हरिगीतिका छंद
सौम्या सरस्वति शारदा सुरवंदिता सौदामिनी।प्रज्ञा प्रदन्या पावकी प्रज्या, सुधामय मालिनी।
वागेश्वरी मेधा श्रवनिका वैष्णवी जय भारती।
आश्वी अनीषा अक्षरा रविकर उतारे आरती।।
रिटायर हो रहे तो क्या, सुबह जल्दी उठा करना।
टहलना भी जरूरी है, तनिक कसरत किया करना।
कमाई जिंदगी भर की, करो कुछ कार्य सामाजिक-
करो निर्माण मानव का, गरीबों पर दया करना।।
न कोई बॉस है तेरा, न कोई मातहत ही है-
बराबर हो गये सारे, परस्पर अब मजा करना।
न छोटे घर बड़े घर का, रहा कोई यहाँ अंतर-
गुजारे के लिए कमरा, कहानी क्या बयां करना।।
रस्सी जैसी जिंदगी, तने-तने हालात।
एक सिरे पर ख्वाहिशें, दूजे पर औकात ।
होनहार विरवान के, होते चिकने पात।
हो न हार उनकी कभी, देते सबको मात।।
कोरोना योद्धा सतत्, जग को रहे उबार।
हो न हार तो पुष्प से, कर स्वागत सत्कार।।
कोरोना की आ चुकी, नुक्कड़ तक बारात ।
फूफा सा ले मुँह फुला, बन न बुआ बेबात।।
मार्ग बदलने के लिए, यदि लड़की मजबूर |
कुत्ता हो या हो गधा, मारो उसे जरूर।।
हल्की बातें मत करो, हल्का करो शरीर।
प्राण-पखेरू जब उड़ें, हो न किसी को पीर।।
देह जलेगी शर्तिया, लेकर आधा पेड़।
एक पेड़ तो दे लगा, अब तो हुआ अधेड़।।
मंजिल से बेह्तर मिले, यदि कोई भी मोड़।
डालो तुम डेरा वहीं, वहीं नारियल फोड़।।
वेतन पा अधिकार पर, लड़ते सभ्य-असभ्य।
वे तन दे कर देश प्रति, करें पूर्ण कर्तव्य।।
जब माँ पर करती कटक, वर्तमान बलिदान।
तब भविष्य होता सुखी, होता राष्ट्रोत्थान।।
धोखे से अरि गालवान में, आकर कर देता जब हमला।
कुछ सैनिक होते शहीद पर, हर भारतीय सैनिक सँभला।
शिवगण भिड़ते समरांगण में, करें चीनियों का मुँह काला।
आक्रांता की कमर तोड़ कर, वहाँ मान-मर्दन कर डाला।
बीस शहादत के कारण फिर, करे कालिका खप्पर धारण।
रौद्ररूप तांडव का नर्तन, खाली हो जाता समरांगण।।
मेरे पैसे की गोली से, प्राणान्तक आघात करे।
मेरे पैसे की गोली से, सीमा पर मेरा वीर मरे।
नहीं वीरगति पाया है वह, बल्कि किया मैनें हत्या-
धिक्कार मुझे धिक्कार मुझे, क्यों नहीं मुझे चीनी अखरे।।
उस माटी की सौगंध तुझे, तन गंध बसी जिस माटी की।
नभ वायु खनिज जल पावक की, संस्कारित शुभ परिपाटी की ।।
मिट्टी का माधो कह दुर्जन, सज्जन की हँसी उड़ाते हैं।
मिट्टी डालो उन सब पर जो, मिट्टी में नाम मिलाते हैं।।
चुप रह कर कर्मठ कार्य करें, कायर तो बस चिल्लाते हैं।
कुत्ते मिल सहज भौंकते हैं, हाथी न कभी भय खाते हैं।
गीली मिट्टी का लौंदा बन, मुश्किल है दुनिया में रहना।
छल कपट त्याग रवि रविकर तप, अनुचित बातों को मत सहना।
तुलना सिक्कों पर नही कभी, मिट्टी के मोल बिको प्यारे,
मिट्टी में मिलने से पहले, मिट्टी में शत्रु मिला सारे ।।
अलमारियों में पुस्तकें सलवार कुरते छोड़ के।
गुड़िया खिलौने छोड़ के, रोये चुनरियाओढ़ के।
रो के कहारों से कहे रोके रहो डोली यहाँ।
माता पिता भाई बहन को छोड़कर जाये कहाँ।
लख अश्रुपूरित नैन से बारातियों की हड़बड़ी।
लल्ली लगा ली आलता लावा उछाली चल पड़ी।।
हरदम सुरक्षित वह रही सानिध्य में परिवार के।
घूमी अकेले कब कहीं वह वस्त्र गहने धार के।
क्यूँ छोड़ने आई सखी, निष्ठुर हुआ परिवार क्यों।
अन्जान पथ पर भेजते अब छूटता घर बार क्यों।।
रोती गले मिलती रही, ठहरी नही लेकिन घड़ी।
लल्ली लगा ली आलता लावा उछाली चल पड़ी।।
आओ कहारों ले चलो अब अजनबी संसार में।
शायद कमी कुछ रह गयी है बेटियों के प्यार में।
तुलसी नमन केला नमन बटवृक्ष अमराई नमन।
दे दो विदा लेना बुला हो शीघ्र रविकर आगमन।।
आगे बढ़ी फिर याद करती जोड़ती इक इक कड़ी।
लल्ली लगा ली आलता लावा उछाली चल पड़ी।।
होता रा शब्द विश्व वाचक, ईश्वर वाचक शब्द मकार।
लोकों के ईश्वर हैं रामा, करवाते भवसागर पार।।
वह तो बच्चों के लिए, वैद्यों की सरताज।
वैद्यों की सरताज, नींद शिशु हेतु जरूरी।
दे संतुलित खुराक, कराये कसरत पूरी।
किन्तु स्वयं को भूल, जिए सर्वस्व वारकर।
अपनी निद्रा भूख, उड़ाये फूँक मारकर।।
काम हरि का नाम आये । सीख माँ की काम आये।।
गर गलत घट-ख्याल आए
रुत सुहानी बरगलाए ।
कुछ कचोटे, काट खाए
बात कोई बन न पाये
रहनुमा भी चूक जाए।
वक्त ना बीते बिताए
सीख माँ की काम आए।।1।।काम हरि ---
जो कभी अवसाद में हो
या कभी उन्माद में हो
सामने या बाद में हो,
तथ्य हर संवाद में हो
शर्म हर औलाद में हो,
नाम कुल का ना डुबाये-
सीख माँ की काम आये- ।।2।।काम हरि--
कोख में नौ माह ढोई,
दूध का ना मोल कोई,
रात भर जागी न सोई,
अश्रु से आँखे भिगोई
सदगुणों के बीज बोई
पौध कुम्हलाने न पाए
सीख माँ की काम आये ।।3।। काम हरि-