सत्ता-सर के घडियालों यह गाँठ बाँध लो,
जन-जेब्रा की दु-लत्ती में बड़ा जोर है |
बदन पे उसके हैं तेरे जुल्मों की पट्टी -
घास-फूस पर जीता वो, तू मांसखोर है ||
तानाशाही से तेरे है तंग " तीसरा"
जीव-जंतु-जग-जंगल-जल पर चले जोर है |
सोच-समझ कर फैलाना अब अपना जबड़ा
तेरे दर पर हुई भयंकर बड़-बटोर है |
पद-प्रहार से सुधरेगा या सिधरेगा तू
प्राणान्तक जुल्मों से व्याकुल पोर-पोर है |
जन-जेब्रा की दु-लत्ती में बड़ा जोर है |
बदन पे उसके हैं तेरे जुल्मों की पट्टी -
घास-फूस पर जीता वो, तू मांसखोर है ||
तानाशाही से तेरे है तंग " तीसरा"
जीव-जंतु-जग-जंगल-जल पर चले जोर है |
सोच-समझ कर फैलाना अब अपना जबड़ा
तेरे दर पर हुई भयंकर बड़-बटोर है |
पद-प्रहार से सुधरेगा या सिधरेगा तू
प्राणान्तक जुल्मों से व्याकुल पोर-पोर है |
न सुधरेगा न सिधरेगा ....
ReplyDeleteये सत्ता का बेटा है...
भ्रष्ट विचारों का आचार है.
सटीक प्रस्तुति ..
ReplyDeleteजेब्रा का तो पता नहीं, कि उससे पिटेंगे कि नहीं,
ReplyDeleteक्योंकि ये भारत में नहीं पाये जाते है,
लेकिन अबकी बारी चुनाव में बडा मजा आयेगा?
.
ReplyDeleteप्रिय बंधुवर दिनेश चन्द्र गुप्ता "रविकर" जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
पद-प्रहार से सुधरेगा या सिधरेगा तू
वाह क्या ख़ूब !
इस सरकार को पद-प्रहार का ट्रीटमेंट बहुत ज़रूरी हो गया है …
जनता संगठित और सावधान हो जाए अब …
मैंने लिखा है-
काग़जी था शेर कल , अब भेड़िया ख़ूंख़्वार है
मेरी ग़लती का नतीज़ा ; ये मेरी सरकार है
पूरी रचना के लिए पधारें …
हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
सार्थक व् सशक्त अभिव्यक्ति .क्रांति भाव को उद्घाटित करती रचना .आभार
ReplyDeleteblog paheli no.1
वाह बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteरचा है आप ने
क्या कहने ||
पद-प्रहार से सुधरेगा या सिधरेगा तू
ReplyDeleteप्राणान्तक जुल्मों से व्याकुल पोर-पोर है
सुन्दर भावाभिव्यक्ति.बधाई रविकर जी
पद-प्रहार से सुधरेगा या सिधरेगा तू
ReplyDeleteप्राणान्तक जुल्मों से व्याकुल पोर-पोर है |
फिजा में दिनकरयही शोर है , भाई दिनकर जी ज़ोरदार वापसी .
पद-प्रहार से सुधरेगा या सिधरेगा तू ...बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...
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