Tuesday 1 September 2015

रविकर मन हलकान, निठल्ला फेरे माला-

सालाना जलसे किये, खूब बढ़ाई शाख |
 लेकिन पति भाये नहीँ, अब तो फूटी आँख | 

अब तो फूटी आँख, रोज बच्चों से अम्मा |
कहती आँख तरेर, तुम्हारा बाप निकम्मा । 

रविकर मन हलकान, निठल्ला फेरे माला |
वह तो रही सुनाय, लगा के मिर्च-मसाला ||

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...

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  2. वाह !

    मिर्च मसाला लगा खाय स्वाद से कई साल हो आये
    शुभ संकेत है अगर पता लगने में इतनी देर हो जाये :)

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बृहस्पतिवार (03-09-2015) को "निठल्ला फेरे माला" (चर्चा अंक-2087) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. आपकी रचनाओं में जो अभिव्यक्ति की सरलता और पूर्णता है वह विशिष्ट बनाती है रचनाओं को . वाह..

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  5. रविकर मन हलकान, निठल्ला फेरे माला |
    वह तो रही सुनाय, लगा के मिर्च-मसाला ||
    ...मौका दे दिया होगा

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