यायावर की यह कथा, मन के बड़े समीप ।
प्रेम लुटाते जा रहे, कर प्रज्वलित प्रदीप ।
कर प्रज्वलित प्रदीप, अश्व यह अश्वमेध सा ।
बाँध सके ना कोय, ठहरना है निषेध सा ।
सिखा गए संगीत, गए सन्मार्ग दिखाकर ।
सादर करूँ प्रणाम, सफ़र कर 'वे' यायावर ।।
चाह जहाँ पर है सखे, राह वहीँ दिख जाय ।
ग्राहक पक्का हो गया, ठेले तुझे सलाम ।।
बात पते की कह गए, बालक सब्जी खोर ।
ठंडा पानी पी करो, राजा भैया गौर ।।
पारस तो निर्लिप्त हो, करे काम चुपचाप ।
बढ़ें भाव जिस पिंड के, रास्ता लेवें नाप ।।
क्वचिदन्यतोSपि..
चड्ढी बिन खेला किया, आठ साल तक बाल ।
शीतल मंद समीर से, अंग-अंग खुशहाल ।
अंग-अंग खुशहाल, जांघिया फिर जो पा ली।
हुवे अधिक जब तंग, लंगोटी ढीली ढाली |
चड्ढी का खटराग, बैठ ना पावे खुड्डी ।
घट जावें इ'स्पर्म, बिगाड़े सेहत चड्ढी ।।
सिंहावलोकन
बड़ा मार्मिक कष्ट-प्रद, सारा यह दृष्टांत ।
असहनीय जब परिस्थित, सहज लगे प्राणांत ।
सहज लगे प्राणांत, प्रशासन की अधमाई ।
या कोई षड्यंत्र, समझ मेरे ना आई ।
पर प्राणान्तक कष्ट, झेल तू प्रियजन खातिर ।
बिन तेरे परिवार, मिटा दे दुनिया शातिर ।
Sushil Kumar Joshi at "उल्लूक टाईम्स "
सारे जैसा सोचते, तू वैसा ही सोच ।
बकरी को कुत्ता कहें, मत कुत्ता को कोंच ।
मत कुत्ता को कोंच, लोच जीवन में आया ।
लुच्चों ने ही आज, सदन में नाम कमाया ।
हरिश्चंद के पूत, घूमते मारे मारे ।
करो वही सब काम, करें जो चालू सारे ।।
भक्त स्वार्थी हो गए, भूल गए भगवान् ।
बुद्धि गिरवी रख करें, ढोंगी के गुणगान ।।
गोरो के रंगरूट ये, काला तन-मन चाल ।
लूट-पाट कर कुकर्मी, चले ठोंकते ताल ।।
अरुण चन्द्र रॉय at सरोकार
सुविधा-भोगी छद्मता, भोगे रेखा-पार।
वंचित भोगे *त्रिशुचता, अलग-थलग संसार ।।
*दैहिक-दैविक भौतिक ताप ।
डा. अरुणा कपूर. at मेरी माला,मेरे मोती...
गस्त कबीरा मारता, अक्खड़ ढूंढे खूब ।
कोठे पर पाया पड़ा, रहा सुरा में डूब ।
रहा सुरा में डूब, चरण-चुम्बन कर चहके ।
अपनों को अपशब्द, गालियाँ देकर बहके ।
यह अक्खड़पन व्यर्थ, स्वार्थी सोच बताता ।
फँसा झूठ में जाय, तोड़ के सच्चा नाता ।।