Tuesday, 30 August 2016

कब से 'रविकर' तन-बदन तलता रहा -

रात दिन जीवन मुझे खलता रहा | प्यार और विश्वास भी छलता रहा | क्या बुझाएगी हवा उस दीप को जो सदा तूफान में जलता रहा | तेल की बूंदे इसे मिलती रही मुश्किलों का दौर यूँ टलता रहा -- कुछ थी हिम्मत और कुछ थे हौंसले अस्थिया-चमड़ी-वसा गलता रहा खून के वे आखिरी कतरे चुए जिस बदौलत दीप यह पलता रहा अब अगर ईंधन चुका तो क्या करें कब से 'रविकर' तन-बदन तलता रहा ||