Wednesday, 30 December 2015

मंगलमय नववर्ष, होय शुभ सोलह आना


कुण्डलियाँ 
सोलह आना सत्य है, है अशांति चहुँओर |
छली-बली से त्रस्त हैं, साधु-सुजन कमजोर | 
साधु-सुजन कमजोर, आइये होंय इकठ्ठा |
उनकी जड़ में आज, डाल दें खट्टा-मठ्ठा |
ऋद्धि-सिद्धि सम्पत्ति, होय फिर सुखी जमाना |
मंगलमय नववर्ष, होय शुभ सोलह आना ||

दोहा 
मंगलमय नव-वर्ष हो, आध्यात्मिक उत्कर्ष ।
बढे मान हर सुख मिले, विकसे भारत वर्ष ॥ 

Monday, 12 October 2015

होते जीव हलाल, बैठ के देखें बन्दर

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बन्दर-भालू-सर्प बिन, मरा मदारी आज |
पशु-अधिकारों पे उठी, जब से ये आवाज |

जब से ये आवाज, हुवे खुश कुत्ता बिल्ली |
अभयारण में बाघ, सुरक्षित करती दिल्ली |

किन्तु विरोधाभास, देश-दुनिया के अंदर |
होते जीव हलाल, बैठ के देखें बन्दर ||

Tuesday, 1 September 2015

रविकर मन हलकान, निठल्ला फेरे माला-

सालाना जलसे किये, खूब बढ़ाई शाख |
 लेकिन पति भाये नहीँ, अब तो फूटी आँख | 

अब तो फूटी आँख, रोज बच्चों से अम्मा |
कहती आँख तरेर, तुम्हारा बाप निकम्मा । 

रविकर मन हलकान, निठल्ला फेरे माला |
वह तो रही सुनाय, लगा के मिर्च-मसाला ||

Monday, 22 June 2015

बिना दवा सेहत सही, तन मन रहे निरोग-

योगी भोगी योगमय, अच्छा है संयोग |
बिना दवा सेहत सही, तन मन रहे निरोग |
तन मन रहे निरोग, दवा के बचते पैसे |
फिर भी हैं कुछ लोग, मिले हैं ऐसे-वैसे |
इनमे से ही एक, मिला है रविकर ढोंगी |
करता हर दिन योग, किन्तु है बड़ा वियोगी ||

Wednesday, 6 May 2015

दोहे -

(1)
ओवर-कॉन्फिडेंट हैं, इस जग के सब मूढ़ |
विज्ञ दिखे शंकाग्रसित, यही समस्या गूढ़ || 

(2)
चौथेपन तक समझ पर, उँगली रही उठाय । 
माँ पत्नी क्रमश: बहू, किन्तु समझ नहिं आय ॥ 


Monday, 16 February 2015

आज वही माँ-बाप, भटकते मारे मारे-


हारे पापा हर समय, रहे जिताते पूत |
मुड़कर पीछे देखते, बिखरे पड़े सुबूत |

बिखरे पड़े सुबूत, आज नाराज विधाता |
हर दुख से हर बार, उबारी अपनी माता |

आज वही माँ-बाप, भटकते मारे मारे |
कह रविकर घबराय, परस्पर बने सहारे || 

Thursday, 5 February 2015

जब ताने में धार, व्यर्थ क्यों बेलन ताने

मेरी टिप्पणियां 
(२)
ताने बेलन देख के, तनी-मनी घबराय  |
पर ताने मारक अधिक, सुने जिया ना जाय |
सुने जिया ना जाय, खाय ले मन का चैना |
रविकर गया अघाय, खाय के चना च बैना |
मनमाने व्यवहार, नहीं ब्रह्मा भी जाने |
जब ताने में धार, व्यर्थ क्यों बेलन ताने || 
(१)
सिहरे रविकर तन-बदन, भयकारी यह चित्र |
चिमटा बेलन तवा का, नाम न लीजै मित्र |
नाम न लीजै मित्र, हृदय कमजोर हमारा |
वो तो बड़ी विचित्र, रोज चढ़ जाता पारा |
अभी हमारी मौज, गई जो बीबी पिहरे | 
पढूं आप का काव्य, बदन रह रह कर सिहरे ||

दोहे 
खोटे सिक्के चल रहे, गजब तेज रफ़्तार |

गया जमाना यूँ बदल, अब इक्के बेकार || 

Sunday, 18 January 2015

फैला रही प्रकाश, चिता जब धू धू जलती-

जलती जाए जिंदगी, ज्योति न जाया जाय । 
आँच साँच को दे पका, कठिनाई मुस्काय । 

कठिनाई मुस्काय, जिंदगी कागद लागे । 
अपनी मंजिल पाय,  देखते उससे आगे । 

गूढ़ कहानी आप, यहाँ स्वाभाविक चलती । 
फैला रही प्रकाश, चिता जब धू धू जलती॥ 

दोहा 
जाति ना पूछो साधु की, कहते राजा रंक |

मजहब भी पूछो नहीं, बढ़ने दो आतंक ||