सान-सान सद-कर्म को, बसा के बद में प्राण |
अपनी रोटी सेक के, करते महा-प्रयाण |
अपनी रोटी सेक के, करते महा-प्रयाण |
करते महा-प्रयाण, साँस दो-दो वे ढोते |
ढो - ढो लाखों गुनी, पालते नाती - पोते |
मत 'रविकर' मुँह खोल, महा अभियोग चलावें |
कड़ी सजा तू भोग, पाप उनके छिप जावें ||
सही और सटीक व्यंग...
ReplyDeleteमत 'रविकर' मुँह खोल, महा अभियोग चलायें |
ReplyDeleteकड़ी सजा तू भोग, पाप सारे छिप जाएँ |
अब क्या रविकर जी आपने तो मुहं खोल दिया है .सही व् सटीक .
बहुत बढ़िया लिखा है आपने! सटीक और ज़बरदस्त व्यंग्य!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी की गई है! यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
ReplyDeleteयथार्थ को कहती अच्छी भावनात्मक प्रस्तुति
ReplyDeleteदुष्यंत जी को उनके जन्म दिन पर याद करवाके आपने एक नेक काम किया है तुषार जी .आज भी कितने मौजू हैं दुष्यंत -"गज़ब है सच को सच कहते नहीं हैं ,सियासत के कई चोले हुए हैं ,हमारा कद सिमट के घट गया है ,हमारे पैरहन झोले हुएँ हैं .
ReplyDeleteइस दौर के दुष्यंत हैं आप रविकर जी .बेहतरीन रचना .बधाई स्वीकारें .एक सितम्बर उनका जन्म दिन हैं जो कहा करते थे -गज़ब है सच को सच कहते नहीं है ,सियासत के कई चोले हुएँ हैं ,हमारा कद सिमट के घट गया है ,हमारे पैरहन झोले हुएँ हैं .
कबीरा खडा़ बाज़ार में
ReplyDeleteTuesday, August 30, 2011
क्या यही है संसद की सर्वोच्चता ?
सोमवार, २९ अगस्त २०११
क्या यही है संसद की सर्वोच्चता ?
जहां अध्यक्ष लाचार है ,बारहा कह रहा है हाथ जोड़ कर "बैठ जाइए ,बैठ जाइए "और वक्ता मानसिक रूप से बीमार है .शेष सांसद मानो बंधक बने बैठे हों ,और वक्ता हर वाक्य के अंत में "हप्प हप्प "करता हो ,चेहरे को गोल गोल बनाके इधर उधर घुमाता हो .उपहासात्मक मुख मुद्रा बनाए हुए .दो तरह का भाव होता है वक्ता का एक संवेगात्मक और एक एहंकार का .यहाँ कायिक मुद्रा में भी दंभ है प्रपंच है .क्या यही है -"संसद की सर्वोच्चता "?जो लोग संसद में ,मर्यादा बनाके नहीं रख सकते,ठीक से खड़े नहीं हो सकते , वही लोग संसद के बाहर "विशेषाधिकार हनन की बात करतें हैं .
जय अन्ना !जय भारत !जय किरण बेदी जी ....जय! जय !जय
विशेषधिकार की बात करने वालों से दो टूक .
आज संसद के विशेषाधिकार हनन की तलवार -ए - तोहमत माननीय किरण बेदी पर लटकाने वाले,ॐ पुरी पे गुस्साए हमारे सांसद, उस वक्त कहाँ थे जब कोंग्रेस के एक प्राधिकृत प्रवक्ता ने भारत की संसद को आतंक के साए में रखने वाले विश्व के सबसे खूंखार दहशद गर्द (आतंकवादी ) "ओसामा बिन लादेन "को ओसामा बिन जी कहकर उनके इस्लामिक रीति -रिवाज़ से सुपुर्दे ख़ाक करने की हिदायत ओबामा साहब को दी थी .कहा था सुपुर्दे ख़ाक सबको आदर पूर्वक किया जाना चाहिए ।
ये ज़नाब उनका मकबरा बनवाकर उस स्थान को क्या मदीना बनवाना चाहते थे ?
मेरी हार्दिक बधाई ||
ReplyDelete(जाट-देवता) many many happy birthday to you
hamesa kush rahana