Sunday, 7 August 2011

भोग-विलासी जीवन के हित पागल पूरे

कनरसिया के कानों के भी कान-खजूरे---
मनभावन सुर-तालों को अब  बेढब घूरे ||


व्यस्त जमाने के पहलू में ऊँघे  बच्चा 
कैसे  पूरे  हों  बप्पा   के  ख़्वाब   अधूरे ||


कनकैया-कनकौवा का कर काँचा माँझा
आकाश-पुष्प की खातिर भागे भटके-झूरे  ||  


युवा मनाकर आठ पर्व  को  नौ-नौ  बारी
भूली - बिसरी  परम्पराएँ      पूरी     तूरे ||


नैतिकता के अधो-पतन ने घर बिसराया 
भोग-विलासी जीवन के हित पागल पूरे ||

14 comments:

  1. जय हो फ़्रेंडशिप डे रोस डे और पता नही कौन कौन से डे की

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  2. नैतिकता के अधो-पतन ने घर बिसराया
    भोग-विलासी जीवन के हित पागल पूरे ||
    bahut saarthak bhaav liye hui kavita.achchi lagi.

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  3. अच्छी रचना है!
    --
    मित्रता दिवस पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  4. सार्थक भावों की सुन्दर प्रस्तुति....

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  5. व्यस्त जमाने के पहलू में ऊँघे बच्चा
    कैसे पूरे हों बप्पा के ख़्वाब अधूरे ||
    बहुत सटीक अभिव्यक्ति .मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें .

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  6. bilkul alag aur nayaapan liye hai ye andaaz....sundar likha aapne


    humara bhi hausla badhaaye:
    http://teri-galatfahmi.blogspot.com/

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  7. अच्छी रचना है!
    --
    मित्रता दिवस पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  8. व्यस्त जमाने के पहलू में ऊँघे बच्चा
    कैसे पूरे हों बप्पा के ख़्वाब अधूरे ||
    क्या बात कही है जी बहुत वाजिब

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  9. सुन्दर अंदाज रविकर जी -अलग शैली ,सार्थक , व्यंग्य ,निम्न मन को बहुत भाया..काश लोग न ऊंघें ..
    भ्रमर ५
    नैतिकता के अधो-पतन ने घर बिसराया
    भोग-विलासी जीवन के हित पागल पूरे

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  10. व्यस्त जमाने के पहलू में ऊँघे बच्चा
    कैसे पूरे हों बप्पा के ख़्वाब अधूरे ...

    दिनेश जी हकीकत लिख दी है आपने यहाँ ...

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  11. सुन्दर प्रस्तुति

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  12. नैतिकता के अधो-पतन ने घर बिसराया
    भोग-विलासी जीवन के हित पागल पूरे

    सही कहा दिनेश जी ।

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