सुगर बढा तो बढ़ गया, रविकर अंतरद्वंद।
मीठा खाना ही नहीं, अपितु बोलना बन्द।।
बेवकूफ वाचाल है, समझदार हैं मौन।
उस संस्था परिवार को, बचा सके फिर कौन।।
वृद्धावस्था का नहीं, सही सहारा पूत।
सही सहारा तो बहू, दे सुख-शांति अकूत।।
अगर शिकायत एक से, करिये वार्तालाप।
किन्तु कई से है अगर, सुधर जाइये आप।।
नहीं बिछाते बल्कि वे, रहे बड़प्पन ओढ़।
अगर बिछाते तो कभी, उन्हें न होता कोढ़।।
दो मंजिल का चढ़ गया, उस छत पर सामान।
जिसे उच्चता का रहा, कल तक बड़ा गुमान।।
सुगर बढा तो बढ़ गया, रविकर अंतरद्वंद।
मीठा खाना ही नहीं, अपितु बोलना बन्द।।
बेवकूफ वाचाल है, समझदार हैं मौन।
उस संस्था परिवार को, बचा सके फिर कौन।।
वृद्धावस्था का नहीं, सही सहारा पूत।
सही सहारा तो बहू, दे सुख-शांति अकूत।।
अगर शिकायत एक से, करिये वार्तालाप।
किन्तु कई से है अगर, सुधर जाइये आप।।
नहीं बिछाते बल्कि वे, रहे बड़प्पन ओढ़।
अगर बिछाते तो कभी, उन्हें न होता कोढ़।।
दो मंजिल का चढ़ गया, उस छत पर सामान।
जिसे उच्चता का रहा, कल तक बड़ा गुमान।।
जब दिमाग-वाला मनुज, दिल मे करे प्रवेश।
हो खराब तब, जिंदगी, दे भर-जीवन क्लेश।।
वास्तु-दोष से मुक्त घर, ले रविकर पहचान।
हर कोने हर कक्ष में, जब नेटवर्क समान।।
प्यार एकतरफा जहाँ, पुष्पित होती चाह।
दोतरफे का हश्र तो, रविकर केवल व्याह।
नानी के घर ही नहीं, छुट्टी किया व्यतीत।
दादी के घर भी गया, तोड़ पुरातन रीत।।
पैसों में गर्मी बहुत, रही जमाती धाक।
रविकर रिश्तों को यही, करे जलाकर खाक।।
कूलर में कितने घड़े, डाल रहे जल आप।
सींचे होते पेड़ यदि, कभी न बढ़ता ताप।।
अजब मुहब्बत का गणित, दो से घटता एक।
बचे मात्र तब शून्य ही, हैं दृष्टांत अनेक।।।
हो खराब तब, जिंदगी, दे भर-जीवन क्लेश।।
वास्तु-दोष से मुक्त घर, ले रविकर पहचान।
हर कोने हर कक्ष में, जब नेटवर्क समान।।
प्यार एकतरफा जहाँ, पुष्पित होती चाह।
दोतरफे का हश्र तो, रविकर केवल व्याह।
नानी के घर ही नहीं, छुट्टी किया व्यतीत।
दादी के घर भी गया, तोड़ पुरातन रीत।।
पैसों में गर्मी बहुत, रही जमाती धाक।
रविकर रिश्तों को यही, करे जलाकर खाक।।
कूलर में कितने घड़े, डाल रहे जल आप।
सींचे होते पेड़ यदि, कभी न बढ़ता ताप।।
अजब मुहब्बत का गणित, दो से घटता एक।
बचे मात्र तब शून्य ही, हैं दृष्टांत अनेक।।