दसवें-दिन आँखें खुलीं, पका मोतियाबिन्द |
भ्रष्टाचारी सदा ही, रहा शासक-ए-हिंद ||
रहा शासक-ए-हिंद, उखाड़ेगा क्या घन्टा ?
लोकपाल के लिए, करे क्यों अन्ना टंटा ?
चुप्पा बोला जोर, सुनो ऐ मोहन बाबू |
हो जाने दो पास, करेंगे कस के काबू ||
अ-प्रस्ताव के बाद ---
दोहे न सोहे उन्हें, गढ़ें कुण्डली - गान |
लाले पड़ते जान के, सोये चादर तान |1|
अन्ना की तेरहवीं की सरकारी कोशिश ||
मकड़-जाल में फिर फँसा, तेरह दिन का तप |
कडुआ - कडुआ थू करे, मीठा - मीठा गप |3|
टालू-रवैया
फूंक-फूंक के रख रहे, अपने पग मक्कार |
कहे नहीं दो टूक वे, थी जिसकी दरकार |2|
जलेबी
ओमपुरी से हो खफा, मांसाहारी दोस्त |
कल से खाना छोड़ते, वे मुर्दों का ग़ोश्त |4|
ताज़ा ग़ोश्त
पैरों पर अपने करे, कहाँ कुल्हाड़ी वार |
टोपी से अन्ना कहें, पैरों को दे मार |5|
नादान अन्ना
@रहा शासक-ए-हिंद, उखाड़ेगा क्या घन्टा ?
ReplyDeleteसुसरा घंटे के साथ तो चिपक ही गया है न.....
आखिरी का फ़ोटो ही सच्चाई बताने के लिये बहुत था,
ReplyDeleteक्या बात है...मोहन बाबू!
ReplyDeleteक्या फोटो बनाया है सर जी
ReplyDeletejabardast...
ReplyDeleteफूंक-फूंक के रख रहे, अपने पग मक्कार |
ReplyDeleteकहे नहीं दो टूक वे, थी जिसकी दरकार |2|रविकर जी ,दिनकर जी ,"कपिल मुनि के तोते "लिखने जा रहे थे ,सोचा लिखने से पहले आपसे सांझा कर लिया जाए ,कल दोहे का रूप लेलेगा .तो सुन मेरे भाई ये स्वामी अग्नी बीज यकायक कैसे मंच से रंग मंच में पहुँच गए .ये कोंग्रेसी कपिल मुनि उर्फ़ सिब्बल से संपर्क साधे हुए थे अन्ना जी की टोली ने इनके संवाद मुनिकपिल जी के साथ सुन लिए ,ज़नाब फरमा रहे थे ,बहुत जल्दी गिव अप कर दिया आपने
काग भगोड़े ,वैश्या के तोतों की आपने रविकर जी अच्छी खबर ली है .उम्र दराज हों आप अन्ना रविकर जी ,शिला लेख पे लिखी जाए "दिनेश की दिल्लगी "..
टोली अन्ना कल से इनसे पूछ रही है -भैया भगवा ,कपट पंडित,कपट वेश ये "कपिल मुनि "कौन हैं ,भूमि गत हो गये हैं ये कुतर्क -पंडित .,,,तमाम वैश्या के तोते .
फूंक-फूंक के रख रहे, अपने पग मक्कार |
ReplyDeleteकहे नहीं दो टूक वे, थी जिसकी दरकार |2|सुन्दर व्यंग सार्थक रचना..सार्थक चित्र....