Monday, 2 September 2013

सिखा वक्त की मार दे, रविकर बात तमाम-


समय ...


(दिगम्बर नासवा) 



सिखा वक्त की मार दे, रविकर बात तमाम |
जब तक जीवनसार दे, लेत लकुटिया थाम- 


रविकर मद में चूर, चाल चल जाय बला की

गलती का पुतला मनुज, दनुज सरिस नहिं क्रूर |
मापदण्ड दुहरे मगर, व्यवहारिक भरपूर |

व्यवहारिक भरपूर, मुखौटे पर चालाकी |
रविकर मद में चूर, चाल चल जाय बला की |

करे स्वार्थ सब सिद्ध, उमरिया जस तस ढलती |
करता अब फ़रियाद, दाल लेकिन नहिं गलती ||



जेल अपवित्र न हो जाये भोंपू जी ?-राजनैतिक लघु कथा

shikha kaushik 





मैला मुँह में मजलिसी, मठाधीश मक्कार |
मढ़िया में मजबूरियाँ, जाय बचपना हार  ||


लोकतंत्र की शक्ल में, दिखने लगी चुड़ैल |

परियों सा लेकर फिरे, पर मिजाज यह बैल |


पर मिजाज यह बैल, भेद हैं कितने सारे |

वंश भतीजा वाद, प्रान्त भाषा संहारे |


जाति धर्म को वोट, जीत षड्यंत्र मन्त्र की |

 अक्षम विषम निहार, परिस्थिति लोकतंत्र की |

अर्जुन के बन सारथी दिया उसे उपदेश , दूर किये संशय सभी दे उसको उपदेश।

Virendra Kumar Sharma 

सत रज रमते कर्म में, तम तो लापरवाह | 
लिप्त भोग में काल कुछ, तम देता फिर दाह |

आगे पीछे सोच, कृत्य मत कर मनमाने

माने मन की बात तो, आज मौज ही मौज |
कल की जाने राम जी, आफत आये *नौज |

आफत आये *नौज, अक्ल से काम कीजिए |
चुन रविकर सद्मार्ग, प्रतिज्ञा आज लीजिये |

रहे नियंत्रित जोश, लगा ले अक्ल दिवाने |
आगे पीछे सोच, कृत्य मत कर मनमाने ||

*ईश्वर ना करे - 


4 comments:

  1. वाह ... शुक्रिया मेरी रचना पे काव्यमय चर्चा का ...

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  2. सुंदर प्रस्तुति सुंदर कूंडलियाँ !

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  3. बहुत सुन्दर लिंक लिखाड़ी का

    बना शीर्षक गीता की अगली पोस्ट का .

    शुक्रिया आपकी बेहतरीन टिपण्णी और लिंक लिखाड़ वैभव का .

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