Wednesday, 17 August 2011

तेरे दर पर हुई भयंकर बड़-बटोर है |

सत्ता-सर  के  घडियालों  यह  गाँठ बाँध लो,
जन-जेब्रा   की   दु-लत्ती   में   बड़ा  जोर है |

बदन  पे  उसके  हैं  तेरे  जुल्मों  की  पट्टी -
घास-फूस  पर  जीता  वो,  तू  मांसखोर है ||

तानाशाही    से    तेरे     है     तंग  " तीसरा"
जीव-जंतु-जग-जंगल-जल पर चले जोर है |

सोच-समझ कर फैलाना अब  अपना जबड़ा
तेरे  दर   पर    हुई   भयंकर  बड़-बटोर  है |

पद-प्रहार से    सुधरेगा   या   सिधरेगा   तू
प्राणान्तक  जुल्मों  से  व्याकुल  पोर-पोर है |

9 comments:

  1. न सुधरेगा न सिधरेगा ....

    ये सत्ता का बेटा है...
    भ्रष्ट विचारों का आचार है.

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  2. जेब्रा का तो पता नहीं, कि उससे पिटेंगे कि नहीं,
    क्योंकि ये भारत में नहीं पाये जाते है,
    लेकिन अबकी बारी चुनाव में बडा मजा आयेगा?

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  3. .


    प्रिय बंधुवर दिनेश चन्द्र गुप्ता "रविकर" जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !


    पद-प्रहार से सुधरेगा या सिधरेगा तू
    वाह क्या ख़ूब !
    इस सरकार को पद-प्रहार का ट्रीटमेंट बहुत ज़रूरी हो गया है …
    जनता संगठित और सावधान हो जाए अब …

    मैंने लिखा है-

    काग़जी था शेर कल , अब भेड़िया ख़ूंख़्वार है
    मेरी ग़लती का नतीज़ा ; ये मेरी सरकार है

    पूरी रचना के लिए पधारें …

    हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  4. सार्थक व् सशक्त अभिव्यक्ति .क्रांति भाव को उद्घाटित करती रचना .आभार
    blog paheli no.1

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  5. वाह बहुत ही सुन्दर
    रचा है आप ने
    क्या कहने ||

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  6. पद-प्रहार से सुधरेगा या सिधरेगा तू
    प्राणान्तक जुल्मों से व्याकुल पोर-पोर है
    सुन्दर भावाभिव्यक्ति.बधाई रविकर जी

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  7. पद-प्रहार से सुधरेगा या सिधरेगा तू
    प्राणान्तक जुल्मों से व्याकुल पोर-पोर है |
    फिजा में दिनकरयही शोर है , भाई दिनकर जी ज़ोरदार वापसी .

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  8. पद-प्रहार से सुधरेगा या सिधरेगा तू ...बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...

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