दुर्मुख असुर दारुण दुखों से साधु मन छलने लगा।
वरदान पा कर दुष्ट आ कर विश्व को दलने लगा।
ब्रहमा वरुण यम विष्णु व्याकुल इंद्र को खलने लगा।
सुर साधु बल-पौरुष घटा विश्वास जब ढलने लगा।
तब हो इकट्ठा देवता कैलास पर्वत पर गये।
गौरा विराजे रूप छाजे सर्व आनंदित भये।
बोले सकल सुर एक सुर मे कर कृपा जगदम्बिके।
दुर्मुख असुर संहार कर दीजै अभय माँ कालिके।
सुन कर विनय निर्णय करे माँ रूप मारक धर रही।
एकांश शिव मुख मे गया विषपान मैया कर रही।
आकार सम्यक रंग काला कंठ में शिव के बने।
तब तीसरा शिव नेत्र खोलें युद्ध अति-भीषण ठने।
माँ कालिके के माथ पर भी नेत्र शिव सम तीसरा।
शुभ चंद्र रेखा भाल पर विष शिव कराली था भरा।
धारे विविध आभूषणों को अस्त्र-शस्त्रों को लिए।
क्रोधित भयंकर रूप धारे रक्त खप्पर में पिए।।
यह देख कुल सुर-सिद्ध भागे कालिके हुंकार दे।
हुंकार से दुर्मुख मरे कुल दैत्य माँ संहार दे।
पर क्रोध बढ़ता देखकर सुर साधुजन घबरा गये।
तब रूप शिशु का धार कर पैरों तले शिव आ गये।
ममतामयी माँ ले उठा शिशु को पिलाती दुग्ध है।
यह दृश्य पावन देख कर नश्वर-जगत भी मुग्ध है।
शिव दुग्ध के ही साथ मॉ का क्रोध सारा पी गये।
माँ कालिका मूर्छित हुई शिव नृत्य फिर करते भये।
तांडव-भयंकर हो शुरू चैतन्य हो माँ कालिके ।
खुद मुंडमाला डालकर तांडव करे चंडालिके।
मॉ योगिनी मॉ कालिके कुल कष्ट भक्तों का हरो।
इस देश रविकर ग्राम पर कुल पर कृपा माता करो।