मेरी कलम को मिली वज्म , बालकोनी में आज अपनी ॥
बन गया चाय का कप, अचानक मदिरा का प्याला
उम्र भर की फ़िक्र हुई ख़त्म, बालकोनी में आज अपनी ।
करे आजाद जुल्फों को, खींचकर तौलिया ऐसे
गिरा बिजुली दिया है जख्म, बालकोनी में आज अपनी ।
गरदन झटक के जब जुल्फों को लहराया
हुई शीत लहरी सी सिहरन, बालकोनी में आज अपनी ।
ek or kar k keshu unhe toliye se jhatka
baarish hui jhama jham, balcony me aaj apni
meri or mudi gardan to suraj pe se hata badal
satrangi hua mausam, balcony me aaj apni
nazar "kush" ki atak jaaye, juban kuch bhi na keh paaye
per lekhni fir bani humdam, balcony me aaj apni.!!
रविकर की रचना -
नहाकर नज्म निकलेगी, अगर यूँ रोज छज्जे पर ।
जमा दे वज्म गैरों की, गजल पुर-जोर छज्जे पर || ॥
> बने तब चाय प्याले की, अचानक हुश्न की मदिरा ।
> गिरे अखबार हाथों से, बहकता इश्क छज्जे पर ॥
> करे आजाद जुल्फों को, झटक कर तौलिया ऐसे
> गरजकर मेघ से बिजली, गिरे नि:शब्द छज्जे पर ।
> छुई पुरवा हुई सिहरन, बरसती बूँद नहलाये ।
> नहा के रेशमी काया, भिगो दे देह छज्जे पर ॥
> नजर रविकर अटक जाए, जुबाँ कुछ भी न कह पाये ।
> बदल ऐसा गया मौसम, हुआ मदहोश छज्जे पर ।।