मार कुंडली दूध पीजिये |
पूज पञ्चमी पाँच पंच की,
विष-विशेष तो मंगा लीजिये ||
पहला- रहा बहला
वाणी इनकी मधुर-विषैली,
नित बाढ़े *विषयाधिप थैली |
जड़े जमा *विषयांत पार भी ,
*विषा स्विस-बैंकों तक फैली ||
बिल में गहरी सांस खींचिए,
नाग-देवता माफ़ कीजिये ||
नित बाढ़े *विषयाधिप थैली |
जड़े जमा *विषयांत पार भी ,
*विषा स्विस-बैंकों तक फैली ||
बिल में गहरी सांस खींचिए,
नाग-देवता माफ़ कीजिये ||
विषयाधिप = शासक विषा = कडुवी-तरोई विषयांत= देश की सीमा
दूसरा- सिरफिरा
विष-विस्फोट कराता घूमे,
दर्दनाक मंजर पर झूमे |
आयातित-विष का भंडारी
मौत भरी है इसके फू-में ||
वारदात पर हाथ मींजिये,
नाग-देवता माफ़ कीजिये ||
तीसरा- पशु निरा
दर्दनाक मंजर पर झूमे |
आयातित-विष का भंडारी
मौत भरी है इसके फू-में ||
वारदात पर हाथ मींजिये,
नाग-देवता माफ़ कीजिये ||
तीसरा- पशु निरा
दूध - दवा - फल - सब्जी - ठेला
*विष्कलन का व्याधिक खेला |
महा-मिलावट जहर-खुरानी,
विषान्नों का लागे मेला ||
इन सबका इन्साफ कीजिये,
नाग-देवता माफ़ कीजिये || विष्कलन = आहार
चार- खौफ का व्यापार
माफिया मर्फ़िया सा घातक
पुश्तों का बड़-पापी पातक |
अपना हित साधे ये प्राणी
जन-संसाधन का है बाधक ||
इनको सारी जगह दीजिये,
नाग-देवता माफ़ कीजिये ||पांच-नंगा नाच
जैसे जैसे पेट बढ़ रहा
वैसे-वैसे रेट बढ़ रहा |
उन्नत विष का दंड मंगाया,
बेकसूर बे-मौत मर रहा ||
छटे-छ्टों को साफ़ कीजिये ,
नाग-देवता माफ़ कीजिये ||
वैसे-वैसे रेट बढ़ रहा |
उन्नत विष का दंड मंगाया,
बेकसूर बे-मौत मर रहा ||
छटे-छ्टों को साफ़ कीजिये ,
नाग-देवता माफ़ कीजिये ||
प्रिय रविकर जी व्यंग्य से भरी रचना विष नाग देवता का नाग पंचमी पर गजब लहराया और सब कुछ फू करके बताया काश ये नाग वहां जा के फू कर देता जहाँ अब इसकी जरूरत है जो लोगों को विष बाँट रहे हैं -
ReplyDeleteनाग देवता वहां जाइये
गले में उनके लिपट जाइए
जब भी गलत करें वे सोचें
यम बैठा है चाबुक ले के !!
भ्रमर ५
http://veerubhai1947.blogspot.com/
ReplyDeleteमंगलवार, २ अगस्त २०११
यौन शोषण और मानसिक सेहत कल की औरत की ....इसीलिए
http://sb.samwaad.com/2011/08/blog-post.h
aayaatit vish kaa bhandaari आयातित विष का भंडारी ,नाग देवता माफ़ कीजिए ,जनता को इन्साफ दीजिए ,सब जालों को साफ़ कीजिए .
श्रेष्ठ और शानदार व्यंग्य ......आभार
ReplyDeleteनाद देवता का तो पता नहीं, पर जाट देवता खुश हुए।
ReplyDeleteअच्छे शब्द चित्र हैं!
ReplyDeleteनागपंचमी की शुभकामनाएँ!
बहुत सुन्दर... बधाई
ReplyDeleteछटे-छ्टों को साफ़ कीजिये ,
ReplyDeleteनाग-देवता माफ़ कीजिये ||
काहे को भाजी बिदेश रे सुन दुर्मुख मेरे -
ReplyDeletenaagpanchmi ke madhyam se kitni ghahri vyang bhari prastuti di hai aapne...bahut umdaa.pahli baar aapke blog par aai hoon.bahut achcha laga aakar.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और ज़बरदस्त व्यंग्य! बेहतरीन प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://www.seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
सटीक व्यंग
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteरविकर जी , बहुत सरलता से आपने कितना कुछ कह दिया ।
ReplyDeleteसरलता से आपने कितना शानदार व्यंग्य कह डाला......आभार
ReplyDeleteExcellent creation with great satire.
ReplyDeleteतीखा पर साथ ही मीठा भी ये व्यंग्य
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब ।
ReplyDeleteटेढ़ी बातों को आपने खूबसूरती से सीधे-सीधे कह दी।
ReplyDeleteआपकी कविताओं का अंदाज़ निराला है।
bahut khoob
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