रात दिन जीवन मुझे खलता रहा |
प्यार और विश्वास भी छलता रहा |
क्या बुझाएगी हवा उस दीप को
जो सदा तूफान में जलता रहा |
तेल की बूंदे इसे मिलती रही
मुश्किलों का दौर यूँ टलता रहा
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कुछ थी हिम्मत और कुछ थे हौंसले
अस्थिया-चमड़ी-वसा गलता रहा
खून के वे आखिरी कतरे चुए
जिस बदौलत दीप यह पलता रहा
अब अगर ईंधन चुका तो क्या करें
कब से 'रविकर' तन-बदन तलता रहा ||