मुझे पागल ही बने रहने दो ( लघु कथा )
उपासना सियाग
पागलपन ही था तभी, रही युगों से जाग ।
भूली अपने आप को, भाया भला सुहाग ।
भाया भला सुहाग, हमेशा चिंता कुल की ।
पड़ी अगर बीमार, समझ के हलकी फुलकी ।
दफ्तर चलते बने, जाय विद्यालय बचपन ।
अब पचपन की उम्र, चढ़ा पूरा पागलपन ।।
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डायरेक्ट कैश ट्रांसफर (कंडीशन एप्लाय)
अगर हाथ के साथ है, है पैसा तब साथ ।
यही कार्ड आधार है, सीधा सच्चा पाथ ।
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मेरी रत्ना को ऐसे तेवर दे
अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com)
सुन्दर-शारद-वन्दना, मन का सुन्दर भाव ।
ढाई आखर से हुआ, रविकर हृदय अघाव ।
रविकर हृदय अघाव, पाव रत्ना की झिड़की ।
मिले सूर को नयन, भक्ति की खोले खिड़की ।
कथ्य-शिल्प समभाव, गेयता निर्मल अंतर ।
मीरा तुलसी सूर, कबीरा गूँथे सुन्दर ।।
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देवदासी प्रथाJai Sudhir
Bitter talk , But real talk
परिवर्तन है कुदरती, बदला देश समाज । बदल सकी नहिं कु-प्रथा, अब तो जाओ बाज । अब तो जाओ बाज, नहीं शोषण कर सकते । लिए आस्था नाम, पाप सदियों से ढकते । दो इनको अधिकार, जियें ये अपना जीवन । बदलो गन्दी प्रथा, जरुरी है परिवर्तन । |
अहं पुरुष का तोड़, आज की सीधी धारा -
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