविकर ।
रहा सदा आशीष, नमन कर माँ को सादर ।।
आभार कविवर।
ReplyDeleteआपने तो आज उलझाकर रख दिया। जिस पोस्ट पर क्लिक किया उसी से जुड़ता चला गया।
बहुत सुन्दर लिंक्स ...
ReplyDeleteआभार
अनु
a links sajaye hai likkhad ji
ReplyDeletemujhe jagah dene ka shukriya
उधार उतारा है जो ,लिया हुआ था कर्ज़
ReplyDeleteनिपटा दिये हैं सारे , थे जो मेरे फर्ज़
थे जो मेरे फर्ज़ ,न की कोई कोताही
पोते के मोह में, हो गयी मैं भरमाई
भरम दूर हो गया , कर लिया खुद में सुधार
सारे नाते तोल कर ,अब चुकता किया उधार ।
शुक्रिया
बहुत ही अच्छे लिंक्स एवं प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार आपका
सादर