मेरी टिप्पणियां
(२)
ताने बेलन देख के, तनी-मनी घबराय |
पर ताने मारक अधिक, सुने जिया ना जाय |
सुने जिया ना जाय, खाय ले मन का चैना |
रविकर गया अघाय, खाय के चना च बैना |
मनमाने व्यवहार, नहीं ब्रह्मा भी जाने |
जब ताने में धार, व्यर्थ क्यों बेलन ताने ||
(१)
सिहरे रविकर तन-बदन, भयकारी यह चित्र |
चिमटा बेलन तवा का, नाम न लीजै मित्र |
नाम न लीजै मित्र, हृदय कमजोर हमारा |
वो तो बड़ी विचित्र, रोज चढ़ जाता पारा |
अभी हमारी मौज, गई जो बीबी पिहरे |
पढूं आप का काव्य, बदन रह रह कर सिहरे ||
दोहे
खोटे सिक्के चल रहे, गजब तेज रफ़्तार |
गया जमाना यूँ बदल, अब इक्के बेकार ||