अॉफिस समय से आ गया, आखिर खुशी का मामला।
दिनभर लतीफे, मौज-मस्ती, चाय-पानी भी चला।
हँसते हुए रविकर प्रफुल्लित, एक दिन लौटा मगर
कारण बताते रात बीती, पर न टल पाई बला।
रहते हुए मेरे भला, कैसे प्रफुल्लित हो रहे
है कौन जिसने दी खुशी पति हो रहा क्यों बावला।
पत्नी परेशां प्यार से पुचकार कारण पूछती।
तब फूँक कर पति छाछ पीता, दूध से जो कल जला।
हर काम बाखूबी करो, हँसते-हँसाते नित रहो
रोनी-शकल गरदन-झुका, चालाक पति अब घर चला।।
है बेमुरौव्वत यह जगत।
करना भरोसा आप मत।
देता रहा प्रवचन मगर
था ताक में बगुला-भगत।
आकाश कुसुमों की ललक-
पर छू न पाता एक छत।
आया चुनावी साल तो
वादे करे वह अनवरत।
बेसब्र रविकर घूमता
गिनता नखत पाया न खत।।
मिलते रहे हर दिन मगर जाना नहीं।
जाना अगरचे छोड़ कर जाना नहीं।
नाराज होकर मुँह फुलाकर तुम रहो-
मैं तो तुम्हारे पास, घर जाना नहीं।।
पेट्रोल मँहगा हो रहा हर दिन मगर
यह कार मेरी छोड़कर जाना नहीं।
बैठो जरा सा पास मेरे ऐ प्रिया
जब गाँव जाना तो शहर जाना नहीं।
वातावरण पूरा चुनावी हो गया
मतदान कर रविकर पसर जाना नहीं।
सियासत हो रही भारी, सिया सतनाम् जपती है।
तिरस्कारे दशानन को,नही डरती सिहरती है।।
भरोसा राम-लक्ष्मण पर, भरोसा रीछ वानर पर
उन्ही के इस भरोसे से, स्वयं से युद्ध लड़ती है।।
मनोबल तोड़ रावण का, जलाया माह भर पहले-
जली सम्पूर्ण लंका पर, बुराई जोश भरती है।
जलेगा शर्तिया रावण, सवा सौ सुत दफन होंगे
मिटेगा सुपनखा का वंश, जिससे त्रस्त धरती है।
उठो सुग्रीव अंगद नील नल हनुमान सेनापति
जिताओ धर्म को फिर से धरा आह्वान करती है।
दशानन था बलात्कारी, उसे ज्ञानी बताओ मत।
नहीं था संयमी, पंडित प्रशंसा व्यर्थ गाओ मत।
किया था छेड़खानी भी गवाही वेदवति देती
नकारो मत प्रमाणों को उसे नायक बनाओ मत।
किया अपनी बहू का रेप, रंभा नाम था जिसका
उसे कहकर सदाचारी, गुनाहों को छुपाओ मत।
छुवेगा नारि सहमति बिन, मरे बेमौत सिर फूटे
दिया था शाप नल ने तब, हकीकत यह भुलाओ मत।।
रही श्रीराम की ताकत, सिया का धैर्य था उत्तम
कुकर्मी को महात्मा कह कभी रविकर बुलाओ मत।।
करके परीक्षण भ्रूण-हत्या कर रहे जो नर अभी।
वे पुत्रवधु के हाथ से पानी न पायेंगे कभी।
कोई कहीं दुर्गा अगर, अब देश में रविकर मरी
तो पाप का परिणाम दुष्कर, दंड भोगेंगे सभी ।
मजबूर होकर पाठशाला छोड़ती यदि शारदा।
करना सुनिश्चित नारि-शिक्षा हाथ में लेकर गदा।
लक्ष्मी कभी क्यों खर्च माँगे, सुत पिता पति भ्रात से
उपलब्ध उसको भी रहे, घरबार दौलत सम्पदा।।
क्यों कुंड में कोई उमा, बाजी लगाये जान की।
क्यों अग्नि लेती है परीक्षा, जानकी के मान की।
काली बने अब कालिका, संहार दुर्जन का करे।
नवरात्रि की पूजा तभी होगी सफल इन्सान की।।
नमन हे मातु शतरूपा-सरस्वति-शारदे मैया।
करें हम नित्य आराधन, तनिक स्वीकार ले मैया।
अधिष्ठात्री तुम्ही तो माँ, कला-विज्ञान-विद्या की ।
दमन कर मूर्खता-जड़ता करो उद्धार हे मैया।
खिला दो मन कमल जैसा, बना दो श्वेत-निर्मल तन ।
बनाकर हंस सा जीवन, विराजो पीठ पे मैया।।
तपस्या-साधना भूला, अभी तक मूढमति प्राणी
जरा उन मूढ़-भक्तों सा, मुझे भी मंत्र दे मैया।।
कहाँ वीणा बजाती हो, नहीं आवाज आती है
सुना दे सप्त-स्वर-मंजुल विनय रविकर करे मैया।।